कौमरांगनी
हिंदी साहित्य में स्त्रियों के लिए हजारों उपमाओं के साथ सुन्दर सम्बोधनों का प्रयोग भी किया गया है , कभी हृदयेश्वरी , वामांगी ,अर्धांगनी ,प्रिये ,वत्सले कभी गजगामिनी ,मृगनयनी ,कमलाक्षी कभी स्वप्न सुंदरी ,प्राणेश्वरी और न जाने कितने उपनामों से पुकारा जाता है। या कहैं कि उनकी महत्ता को ऊंचाई देने के लिए नाम दिए जाते हैं। हर नाम या सम्बोधन अपनी अलग ऊर्जा रखता है। उच्चारण , शब्द और प्रयोग के द्वारा प्यार या स्नेह की गंभीरता ,प्रमाणिकता और विश्वसनीयता स्पष्ट होती है।
भारतीय नारियों के लिए इससे अधिक प्रसन्नता की बात कोई हो ही नहीं सकती कि उन पर साहित्य लिखा गया। अनेकों विद्वानों की लेखनी को अमरता देने वाली स्त्री ही तो है। स्त्री केवल मधुर सम्बोधनों के लिए ही नहीं अपितु कटु शब्द उच्चारण के लिए भी जानी जाती है। कुलटा ,पतिता ,भृष्टा ,कलिँकनी ,पापिनी ,दुराचारिणी , भृष्टाचारिणी ,अनंगनी {पति रहित }आदि जाने कितने नाम हैं। एक खंजर सा दिल में उतरता है कि जो नारी पूज्यनीया है असमय वही इन कटु नामों से भी जानी जाती है। इन्हीं सब रास्तों से गुजराती हुई स्त्री बालिका ,युवति ,औरत फिर वृद्धा बन एक दिन मिटटी में समां जाती हैकिसी सीता सी।
स्त्री ,अपने अस्तित्व को प्रदीप्त करने के लिए अग्नि भी उत्पन्न कर सकती है। कभी अहिल्या जैसी शिला भी बन सकती है। कभी दरवार में अपने अपमान का घूँट पीने वाली पांचाली दुश्मन के खून से बाल धोती है। इन्हीं धाराओं से निकली एक सम्बोधन की परिभाषा कौमरांगनी नाम पर आकर रूकती है। लेखनी के पंडितों को युवती नारी अधिक आकर्षित करती है। विवाहिता रूपसी स्त्री के लावण्य की गाथा भी कम नहीं बखानी है ,कौमरांगनी के रूप लावण्य ,पीड़ा ,बेबसी ,कसक ,अकेलापन ,सूनेपन की एक अजीब सी कथा कही गई है। उन स्त्रियों के रिक्त मन की पीड़ा चाहे महलों की राजकुमारी हो ,चौक -चौराहे की साधारण स्त्री हो , दिवास्वप्नों में डूबती -उतरती कोई नायिका हो कुछ कम लिखा गया है।
कौमार्य के जादू में लिपटी युवती किसी को भी बाँध सकती है।चाहे वो बैभव -ऐश्वर्य से लवरेज कोई शासक हो , साधारण व्यक्ति हो। रति जैसी अटखेलियां ,अल्हणपन इनकी अदाएं कातिल होतीं हैं। दैनिक क्रियाओं का जाल इन्हें घेरे रहता है , प्रेम दीवानी ,बलिदानी ,अभिमानी आदि साड़ी विशेषताएं इनमें होती हैं। रूप सौंदर्य खिलते गुलाब सा महकता रहता है। युवक भंबरा बन इनके आस -पास मंडरा सकता है।
इनके भीतर की पीड़ा एक अलग कहानी कहती दिखाई देती है। अजीब सा सम्मोहन इनकी निगाहों पर अटका रहता है। ये एक पज्वलित दीपक की बाटी की तरह लहराती रहती हैं। ये हमेशा अठारवें बसंत की खुमारी में डूबी रहती हैं इसीलिए इन्हें कौमरांगनी कहा जाता है।
रेनू शर्मा
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