एक नगर मैं , सेठ जी अपने खुश हाल बच्चों सहित रहते थे । उनका बेटा जब बड़ा हुआ तब ,विवाह संस्कार होने पर अत्यन्त सुंदर सुशील बहु घर आ गई । संस्कार उसके व्यवहार से ही झलकते थे । बहु का नाम लक्ष्मी था । उसने देखा ससुर करोदिमल बड़े सज्जन हैं लेकिन बड़े कंजूस हैं । लक्ष्मी का मन दुखी हो गया ।
एक दिन बाजरे और ज्वर के आते की मोटी रोटी बना कर ससुर जी को परोस दी । भोजन देखते ही सेठ जी बहु से बोले -बेटी !! लक्ष्मी , घर में आता तो गेहूं का है , पर मुझे बाजरे ज्वर की रोटी क्यों परोसी है ? बहु ने नम्रता पूर्वक जवाब दिया - पिताजी , आपने जो भंडारा गरीबों के लिए खोल रखा है , उसमें भूखे , गरीब लोग तो किसी तरह अपना पेट भर लेते हैं । सुना है - यही भोजन आप दान करते है ।
ज्ञानी पुरूष कहते हैं कि जैसा इस लोक में दान किया जाता है , वैसा ही परलोक में मिलता है । आप परलोक में ऐसी रोटी कैसे खा पाएंगे , यही सोच कर आपकी थाली में यह रोटी परोसी है । सेठ जी समझ गए , कि मुझे दान भी उत्तम और स्वच्छ ही करना चाहिए । लक्ष्मी के धर्म ज्ञान पर सेठ जी प्रसन्ना हो गए और भंडारे की बागडोर बहु को सौप दी गई ।
रेनू ...
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