Monday, May 12, 2014

साईकिल की खरीदी

परीक्षा समाप्त होते ही , हम लोग यानि सारे भाई -बहिन पैतृक गाँव जाया करते थे। पिताजी ही हमें छोड़ने जाया करते थे। कानपुर के बाबू पुरवा मेँ एक दो मंजिल घर था जहॉं ताऊजी ,ताईजी माँ और हम सब १२ बच्चे रहते थे। गाँव में दूसरे ताऊजी रहतें थे उनका एकांत भंग करनेहम लोग दो महीनें के लिये जाते थे।

एक दिन हम लोग सोकर उठे ,तब पता चला ताऊजी तो टूण्डला गए हैं ,उनके लंगोटिया यार गिरधर दयाल चिरौली गॉँव से आये थे क्योंकि ताऊजी को साइकिल खरीदनी थी। उस समय सडकें नहीं थी इसलिए सुबह जल्दी ही घर से निकलना पड़ता था। आने -जाने का साधन ही नहीं था। ताऊजी को पहले से पता होता कि आज दयाल आ जायेगा तो चार -पाँच पराठे अचार के साथ जरूर रखवा लेते लेकिन आज तो अचानक साइकिल खरीदने का बिगुल बज गया। जेठ की धूप बीमार न करदे इसलिए जल्दी जाना पडा.

धूप निकलते ही वे लोग टूण्डला पहूँच गये थे ,अभीभी दुकान खुलने का समय नहीं हुआ था ,एक नीम के पेड के नीचे स्वाफी बिछाकर आराम करने के लिये लेट गये। ठंडी हवा लगी तो नींद आ गई ,दयाल जी ने करवट ली तो पता चला उनकी स्वाफी पर कुत्ता सो रहा था। उन्होंने ताऊजी को आवाज लगाई अरे !!! ठेकेदार उठो कुत्ता मुँह चाट गया ,अब तो दुकान भी खुल गई होगी।

ताऊजी गाँव में लगने वाली हाट -बाजार का ठेका लेते थे इसलिए सभी उन्हेँ ठेकेदार साब कहते थे। दोनों साइकिल की दुकान पर पहुँच गये , पता चला साईकिल १३ रुपये की है जो दस बरस पहले १० रुपये की थी। लेनी तो थी , इसलिए १३ रुपये में ही ले ली गई। साईकिल को कसया गया क्योंकि सारे पार्ट्स अलग -अलग ही मिलते थे। रसीद ली गई , ताऊजी ने संभाल कर रखली। साईकिल लेकर दोनों बाहर आ गये। ताऊजी बहुत खुश थे , चलो अब पैदल नही चलना पड़ेगा। जल्दी से गाँव पहुँच जायेंगे लेकिन उन्होने देखा दयाल जी ने सायकिल सिर पर रखली। अरे !! क्या करते हो दयाल ? साईकिल से चलते हैं जल्दी पहुंचेंगे , भूँख भी लगी है ,नहाना धोना भी है। दयालजी , बोले !!आगे एक गाँव है वहाँ पानी पी लेना , अभी चलो।

दयालजी , आगे -आगे चलने लगे। ताऊजी बेचारे उनके पीछे चलने लगे , जब गाँव में पहुंचें तो लोगों क़ी भीड़ लग गई। पानी पीकर आराम किया और दयालजी ने सायकिल सिर पर रखी तो गॉँव वाले हंसने लगे , अरे !!बाबूजी !! साईकिल से जाओ ,इसपर दयालजी भड़क गये , पहिया घिस जायेंगे , अभी नईं है। दयालजी नहीं माने और गाँव तक पहुँच गये , जब खेत दिखने लगे तब ताऊजी बोले !! दयाल , अब तो शर्म कर , लोग क्या कहेंगे , पर दयाल तो पक्का पहलवान निकला घर के चबूतरे पर साइकिल रखकर ही दम लिया। चिरौली तो अभी चार -पांच किलोमीटर दूर थी। दयालजी !! चबूतरे पर ही पसर गये। धीरे -धीरे भीड़ लगने लगी और ताऊजी सारी थकान भुला चुके थे

विद्या शर्मा 

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