हमारी बड़ी बहन एक प्रतिष्ठित परिवार में बहु बनकर गईं , उनके पति वकील थे लेकिन काम कुछ नहीं हो पाता था उनसे , क्योंकि उनकी पढाई भी सिर्फ नाम के लिए ही हुई थी , परिवार का पूरा खर्चा हमारे ताऊजी ही उठाते थे। हमारी दी तो पढ़ी -लिखी नहीं थी और न कढ़ाई करना आता था। पर वे खाना बहुत ही स्वादिष्ट बनाती थी। उनके डाले हुए अचार , मुरब्बे ,पापड़ ,बड़ियां सब लोग याद करते थे। उनका नाम मणि था। माँ , बापू की अकेली संतान थी तो बड़े लाड -प्यार में पाली थी। जब कभी वे कुछ नया बनाती तो हम लोगों को जरूर खिलाती थी।
हम सब लोग एक ही घर में ,चाचा , ताऊ के बच्चे धमा -चौकड़ी मचाया करते थे। कोई अपना -पराया नहीं था ,शादी होने तक हम लोग ये नहीं समझ पाये थे कि कौन चाचा का बच्चा है ,कौन ताऊ का। मणि दी बड़ी थी इसलिए उनकी शादी पहले हुई। जब गर्मी की छुट्टियां हुई तो हम दी के पास धौलपुर गए , कोई पूछता तो कहती मेरी छोटी बहन है , हम बहुत खुश रहते थे। दी, के पास जाने को मिलता था।
शादी के कई सालों बाद उनके घर में बेटी का जन्म हुआ , हम लोग भी गए ,सब तरफ ख़ुशी का माहौल था , गाना -बजाना हो रहा था ,वहां एक दस साल के लड़के को देखकर हम लोग आश्चर्य चकित हो गए , महिलाओं के बीच बैठकर जच्चे गा रहा था। कभी भजन गाता , कभी फ़िल्मी गाने गाने लगता। उसकी आवाज भी बड़ी सुरीली थी , मणि दी से पूछा तो पता चला कि यह अनाथ बच्चा है और उनकी किसी दूर की रिश्तेदार के पास रहता है , घर का काम करता है और गाने गाता रहता है। कभी तो साड़ी पहनकर डांस भी कर लेता है , सबके आकर्षण का केंद्र मनु ठाकुर बना हुआ था।
उसी बधाई उत्सव में मेजर कुमार शर्मा भी सपरिवार आये हुए थे। वे लोग मनु से इतने प्रभावित हुए कि जाते समय मनु के संरक्षक से उसे हमेशा के लिए मांग लिया , पहले तो वे , घबरा गए , फिर बच्चे की पढाई -लिखाई का जब हवाला दिया गया तब ठाकुर विमल कांत जी मान गए। बड़ी कोशिशों के बाद मनु को अपने साथ ले जाने में शर्मा जी सफल हो गए।
मेजर शर्मा ने मनु को अच्छे स्कूल में दाखिला दिला दिया और कुस्शाग्र बुद्धि मनु हर कक्षा में प्रथम आते हुए अपनी पढाई करने लगा , गाने की प्रतियोगिता में भी प्रथम आता था , शर्मा जी के साथ मनु भी उनके बेटे की तरह ही रहने लगा। थोड़े समय में ही पिछला सब भूल गया। अब ठाकुर मनु को सब लोग मनु शर्मा के नाम से जानते थे। मेजर शर्मा के घर में पुरस्कार में मिली शील्डों से घर भर गया।
करीब बीस साल बाद मणि दी की बेटी की शादी में हमें फिर से धौलपुर जाने का मौका मिला , इस बीच काफी कुछ बदल चुका था , मणिदी भी पुराना घर छोड़ चुकी थी , अब , रिश्तेदार भी कम हो गए थे , लेकिन मणि दी के मधुर स्वभाव के कारण सभी लोग उनसे जुड़े हुए थे। मणि दी की बेटी की शादी बड़ी धूम -धाम से हो रही थी अभी भी पूरा खर्च ताऊजी ही कर रहे थे। शादी में मेजर साब मनु के साथ पहुंचे , इंजीनियर मनु शर्मा को देखकर सबकी आँखें फटी रह गयी , सभी उसकी किस्मत की सराहना कर रहे थे और मेजर साब की तारीफ कर रहे थे। मनु को पता था कि मेजर साब उसके असली माता -पिता नहीं हैं लेकिन वो बहुत खुश लग रहा था। अच्छी परिवरिश व्यक्ति को अच्छा इंसान बनाती है ,यह सभी को समझ आ रहा था।
विद्या शर्मा
हम सब लोग एक ही घर में ,चाचा , ताऊ के बच्चे धमा -चौकड़ी मचाया करते थे। कोई अपना -पराया नहीं था ,शादी होने तक हम लोग ये नहीं समझ पाये थे कि कौन चाचा का बच्चा है ,कौन ताऊ का। मणि दी बड़ी थी इसलिए उनकी शादी पहले हुई। जब गर्मी की छुट्टियां हुई तो हम दी के पास धौलपुर गए , कोई पूछता तो कहती मेरी छोटी बहन है , हम बहुत खुश रहते थे। दी, के पास जाने को मिलता था।
शादी के कई सालों बाद उनके घर में बेटी का जन्म हुआ , हम लोग भी गए ,सब तरफ ख़ुशी का माहौल था , गाना -बजाना हो रहा था ,वहां एक दस साल के लड़के को देखकर हम लोग आश्चर्य चकित हो गए , महिलाओं के बीच बैठकर जच्चे गा रहा था। कभी भजन गाता , कभी फ़िल्मी गाने गाने लगता। उसकी आवाज भी बड़ी सुरीली थी , मणि दी से पूछा तो पता चला कि यह अनाथ बच्चा है और उनकी किसी दूर की रिश्तेदार के पास रहता है , घर का काम करता है और गाने गाता रहता है। कभी तो साड़ी पहनकर डांस भी कर लेता है , सबके आकर्षण का केंद्र मनु ठाकुर बना हुआ था।
उसी बधाई उत्सव में मेजर कुमार शर्मा भी सपरिवार आये हुए थे। वे लोग मनु से इतने प्रभावित हुए कि जाते समय मनु के संरक्षक से उसे हमेशा के लिए मांग लिया , पहले तो वे , घबरा गए , फिर बच्चे की पढाई -लिखाई का जब हवाला दिया गया तब ठाकुर विमल कांत जी मान गए। बड़ी कोशिशों के बाद मनु को अपने साथ ले जाने में शर्मा जी सफल हो गए।
मेजर शर्मा ने मनु को अच्छे स्कूल में दाखिला दिला दिया और कुस्शाग्र बुद्धि मनु हर कक्षा में प्रथम आते हुए अपनी पढाई करने लगा , गाने की प्रतियोगिता में भी प्रथम आता था , शर्मा जी के साथ मनु भी उनके बेटे की तरह ही रहने लगा। थोड़े समय में ही पिछला सब भूल गया। अब ठाकुर मनु को सब लोग मनु शर्मा के नाम से जानते थे। मेजर शर्मा के घर में पुरस्कार में मिली शील्डों से घर भर गया।
करीब बीस साल बाद मणि दी की बेटी की शादी में हमें फिर से धौलपुर जाने का मौका मिला , इस बीच काफी कुछ बदल चुका था , मणिदी भी पुराना घर छोड़ चुकी थी , अब , रिश्तेदार भी कम हो गए थे , लेकिन मणि दी के मधुर स्वभाव के कारण सभी लोग उनसे जुड़े हुए थे। मणि दी की बेटी की शादी बड़ी धूम -धाम से हो रही थी अभी भी पूरा खर्च ताऊजी ही कर रहे थे। शादी में मेजर साब मनु के साथ पहुंचे , इंजीनियर मनु शर्मा को देखकर सबकी आँखें फटी रह गयी , सभी उसकी किस्मत की सराहना कर रहे थे और मेजर साब की तारीफ कर रहे थे। मनु को पता था कि मेजर साब उसके असली माता -पिता नहीं हैं लेकिन वो बहुत खुश लग रहा था। अच्छी परिवरिश व्यक्ति को अच्छा इंसान बनाती है ,यह सभी को समझ आ रहा था।
विद्या शर्मा
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