पर्यावरण विद वर्षों से चीख रहे हैं कि पृथ्वी का संतुलन बिगड़ रहा है , चाहे पेड़ -पौधों का हिसाब हो या पशु -पक्षियों और जानवरों की गणना हो , सब हिसाब रखा जा रहा है. कोई नहीं चाहता कि प्राणियोँ की प्रजातियां नष्ट हों।हमारे जंगल उजाड़े जा रहे हैं , गांव जो वीराने में बसे लगते थे अब , कॉंक्रीट के जंगल में बदल गए हैं ,आधुनिक भौतिक सुविधाएँ मुंह फैलाये इंसानी बस्तियों की ओर लपक रहीं हैं ,साधारण जीवन जीने वाला
इंसान अब ,असाधारण हो गया है।
मई जून की भयंकर गर्मी अब ,पता ही नहीं चलती , ए, सी चलते रहते हैं , पिछले दो महीने से सोमा , समिधा से कह रही है दीदी !! आओ न हमारे जयपुर में , समिधा , सोच रही है ,जब झूमर के एग्जाम ख़त्म होंगे तब देखते हैं , काफी वक्त निकल गया सोमा से बात नहीं हो पा रही है , सोमा की पुत्र वधु विधा का जन्म दिन आ रहा है , तब , कोशिश करते हैं , यही सब सोचकर समिधा अपने कार्यक्रम तैयार कर रही है ,तभी , सोमा का फोन आ गया , दीदी !! विधा की तबियत अचानक ख़राब हो गई है , डॉक्टर ने बैड रैस्ट बोल दिया है , क्या करूँ , कुछ समझ नहीं आ रहा है , तुम आ सकती हो ,तो , आने की कोशिश करो , मुझे अस्पताल भी जाना पड़ता है , राहुल तो , दिल्ली में है ,ज्यादा छुट्टी नहीं ले सकता। हाँ , बताती हूँ , विकास !! को आने दो , टिकिट कराती हूँ ,चार दिन बाद ही झूमर का लास्ट पेपर था और दोनो ही जयपुर के लिए निकल गईं।
इस बार सूर्य देवता कुछ अधिक मेहरवान हो रहे हैं , लग ही रहा है , हम प्रकृति से जितना अधिक दुर्व्यवहार करेंगे , पलटकर वही मिलेगा , सब , तरफ हरियाली ख़त्म हो रही है तो शीतलता कहाँ से आएगी। लेकिन इन बातों का क्या फायदा ? काम वाली बाई को समझा दिया है , क्या करना है क्या नहीं , विकास के लिए क्या खाना बनाना है ,सब कुछ उसे रटा दिया है , झूमर खुश हो रही है , चलो घूमने को तो , मिलेगा ही साथ ही शॉपिंग भी कर लेगी , स्टेशन पर राहुल आ गया। ताईजी !! राम -राम !! अरे , झूमर तू तो , कितनी बड़ी हो गई है ? अब ,तो जल्दी शादी करनी पड़ेगी तेरी , नहीं , भैया !! अभी तो मुझे पढ़ना है , ऐसी ही , बेतकल्लुफ वाली बातें करते हुए घर आ गए। सोमा , अस्पताल में थी क्योंकि डॉक्टर ने विधा को उठने के लिए भी मना किया है ,पहले दो बार भी गर्भपात हो चूका है ,इसलिए इस बार सब डरे हुए हैं। विधा की बहन राधा भी आ गई है ,माँ ने उसे बुला लिया था ,घर का काम देख लेती है , हाँ ठीक किया , घर करीने से सजा हुआ है , समिधा , सोफे में धंस जाती है और चाय का मजा ले रही है।
राधा , थोड़ी बातूनी है , झूमर के साथ दोस्ती बना रही है , ताई !! मैं विधा का खाना लेकर जा रहा हूँ आप चलना चाहेंगी , अभी मैं , थोड़ा आराम करती हूँ तुम सोमा को लाओगे तब चली चलूंगी , एक , घंटे के बाद दरवाजे पर दस्तक हुई , दीदी !! आपको रास्ते में कोई तकलीफ तो नहीं हुई , नहीं सोमा !! और समिधा सोमा के गले लग गई , झूमर !! तू तो , बड़ी सुन्दर हो गई है , सोमा नहाने चली गई , सब लोगों ने मिलकर खाना खाया और सोने का प्रयास करने लगे ,सुबह होते ही , झूमर ने रसोई में कदम रखा तो , दंग रह गई , सिंक बर्तनों से भरा हुआ था , शायद रात को लस्सी बनाई गई थी , अस्त -व्यस्त रसोई को झूमर ने दो घंटे में सही किया , फिर माँ और अपने लिए चाय बनाई , सुबह से ही इतनी उमस थी कि रसोई में पसीना आ रहा था , बैठक में आकर समिधा पंखे के नीचे बैठ गई , अखबार भी पढ़ लिया लेकिन अभी न , राधाजी उठी हैं और न, सोमा जी ग्यारह बजने को है , तभी राधा बाहर निकलकर ऐसा प्रगट करती है मानो ,बहुत नादाँ है अरे !! झूमर तुमने बर्तन साफ कर दिए , बड़ी अच्छी हो , और झाड़ू लेकर सफाई करने का तमाशा करने लगी।
सोमा उठीं और चाय का भोग लगाकर नहाने चली गई , मुझे तो अस्पताल जाना है , देर हो रही है , भीतर ए सी जो चल रहा था तो , कौन मुर्ख होगा जो उठना चाहेगा , हम लोग तो सारी रात कूलर के ख़त्म हुए पानी को ही कोसते रहे , राधा , अपने छोटे काम देखती रही और अंततः समिधा को ही रसोई का काम देखना पड़ा , इस बीच राधा रसोई से नदारत ही थी ,झूमर माँ को रसोई से बाहर खींच लाती थी , माँ , आपकी तबियत ख़राब हो जाएगी , आपको आदत नहीं है , मैं ही देख लुंगी , आप बैठो , राहुल दस मिनट में तैयार हो गया , विधा का खाना लेकर सोमा भी चली गई , राधा अपने साज -श्रृंगार में लगी रही , थक -हार कर समिधा और झूमर ने खाना खा लिया और अपने कमरे में चली गईं , झूमर रसोई में गई तो फिर से बर्तनों का ढेर लगा था ,राधा ए सी चलाकर सो रही थी ,चार बजे झूमर ने रसोई साफ की और चाय बनाकर माँ के पास ले गई माँ !! आपको कुछ अजीब नहीं लग रहा है क्या ? हाँ , सोच तो रही थी , लेकिन कोई बात नहीं बीमार की मदद करने आये हैं तो , ठीक है ,तभी राधा अपनी थाली लेकर बाहर निकली जिसमें दही , दाल ,चावल , अचार सब की उपस्तिथि दिखाई दे रही थी ,जबकि हम लोगों ने सिर्फ दाल रोटी खाई थी , एक बार भी हम लोगों से नहीं बोला कि आप भी अंदर आ जाइये , सिंक में बर्तन डाले और वापस अंदर , माँ को या बात चुभ गई ,झूमर !! वापसी का टिकिट करा लो मैं अधिक दिनों तक यह सब बर्दास्त नहीं कर पाऊँगी , हम कोई नौकर हैं जो सुबह से शाम तक काम करते रहें और ये महारानी मौज उड़ाती रहें , इसी तरह की तकल्लुफ के साथ चार दिन तो , निकल गए पर अब ,तो , झूमर भी परेशान हो गई माँ , अपने घर में क्या कमी है जो हम यहाँ , सजा भोग रहे हैं।
सोमा का वाही नियम है , राधा अपने काम के लिए बात करती है , समिधा और झूमर ही आपस में बात करते रहते हैं , एक दिन जाकर समिधा विधा से मिलकर भी आ गई है क्योंकि रविवार था , हम दौनों से छिपकर खाना भी खाते हैं तीनो लोग , माँ,आज शाम का टिकिट करा लेती हूँ और समिधा ने अपना बैग तैयार कर लिया , राहुल के आते ही बोला हमें बस स्टेशन छोड़ दो , अरे !! ताई जी !! क्या हुआ ? अभी तो हफ्ता भर भी नहीं हुआ , आप जा रहे हो , विधा को घर तो आने दो , नहीं बेटा !! अब , जाना ही है , सोमा का चेहरा सफ़ेद पड़ गया ,वो समझ रही थी कि हम क्या कर रहे हैं , अभी तो आप लोग जयपुर भी नहीं घूम पाये ? लेकिन समिधा ने अपना निर्णय नहीं बदला , सोच रही थी अब , राधा मैडम का मौसम बदलेगा जब , रसोई में काम करेगी , तब पता चलेगा कि पर्यावरण संतुलन क्या होता है।
समिधा रास्ते भर सोचती रही आखिर ऐसा , उन लोगों ने क्यों किया ? क्या , आज कल रिश्तों की मर्यादा बस , अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए ही है , या हमें अहसास दिलाया गया है कि रिश्तों में संवेदना , भावनाओं और मानवीयता का कोई स्थान नहीं है। एक लम्बी सांस के साथ समिधा ने कोई ठोस निर्णय लिया था।
रेनू शर्मा
इंसान अब ,असाधारण हो गया है।
मई जून की भयंकर गर्मी अब ,पता ही नहीं चलती , ए, सी चलते रहते हैं , पिछले दो महीने से सोमा , समिधा से कह रही है दीदी !! आओ न हमारे जयपुर में , समिधा , सोच रही है ,जब झूमर के एग्जाम ख़त्म होंगे तब देखते हैं , काफी वक्त निकल गया सोमा से बात नहीं हो पा रही है , सोमा की पुत्र वधु विधा का जन्म दिन आ रहा है , तब , कोशिश करते हैं , यही सब सोचकर समिधा अपने कार्यक्रम तैयार कर रही है ,तभी , सोमा का फोन आ गया , दीदी !! विधा की तबियत अचानक ख़राब हो गई है , डॉक्टर ने बैड रैस्ट बोल दिया है , क्या करूँ , कुछ समझ नहीं आ रहा है , तुम आ सकती हो ,तो , आने की कोशिश करो , मुझे अस्पताल भी जाना पड़ता है , राहुल तो , दिल्ली में है ,ज्यादा छुट्टी नहीं ले सकता। हाँ , बताती हूँ , विकास !! को आने दो , टिकिट कराती हूँ ,चार दिन बाद ही झूमर का लास्ट पेपर था और दोनो ही जयपुर के लिए निकल गईं।
इस बार सूर्य देवता कुछ अधिक मेहरवान हो रहे हैं , लग ही रहा है , हम प्रकृति से जितना अधिक दुर्व्यवहार करेंगे , पलटकर वही मिलेगा , सब , तरफ हरियाली ख़त्म हो रही है तो शीतलता कहाँ से आएगी। लेकिन इन बातों का क्या फायदा ? काम वाली बाई को समझा दिया है , क्या करना है क्या नहीं , विकास के लिए क्या खाना बनाना है ,सब कुछ उसे रटा दिया है , झूमर खुश हो रही है , चलो घूमने को तो , मिलेगा ही साथ ही शॉपिंग भी कर लेगी , स्टेशन पर राहुल आ गया। ताईजी !! राम -राम !! अरे , झूमर तू तो , कितनी बड़ी हो गई है ? अब ,तो जल्दी शादी करनी पड़ेगी तेरी , नहीं , भैया !! अभी तो मुझे पढ़ना है , ऐसी ही , बेतकल्लुफ वाली बातें करते हुए घर आ गए। सोमा , अस्पताल में थी क्योंकि डॉक्टर ने विधा को उठने के लिए भी मना किया है ,पहले दो बार भी गर्भपात हो चूका है ,इसलिए इस बार सब डरे हुए हैं। विधा की बहन राधा भी आ गई है ,माँ ने उसे बुला लिया था ,घर का काम देख लेती है , हाँ ठीक किया , घर करीने से सजा हुआ है , समिधा , सोफे में धंस जाती है और चाय का मजा ले रही है।
राधा , थोड़ी बातूनी है , झूमर के साथ दोस्ती बना रही है , ताई !! मैं विधा का खाना लेकर जा रहा हूँ आप चलना चाहेंगी , अभी मैं , थोड़ा आराम करती हूँ तुम सोमा को लाओगे तब चली चलूंगी , एक , घंटे के बाद दरवाजे पर दस्तक हुई , दीदी !! आपको रास्ते में कोई तकलीफ तो नहीं हुई , नहीं सोमा !! और समिधा सोमा के गले लग गई , झूमर !! तू तो , बड़ी सुन्दर हो गई है , सोमा नहाने चली गई , सब लोगों ने मिलकर खाना खाया और सोने का प्रयास करने लगे ,सुबह होते ही , झूमर ने रसोई में कदम रखा तो , दंग रह गई , सिंक बर्तनों से भरा हुआ था , शायद रात को लस्सी बनाई गई थी , अस्त -व्यस्त रसोई को झूमर ने दो घंटे में सही किया , फिर माँ और अपने लिए चाय बनाई , सुबह से ही इतनी उमस थी कि रसोई में पसीना आ रहा था , बैठक में आकर समिधा पंखे के नीचे बैठ गई , अखबार भी पढ़ लिया लेकिन अभी न , राधाजी उठी हैं और न, सोमा जी ग्यारह बजने को है , तभी राधा बाहर निकलकर ऐसा प्रगट करती है मानो ,बहुत नादाँ है अरे !! झूमर तुमने बर्तन साफ कर दिए , बड़ी अच्छी हो , और झाड़ू लेकर सफाई करने का तमाशा करने लगी।
सोमा उठीं और चाय का भोग लगाकर नहाने चली गई , मुझे तो अस्पताल जाना है , देर हो रही है , भीतर ए सी जो चल रहा था तो , कौन मुर्ख होगा जो उठना चाहेगा , हम लोग तो सारी रात कूलर के ख़त्म हुए पानी को ही कोसते रहे , राधा , अपने छोटे काम देखती रही और अंततः समिधा को ही रसोई का काम देखना पड़ा , इस बीच राधा रसोई से नदारत ही थी ,झूमर माँ को रसोई से बाहर खींच लाती थी , माँ , आपकी तबियत ख़राब हो जाएगी , आपको आदत नहीं है , मैं ही देख लुंगी , आप बैठो , राहुल दस मिनट में तैयार हो गया , विधा का खाना लेकर सोमा भी चली गई , राधा अपने साज -श्रृंगार में लगी रही , थक -हार कर समिधा और झूमर ने खाना खा लिया और अपने कमरे में चली गईं , झूमर रसोई में गई तो फिर से बर्तनों का ढेर लगा था ,राधा ए सी चलाकर सो रही थी ,चार बजे झूमर ने रसोई साफ की और चाय बनाकर माँ के पास ले गई माँ !! आपको कुछ अजीब नहीं लग रहा है क्या ? हाँ , सोच तो रही थी , लेकिन कोई बात नहीं बीमार की मदद करने आये हैं तो , ठीक है ,तभी राधा अपनी थाली लेकर बाहर निकली जिसमें दही , दाल ,चावल , अचार सब की उपस्तिथि दिखाई दे रही थी ,जबकि हम लोगों ने सिर्फ दाल रोटी खाई थी , एक बार भी हम लोगों से नहीं बोला कि आप भी अंदर आ जाइये , सिंक में बर्तन डाले और वापस अंदर , माँ को या बात चुभ गई ,झूमर !! वापसी का टिकिट करा लो मैं अधिक दिनों तक यह सब बर्दास्त नहीं कर पाऊँगी , हम कोई नौकर हैं जो सुबह से शाम तक काम करते रहें और ये महारानी मौज उड़ाती रहें , इसी तरह की तकल्लुफ के साथ चार दिन तो , निकल गए पर अब ,तो , झूमर भी परेशान हो गई माँ , अपने घर में क्या कमी है जो हम यहाँ , सजा भोग रहे हैं।
सोमा का वाही नियम है , राधा अपने काम के लिए बात करती है , समिधा और झूमर ही आपस में बात करते रहते हैं , एक दिन जाकर समिधा विधा से मिलकर भी आ गई है क्योंकि रविवार था , हम दौनों से छिपकर खाना भी खाते हैं तीनो लोग , माँ,आज शाम का टिकिट करा लेती हूँ और समिधा ने अपना बैग तैयार कर लिया , राहुल के आते ही बोला हमें बस स्टेशन छोड़ दो , अरे !! ताई जी !! क्या हुआ ? अभी तो हफ्ता भर भी नहीं हुआ , आप जा रहे हो , विधा को घर तो आने दो , नहीं बेटा !! अब , जाना ही है , सोमा का चेहरा सफ़ेद पड़ गया ,वो समझ रही थी कि हम क्या कर रहे हैं , अभी तो आप लोग जयपुर भी नहीं घूम पाये ? लेकिन समिधा ने अपना निर्णय नहीं बदला , सोच रही थी अब , राधा मैडम का मौसम बदलेगा जब , रसोई में काम करेगी , तब पता चलेगा कि पर्यावरण संतुलन क्या होता है।
समिधा रास्ते भर सोचती रही आखिर ऐसा , उन लोगों ने क्यों किया ? क्या , आज कल रिश्तों की मर्यादा बस , अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए ही है , या हमें अहसास दिलाया गया है कि रिश्तों में संवेदना , भावनाओं और मानवीयता का कोई स्थान नहीं है। एक लम्बी सांस के साथ समिधा ने कोई ठोस निर्णय लिया था।
रेनू शर्मा
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