Tuesday, May 26, 2009

मगर और बन्दर


एक नदी के किनारे बहुत सारे जामुन के पेड थे , बन्दर उन पेडों पर खूब उछल -कूद मचाया करते थे । नदी में एक मगर भी अपने परिवार के साथ रहता था । कभी धूप सेकने नदी किनारे आ जाया करता था , ललचाई आंखों से बंदरों को देखा करता था ।

एक बन्दर ने मगर से दोस्ती कर ली थी , कभी -कभी उसे जामुन खाने को दे देता था । बन्दर के साथियों ने उसे आगाह किया कि मगर से सावधान रहना , पर सोनू ने कोई परवाह नही की। मगर अपनी पत्नी से जामुन की बड़ी तारीफ करता था । पत्नी की फरमाइश मगर ने बन्दर तक पहुँचा दी । बन्दर बड़ा खुश हुआ ।

बन्दर के स्वादिष्ट मांस का भोजन करने के लिए पत्नी बेचैन हो गई । उसने पति से कहा - किसी तरह बन्दर को हमारे पास लेकर आओ । उसका कलेजा हमें खाना है ।

मगर ने बन्दर को खाने के लिए निमंत्रण दिया , बन्दर ने कहा में कैसे जा सकता हूँ ? नदी गहरी है , अरे !! तुम मेरी पीठ पर बैठ जाना और हम पहुँच जायेंगे । बीच नदी में पहुँच कर मगर ने कहा - दोस्त मुझे तुम्हारी जान लेनी पड़ेगी । मेरी पत्नी तुम्हारा कलेजा खाना चाहती है । बन्दर को अपने दोस्तों की बात याद आ गई । उसने धीरज नही खोया और मगर से बोला - यार तुमने पहले क्यों नही बताया , मेरा कलेजा तो पेड पर सूख रहा है । वापस चलो , मैं तुम्हें कलेजा दे दूंगा ।

मगर उसकी बातों में गया , बन्दर तुंरत पेड पर चढ़ गया और बोला - मूर्ख !!! धोखेवाज !! तुमने मुझे धोखा दिया , अब तुमसे मेरी दोस्ती भी ख़तम । में ही ग़लत था , मैंने अपने दोस्तों की बात पर विश्वास नही किया । बन्दर अपने साथियों के पास गया और सारी बात बता दी । सब लोग मगर को धिक्कारने लगे ।

धोखा देने वाला भी कभी- कभी मूर्खतावश जाल में फंस जाता है ।

रेनू ...

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