Monday, May 19, 2014

जूते

उत्तर प्रदेश के एक गाँव में दूर के रिश्तेदार की शादी में ताई के साथ गई थी। उस समय मेरी उम्र ८ बरस रही होगी , घर इतना बड़ा था कि पूरी बारात ही पंगत के लिये वहीं बिठा दी गई। लड़की की शादी थी , उस दिन बारात  का दूसरा दिन था , तीन तीन दिन तक बारात रुका करती थी , बढ़हार की दावत चल रही थी , कई मिठाइयां बनी थी , दही बूरा तो भरपूर था , कुछ लोग तो हाथ से नाप कर पूरियां खाते थे। उन्हे देखकर मुझे तो बहुत मजा आ रहा था ,कोई तो मिर्च वाला रायता पी रहा था , कोई सब्जी पूरी खा रहा था। तभी बाहर से शोर सुनाई देने लगा किसी का जूता चोरी हो गया है।
जूता चोरी होने के कारण सभी रिश्तेदार परेशान हो रहे थे , सबसे ज्यादा वह व्यक्ति दुखी था जो जूता दूसरे गाँव के लड़के से मांग कर लाया था , कुछ दिन पहले ही उसकी शादी हुई थी। जूता देने वाला दूर का रिश्तेदार था , उस समय जूता पास में होना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी , लोग एक दूसरे से कपडे, जूते ,उधार मांग लेते थे। जो व्यक्ति जूता ले जाता था , बड़े जतन से स्वाफी में छुपाकर रखता था , पूरे समय नंगे पैर ही रहता था ,बारात आते समय ही पहन लेता था। मांगी हुई वस्तु का पूरा ध्यान रखा जाता था। अगर जूता बड़ा होता तो आगे कपड़ा लगा लेते थे।
इसलिए जूता खोते ही कोहराम मच गया। उस लड़के का तो खाना पीना , नींद , सुख चैन सब ख़राब हो गया। उसे हर जगह जूता ही दिखाई दे रहा था। सब जगह तलाशी ली गई , कोई फायदा नहीं हुआ। जूता नहीं मिला। मिलता भी कैसे , जिस व्यक्ति की उन जूतों पर नज़र थी , वह तो खाना बिना खाए ही वहां से रफूचक्कर हो चुका था। लड़की के भाई ने आश्वासन दिया कि जूता हम खोजकर देंगे। लेकिन उसे चैन कहाँ ? मछली जैसा बेचैन हो रहा था। करता भी क्या ? किसी को नहीं बताया कि जूता किसी और से उधार लिया था।
अब किसी और की शादी में ही जूता मिल सकता था। वह भी तब जब जूता लेने वाला भी आ जाये और जूता पहने भी।  यह तो पक्का था कि जूता अभी पहना नहीं जायेगा , लड़की के भाई ने अपने दोस्तों को बता दिया जैसे ही जूता दिखे तुरंत खबर कर देना। करीब एक माह के भीतर ही वह अवसर भी आ गया।  गांव के जमीदार के घर लड़के की शादी आ गई। अब राम खिलावन खुश था , शायद जूता मिल जायेगा और उसकी जान बच जाएगी क्योंकि उसकी तो औकात ही नहीं थी कि जूता खरीदकर दे सके। उसे यह तो भरोसा था कि जूता नया ही होगा , चोरी करने वाले की भी हिम्मत नहीं थी , कहीं पहनकर जाये।
जमींदार के बेटे की दावत शुरू हो चुकी थी , खिलावन की नजरें जूतों पर लगी हुई थी , तभी एक आदमी आया और बड़ा रौव दिखाता हुआ खाने की पत्तल के पास अपने जूते उतार कर बैठा , वह तो जमीदार का ही रिश्तेदार निकला , अब क्या था , सब लोग उसे भला -बुरा कहने लगे। राम खिलावन ने जूते उठाये और स्वाफी में बांध लिए , अब कलह करने का कोई मतलब नहीं था और अपने दोस्त को जूते वापस कर दिए। फिर कसम खा ली , कभी भी किसी व्यक्ति से कोई भी वस्तु उधार नहीं लेगा।

विद्द्या शर्मा 

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