आसमान के खुले आँगन में , विशाल चट्टानी इलाके में , बड़े -बड़े बरांडे वाला कोई जीर्ण -शीर्ण मठ है ,या किसी शिव मंदिर के अवशेष हैं , कुछ कहा नहीं जा सकता , प्रांगण की विशालता क़दमों से नहीं मापी जा सकती , पश्चिम में हरा -भरा इलाका है , नीचे तलहटी में पवित्र नदी पूरे जोश में प्रवाहित है , दक्षिण में खंडहर हैं जो हजारों वर्षों से धुप -ताप सहकर अभी कुछ वर्षों पूर्व ही अपने अस्तित्व से हीन हुए हैं , पूर्व में विशाल जलाशय है जो , अथाह समुद्र सा जान पड़ता है , जब सूर्य की अरुणिमा जलाशय पर पड़ती हैं तब लगता है मानो , स्वर्ण थाल आरती के लिए सजा दिया गया हो , शीतल हवा अपने स्पर्श से दिव्यता का भान कराती है , परिसर में खिलते बेला , चमेली , गुलाब के फ़ूलों की महक सम्पूर्ण वातावरण को स्वर्ग सा अनुभूत कराने का प्रयास करा रही है।
ऐसे , मनोरम परिदृश्य में मानव झुण्ड इधर -से -उधर घूम रहे हैं मानो , शरण -स्थली तलाश रहे हों , वे ,लोग लम्बे केशरिया चौंगे पहने हैं , कुछ लोगों ने धोती से ही पूरा शरीर आवृत कर रखा है , लम्बे , घुंघराले बाल कंधे तक बिखरे हैं , चहरे पर आभा प्रस्फुटित हो रही है , मानो , सम्पूर्ण तपस्या स्थली स्वर्ण पिंड बन घूम रही हो।
मेरे साथ पति और कुछ शिष्य हैं जो आज भी साथ हैं , हम गुरु देव को ढूंढ रहे हैं , वे एक बरांडे के पूर्व के कौने में खिड़की के पास एक चौकी पर जलते दीपक के सामने बैठे हैं , पास ही हवन की राख बुझ चुकी है , लम्बा चौंगा धारण किये हैं ,वे समाधिस्त हैं , मैं चुपके से उनके पास जाकर प्रणाम करती हूँ और पद्मासन लगाने का प्रयास करती हूँ वे , पूछ बैठते हैं - तुम !! कैसी हो ? कब , आईं ? सब ठीक है ? अभी मैं , उनके किसी प्रश्न का उत्तर भी नहीं दे पाई कि शिष्य मंडली उन्हें खोजते हुए वहां आ गई , चर्चाओं का दौर शुरू हो गया।
दूसरे पल , मैं , खंडहर में भटक रही हूँ , रास्ता ही नहीं मिल रहा है , नीचे नदी तक जाना है , शिष्यों का समूह मार्ग दिखाता है ,हम इस अद्भुत भू लोक को छोड़कर जा रहे हैं , स्वर्गिक आनंद देने वाला यह स्थान जाने कहाँ है ? जहाँ गुरु देव भी हैं , मैं , इस अलौकिक मार्ग पर हवा में उड़ रही हूँ , असीम आनंद की अनुभूति हो रही है। स्वप्न टूट जाता है लेकिन कई दिनों तक इस रहस्य्मय स्वप्न का रस पान होता रहता है।
रेनू शर्मा
ऐसे , मनोरम परिदृश्य में मानव झुण्ड इधर -से -उधर घूम रहे हैं मानो , शरण -स्थली तलाश रहे हों , वे ,लोग लम्बे केशरिया चौंगे पहने हैं , कुछ लोगों ने धोती से ही पूरा शरीर आवृत कर रखा है , लम्बे , घुंघराले बाल कंधे तक बिखरे हैं , चहरे पर आभा प्रस्फुटित हो रही है , मानो , सम्पूर्ण तपस्या स्थली स्वर्ण पिंड बन घूम रही हो।
मेरे साथ पति और कुछ शिष्य हैं जो आज भी साथ हैं , हम गुरु देव को ढूंढ रहे हैं , वे एक बरांडे के पूर्व के कौने में खिड़की के पास एक चौकी पर जलते दीपक के सामने बैठे हैं , पास ही हवन की राख बुझ चुकी है , लम्बा चौंगा धारण किये हैं ,वे समाधिस्त हैं , मैं चुपके से उनके पास जाकर प्रणाम करती हूँ और पद्मासन लगाने का प्रयास करती हूँ वे , पूछ बैठते हैं - तुम !! कैसी हो ? कब , आईं ? सब ठीक है ? अभी मैं , उनके किसी प्रश्न का उत्तर भी नहीं दे पाई कि शिष्य मंडली उन्हें खोजते हुए वहां आ गई , चर्चाओं का दौर शुरू हो गया।
दूसरे पल , मैं , खंडहर में भटक रही हूँ , रास्ता ही नहीं मिल रहा है , नीचे नदी तक जाना है , शिष्यों का समूह मार्ग दिखाता है ,हम इस अद्भुत भू लोक को छोड़कर जा रहे हैं , स्वर्गिक आनंद देने वाला यह स्थान जाने कहाँ है ? जहाँ गुरु देव भी हैं , मैं , इस अलौकिक मार्ग पर हवा में उड़ रही हूँ , असीम आनंद की अनुभूति हो रही है। स्वप्न टूट जाता है लेकिन कई दिनों तक इस रहस्य्मय स्वप्न का रस पान होता रहता है।
रेनू शर्मा
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