घने बादलों से धरती की ओढ़नी सी बन गई है , हजारों पहाड़ दूर -दूर तक फ़ैल कर हार जैसा बना रहे हैं , हरे -भरे जंगल सब्जी की टोकरी जैसे जान पड़ते हैं , ऐसा लगता है मानो किसी विशाल पंछी का घोंसला हो , मैं , बिना पंख लगाये आसमान में उड़ती चली जा रही हूँ , कभी बादलों पर रुक कर , कुछ पल विश्राम कर रही हूँ , कभी , पंछी मेरे पास आकर , मुझसे बात करने की कोशिश कर रहे हैं , कुछ पल के लिए एक , विशाल पर्वत की खूबसूरत बर्फीली चोटी पर रुक गई हूँ , जी भरकर , वहां से हर तरफ का नज़ारा नेत्रों से पी जाना चाहती हूँ , मानो , मैं , बौरा गई हूँ , दूर अधिक दूर होती जा रही हूँ।
एक , पंछी मुझसे , मेरे वहां आने का कारण जानना चाहता था , मैं , वहां कैसे आई ? मैं , उसे अपना दोस्त बुलाती हूँ , बताती हूँ कि मैं , पूरा ब्रह्माण्ड घूमना चाहती हूँ , पृथ्वी पर बड़ा शोरगुल है , लड़ाई -झगड़ा ,मारा -मारी है। उड़ना चाहती थी , पंछी भी तो उड़ते हैं , उन्हें कैसा लगता होगा , अहसास करना चाहती थी इसलिए यहाँ आ गई। पंछी ने कहा - देखो , यहाँ , इधर -उधर मस्ती करते हुए मत घूमो , तुम्हें नहीं पता , यहाँ , हर जगह देवता , ऋषि , तपस्वी साधना रत हैं , अगर किसी को पता चला तो तुम्हें शाप दे सकते हैं , उनकी आराधना भंग हो सकती है , तुम अब , जाओ , मैं , बोल पड़ी -लेकिन मुझे तो कोई दिखाई नहीं दे रहा , प्लीज !! मुझे दिखाइए ,वे कहाँ हैं ? तभी , पंछी ने कुछ जादू सा किया एक पर्वत की चोटी पर महान जटाधारी साधुवेश में गुरु बैठे हैं , अन्य तपस्वी शिष्य नीचे बैठे साधना कर रहे हैं।
मैं , अपलक उन्हें देखती रही , मैं , कहाँ हूँ ? कुछ समझ नहीं आ रहा था , घबरा गई , आजादी से वहां उड़ने की प्रक्रिया शांत हो गई , वहीँ , कुछ पल बैठ कर शांत होना चाहती थी लेकिन पंछी ने मुझे उड़ा दिया , स्वप्न टूट गया , अलौकिक लोक का आनंद बहुत समय तक करती रही , उड़ने का आनंद कहीं नहीं , पृथ्वी के ऊपर जो आनंद है , आकर्षण है , जो परमानन्द है वह पृथ्वी पर कहीं नहीं।
रेनू शर्मा
एक , पंछी मुझसे , मेरे वहां आने का कारण जानना चाहता था , मैं , वहां कैसे आई ? मैं , उसे अपना दोस्त बुलाती हूँ , बताती हूँ कि मैं , पूरा ब्रह्माण्ड घूमना चाहती हूँ , पृथ्वी पर बड़ा शोरगुल है , लड़ाई -झगड़ा ,मारा -मारी है। उड़ना चाहती थी , पंछी भी तो उड़ते हैं , उन्हें कैसा लगता होगा , अहसास करना चाहती थी इसलिए यहाँ आ गई। पंछी ने कहा - देखो , यहाँ , इधर -उधर मस्ती करते हुए मत घूमो , तुम्हें नहीं पता , यहाँ , हर जगह देवता , ऋषि , तपस्वी साधना रत हैं , अगर किसी को पता चला तो तुम्हें शाप दे सकते हैं , उनकी आराधना भंग हो सकती है , तुम अब , जाओ , मैं , बोल पड़ी -लेकिन मुझे तो कोई दिखाई नहीं दे रहा , प्लीज !! मुझे दिखाइए ,वे कहाँ हैं ? तभी , पंछी ने कुछ जादू सा किया एक पर्वत की चोटी पर महान जटाधारी साधुवेश में गुरु बैठे हैं , अन्य तपस्वी शिष्य नीचे बैठे साधना कर रहे हैं।
मैं , अपलक उन्हें देखती रही , मैं , कहाँ हूँ ? कुछ समझ नहीं आ रहा था , घबरा गई , आजादी से वहां उड़ने की प्रक्रिया शांत हो गई , वहीँ , कुछ पल बैठ कर शांत होना चाहती थी लेकिन पंछी ने मुझे उड़ा दिया , स्वप्न टूट गया , अलौकिक लोक का आनंद बहुत समय तक करती रही , उड़ने का आनंद कहीं नहीं , पृथ्वी के ऊपर जो आनंद है , आकर्षण है , जो परमानन्द है वह पृथ्वी पर कहीं नहीं।
रेनू शर्मा
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