विधवा बेटी
सुनी ! देख तो पिताजी दुकान से आ गए क्या ? नहीं माँ , मैं कमला दी के घर जा रही हूँ वहीँ रहूंगी दो दिन , बेटा ! जल्दी आना तेरे बिना मेरा काम नहीं हो पाता ,ये छोटी कुछ काम की नहीं ,बस बातें बनवा लो इससे। बिटिया ! जो बच्चा काम करता है उसी से सब बोलते हैं। हाँ माँ , मक्कारों को कौन पसंद करता है। सुनी ! चल पिताजी का खाना लगा दे , दुकान भेज दूँ। सब भूंखे होंगे। हर रोज सुनी की पुकार लगती रहती है। सबकी लाड़ली भी है गोल मटोल शरीर , तीखे नाक नक्श , लम्बे बाल जब ,तैयार होती है तब , माँ नजर उतारदेतीं हैं।
कल तो लता ताई के घर गाने हैं ,माँ ,हम चलेंगे क्या ? कॉलेज से आएगी तब चलेंगे , सुनी लोक गीत गाने ,नाचने ,ढोलक बजाने में माहिर है , बढ़ा मजा आता है उसे इन सब कामों में। विविध भारती पुराने गाने उसे पसंद हैं ,तब दौनों बहने खूब मस्ती करती हैं। मीना कुमारी पर फिल्माया गाना -पिया ऐसो जिया में समाय गया रे --सुनी पूरा सुना देती है। सिलाई -कढ़ाई भी करती रहती है। सर्व -गुण संपन्न है।
पूरे घर में रात तक धमाचौकड़ी मची रहती है , नंदू रात को ही बाबा के साथ ही घर आता है , कभी सुनी की चोटी खींचेगा ,कभी सोनी को बिस्तर से गिरा देगा ,फिर भाग -दौड़ मचती है ,माँ , धीरे -धीरे चिल्लाती रहेगी बाबा न सुन लें नंदू अब बस कर , कल ही बोल रहा था माँ , अब सुनी की शादी कर दो। जया को सुबह ही अल्टीमेटम मिल गया , सुनी को देखने कल चार लोग आ रहे हैं , घर पर ही खाना बनेगा ,अब देख लो ,कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। अरे ! अभी तो पढ़ रही है ,परीक्षा होने दो , सब हो जाएगी अच्छा घर बार -बार नहीं मिलता।
जया ने दाल भिगो दी , सब्जी लाने को नंदू को बता दिया और सुन इमरती भी लेते आना , हाँ माँ , मुझे बड़ी पसंद हैं , तुम्हारे लिए नहीं कल के लिए बता रही हूँ। छोटी बता रही है दी , ये साडी पहन लेना ,इसमें तुम सुन्दर दिखती हो , दी छोटी बनाओगी या बाल खुले रखोगी ,सुनो दी , चोटीला लगा लेना ,अच्छा लगेगा। माँ , आप को बड़ी जल्दी थी न , मुझे भगाने की अब ,देख लो बाबा तो और भी तैयार बैठे हैं।
माँ ,इससे कहो अब से छोटी हमारी सुनी होगी ये अपनी ससुराल में रहेगी , माँ , नंदू से कहो चुप करे , ठीक है बेटा ! यही तो दिन याद रहते हैं बाकी सब भूल जाता है। चलो , सफाई करो। सब ,अपने -अपने काम में व्यस्त हैं ,पिताजी दुकान गए हैं ,मिठाई लाने ,थोड़ी देर से ही दरवाजे पर दस्तक हो गई ,नंदू बैठक का दरवाजा खोलकर मेहमानो को बिठाता है , अपना परिचय देता है ,माँ ,पहली बार बैठक में गई ,नंदू ने उनका परिचय करवाया तब तक पिताजी आ गए , सब लोग पुन : व्यस्त हो गए। सुनी की सास दमयंती भी आई हैं।कमला दी को माँ ने बुला लिया है वे खाना बनाने में मदद कर रहीं हैं।
पिताजी का हुक्म हुआ सुनी को बुलाओ , सुनी घबराई सी साड़ी का पल्लू पकडे जा रही है , नंदू उसके साथ है , गुलाबी सिल्क की साड़ी पहन सुनी गुड़िया सी लग रही है , दमयंती सुनी को देखकर खुश है उसे अपने वीरा के लिए ऐसी ही बहु चाहिए थी , वीरा भी कुछ बोल नहीं पा रहाबड़ी मुश्किल से नंदू से फोन नंबर लिया है। दमयंती ने वो सारे सवाल सुनी से कर लिए जो उसे चाहिए। खाना लगा दिया गया , बाजार से नारियल मंगाया गया ,पांच सौ रूपये सुनी को दिए और दमयंती ने रिश्ता पक्का कर दिया।
लड़का आर्मी से है ,घर अच्छा है और क्या चाहिए , बाबा ने कहा शादी जल्दी ही करेंगे। जया अभी घर का काम निबटा रही थी सुनी और सोना ठगी सी बैठी थीं ये क्या हुआ , आज तो सब बदल गया तभी नंदू ने राग छेड़ दिया -छोड़ बाबुल का घर ,आज पिय के नगर मुझे जाना पड़ा ---माँ , इसको समझा लो वरना मैं मार दूंगी , मार के देख मैं ,लेने नहीं आऊंगा बैठी रहना ससुराल में। माँ ,की आँखें नम हो गईं , बेटा ! ऐसा न बोलो , तुम खुद भागे जाओगे अगर बहन से प्यार होगा तो।
माँ , इतनी जल्दी कैसे होगा ? एक महीना तो कम होता है , तुम लोग कपडे का देख लो मैं ,घर के सामान का देख लुंगी और बाबा नंदू बाहर का देख लेंगे
सब हो जायेगा। वीरा के बाबा नहीं हैं तो दमयंती बोल रहीं थीं , हफ्ता पहले आ जाएँगी ,सब रस्में यहीं से कर लेंगी। बाबा ने एक धर्मशाला देख ली है। वीरा ,छुट्टी पर रहेगा सब हो जायेगा। जया के काम निबटने का नाम ही नहीं लेते , बारह तारिख तो सर पर है , मैं ,वृन्दावन जाउंगी ,बिहारी जी के दर्शन करने हैं और कमला के बाबा को शादी में आने को बोलना है। माँ , फोन कर देना ,नहीं लाला ! जाना होता है पीहर जाने की रस्म होती है। ठीक है माँ ,कल चली जाना। वीरा तो दिन भर सुनी से फोन पर झूमता रहता है ,कोई काम ही नहीं करती अब , सोना बोलती है दी , अभी लहंगा तैयार नहीं है ,फोन पर लटकी रहती हो मेरी बात करा दो जीजू से। हाँ ,करा दूंगी चल चुगलखोर।
रात रात भर लड़कियां गाने ,भजन और नाचना करती रहती हैं। आँगन भर जाता है , झीने में बैठकर काम करती हूँ। कोई कह रहा था बारात आ गई , लड़का बहरा है , नहीं तो , अरे ! कान पर फोन जो लगा रहता है ,सब हंस पड़े। माँ , भीतर से खाली हो रही है ,तभी सुनी आकर लिपट जाती है माँ, वीर तो दस दिन बाद वापस चले जायेंगे ,तब मैं आपके पास वापस परीक्षा देने आ जाउंगी। हाँ बेटा ! दमयंती जी कहाँ रहेंगी ? वो बाद में देखा जायेगा तुम अभी खुश हो जाओ। रात को भांवर पद गईं ,सुबह दस बजे विदाई होगी ,एक बजे सबको आगरा वापस जाना है ट्रेन से तो टाइम से स्टेशन जाना होगा।
सुनी बाबा के सीने में घुस गई ,माँ ,एक तरफ खड़ी है बहन भाई सब आपस में सिमट गए हैं। माँ ,से लिपटती सुनी बेसुध सी हो रही है तभी नंदू संभाल लेता है। माँ ,बाबा के रिश्ते से दूर होने का यही भारतीय पल होता है या भारतीय संस्कार होता है जब ,बेटी दूसरे घर जाने के लिए खुशियों के साथ विदा होती है ,नंदू मखाने के साथ पैसे मिलाकर सुनी की गाड़ी पर बिखरा रहा है ,बच्चे पैसे बीन रहे हैं। गांव भर के लोग बेटी विदा कर देते हैं। गाड़ी धीरे -धीरे दूर होती जाती है।
नंदू सुनी को लेने जाता है ,वीर वादा करता है भाई ! दिल्ली ले आना मिलने। आठ दिन बाद नंदू सुनी को ले जाता है और अनमनी सी वापस आ जाती है।
जया ने सत्यनारायण की कथा करवाती है , पंडित जी कथा बांच रहे हैं। खाना रहा है , सब खुश हैं ,औरतें भजन गा रहीं हैं। पंडित जी भोजन करने बैठते ही हैं कि फोन की घंटी बजती है जम्बू से वीर के मामा का फोन है ,बुरी खबर है ,वीरा को गोली लग गई है ,आतंकी हमला हुआ है , अस्पताल ले गए हैं। दमयंती बेहोश है , सुनी को भेज दो जल्दी। नंदू के होश उड़ गए। बाबा को सब जानकारी दी गई , चल सुनी ! जल्दी कर दो जोड़ कपडे रख। नंदू सुनी को लेकर निकल गया।
दमयंती को होश आ गया लेकिन कुछ बताया नहीं , बाबा और चाचा जम्बू चले गए ,दूसरे दिन वीर के दोस्त का फोन आया भाभी वीर हमारे बीच न रहा , मुझे माफ़ करना ऐसी खबर देने के लिए , बाबा यहाँ हैं। घर भर में मातम पसर गया सुनी को कुछ समझ नहीं आया , क्या करे ? दमयंती के सीने से लग गई ,माँ , तुम चाय पिलो , खाओ कुछ। पूरी तरह से अपना होश खोकर दमयंती से चिपक गई। माँ, चिंता न करो वीर जरूर आएंगे। दो दिन बाद वीर को विदा कर दिया गया हमेशा के लिए , सरकारी रस्मो रिवाज चलती रहीं। जया , कुछ समझ नहीं पा रही थी ,सुनी को क्या कहे ?सभी संस्कारों से निवृत होकर घर वाले वापस आ गए ,सुनी दमयंती के पास रह गई ,नंदू टूटे पेड़ सा दुकान जा रहा था न घर में रुक पा रहा था। सोचा थोड़े दिन सुनी के पास जाता हूँ ,बाबा को मना लिया क्योंकि सुनी तीन महीने के गर्भ से थी। सुनी , बेटी बनकर ही दमयंती के पास रहना चाहती है। नंदू को देखा तो ,खुश हो गई भाई ,कुछ दिन रहो न मेरे पास , पास सालों रही हूँ। माँ के पास तो सोना है ,बाबा हैं मेरे पास क्या ? नंदू चुप रह गया ,तुम कहोगी तब जाऊंगा। दमयंती बहन भाई की ठिठोली से अपना गम जाया कर रही है। सुनी , मानो अब ,दमयंती की माँ बन गई है।
रेनू शर्मा
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