खोटी चवन्नी
पीपल के प्रौंढ़ वृक्ष के बगल में काका की दुकान तभी से थी , जब से पीपल पैदा हुआ होगा। मीठी गोली , चूरन ,बताशे , गुड़ ,मूंगफली ,इमली , संतरे की गोली से लेकर सब सामान काका की दुकान पर मिल जाता था। पूरे गांव में एक ही दुकान थी जहाँ , दिन भर भीड़ रहती थी। कई लोगों का उधर खता भी चलता था। माँ और दादी हर छोटे काम के लिए मुझे दुकान भेजा करती थी। कभी दस पैसे , कभी चवन्नी लेकर दुकान तक दौड़ लगती रहती थी।
दादी , अपना सारा सामान लकड़ी के पुराने बक्शे में रखा करती थी जिसमें पुराने सिक्के , चीनी , बताशे ,गुड़ और उसकी शादी का जोड़ा रखा रहता था।जब भी दादी बक्शा खोलती हम लोग कुछ खोजते रहते , दादी ये क्या है ? दादी इसमें क्या ? एक पुराने बटुए में कुछ सिक्के थे , उनमें से एक दादी से छिपकर ले लिया।
माँ , हमेशा बोलती थी झूंठ नहीं बोलना है और चोरी करना या छुपकर लेना भी पाप होता है। पर ये बातें तो कानों के पास से उड़ जाती थीं। बड़े जातां से चवन्नी छिपाकर बाहर नीम के पेड़ तक ले गई ,वहां जाकर देखा कई कि चवन्नी तो एक तरफ से कुछ खुदरी हुई है। एक साथ धक्का लगा ,अरे ! ये तो खोटी है , अब ,क्या करूँ ? न दादी को बता सकती हूँ न माँ को ,अगर दादी ने दिया होता तो वापस कर दूसरा पैसा मांग लेती। तभी , बहन ने पीछे से धक्का दे दिया , गिरते से बची , क्या ,करती हो ,मैं वैसे ही परेशान हूँ ,ऊपर से धक्का दे दिया ,जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती। अरे ! खोटी चवन्नी कहाँ से मिली , रास्ते में पड़ी थी , चलो , गुस्सा न कर ,काका की दुकान कब काम आएगी। चल न , नीलू ने सलाह दी थोड़ा अँधेरा होने दो ,तब चलते हैं।
काका को लालटेन की रौशनी में साफ़ नहीं दिखेगा और हम सामान लेकर भाग लेंगे। तुम बोलना ,काका चवन्नी की मूंगफली दो , जल्दी देने को बोलना , फिर अपन चल देंगे। योजना के अनुसार हम भाग लिए , बड़े खुश थे लेकिन सबके सामने खा भी नहीं सकते थे , पैसे कहाँ से आये तो क्या जवाब देंगे , चवन्नी यूँ ही रास्ते में मिल गई ऐसा , कभी नहीं होता वो भी गांव में। हम लोग छत पर गए और बड़े मजे से मूंगफली खाते रहे। देखो नीलू तुम माँ से मत बताना ,जब देखो मेरी शिकायत करती रहती हो , न दीदी न बताउंगी।
दीदी ये चार मूंगफली अब मेरी , क्या करती ,हाँ बोल दिया बस ,बताना मत।अपनी बेबसी मैंने चवन्नी लेकर मोल ली थी तो अब , एक समस्या से में जा रही थी। हम नीचे आ गए , थोड़ी देर में भूल भी गए कि क्या हुआ था। माँ , छत पर सूखे कपडे बटोरने गई तो , देखा मूंगफली के छिलके पड़े हैं। उन्हें लगा , यहाँ कौन आया होगा ? कोई चोर तो नहीं ? माँ ,ने सबसे पूछा ऊपर बैठकर मूंगफली किसने खाई थी , अब काटो तो खून नहीं , क्या जवाब दें। मेरे माथे पर पसीने की बून्द देख माँ समझ गई जरूर ये तारा का काम है। माँ , कमरे में चली गई ,कपडे जमाने लगी। तभी मैं चली गई ,पूरी कहानी माँ को बता दी।
पहली बार ऐसा हुआ था , एक खोटी चवन्नी भी हालत ख़राब किये थी। माँ ,को गुस्सा आ रहा था ,तुमने ऐसा क्यों किया ? क्या हम खाने को नहीं देते , हमसे पैसे लेकर जाती सब लोग मिलकर मूंगफली खाते। अभी ,जाओ ये चवन्नी काका को दे कर आओ ,और सॉरी जरूर बोलना समझी। जी माँ , कहते हुए मेरी आँखें भर आईं थीं , माँ , को दुःख हुआ होगा ,उनकी बेटी ने ऐसा किया , यही सजा है ,जाओ अब ,मैं सोच रही थी खोटी चवन्नी भी कितना कष्ट देती है।
चवन्नी जीवन का सत्य बता गई , माँ ,के भीतर छुपे गीता जैसे सार को हमें पढ़ा गई , हमारी माँ ,एक गूढ़ आध्यात्म को हमारे भीतर तक घोल गई हैं। खोते सिक्के अब दिखाई ही नहीं देते।
रेनू शर्मा
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