छब्बीस जनवरी के लड्डू
रेगिस्तान में बसे गांव जैसा ,हमारा गांव जहाँ , कच्ची सड़क पर बैलगाड़ी , ऊंट गाड़ी निकला करतीं थीं ,जब सरकारी बस आती तब ,धूल का गुबार उड़ने लगता था। बाबा ,कहते थे विकास होने वाला है अब ,बिजली आ जाएगी , सबके घर पानी होगा , गलियां पक्की हो जाएँगी। जबकि मिनका रोज पोल पर चढ़कर लालटेन में तेल डालता था ,मुझे याद है सूरज ढलते ही ,उन्हें जलाता भी था। गांव भर में चार जगह लालटेन जलती थी।
हमारे घर के चार कमरों में स्कूल चलता था , मास्टर कभी आता कभी नहीं आता। दूसरी क्लास हमारी वहीँ हुई। लाइट आ गई ,गांव भर में दीपावली का उत्सव सा हो गया। गलियां लेकिन अँधेरे में रह गईं , जो सरकारी बल्ब लगे थे ,वे फ्यूज हो गए अब कौन लगवाए।
घर से सात किलोमीटर दूर एक इण्टर कॉलेज था वहां ,माँ, ने दाखिला दिलवा दिया , छटवीं क्लास में ए , बी, सी का ज्ञान हुआ। घर का काम करने से अच्छा था पढ़ाई करना। बाबा , कहते थे पढ़ाई जरूरी है। बुआ पहली लड़की थी गांव में जिसने एम,ए ,किया था। स्कूल में छब्बीस जनवरी को लड्डू बांटे जाते थे। हम चार सहेलियों को थैलियों में लड्डू दिया गया। चार लड्डू ही डालने थे ,हम मस्ती कर रहे थे कभी तीन लड्डू डालते कभी पांच। जब , लगा कि तीन वाली थैली यदि हमारे पास ही आई तो , फिर सही काम किया। हम लोगों ने चार थैली छुपाकर रख ली थी , टीचर ने किसी काम से बाहर बुलाया तब तक , सारा सामान वहां से हटा दिया गया था। हम परेशां हुए ,जब अपनी थैली देखी तो तीन लड्डू ही थे। हम सबको सबक मिला कि बदमाशी नहीं करनी है।
हम सबने कसम खाई कभी गलत काम नहीं करेंगे। २६ जनवरी के लड्डू हमें बता गए कि भाग्य से अधिक नहीं मिलेगा और लालच करना सही नहीं है। अपने बच्चों को भी सीख दी है ,उनके स्कूल में अलग व्यवस्था हैं। अपनी नादानी पर हंसी आती है।
रेनू शर्मा
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