Sunday, March 22, 2009

मास्टर जी


बिन्दू और धीरू दो मित्र थे। दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। चौथे घंटे में उनको जो अध्यापक गणित पढ़ाते थे वह बहुत मोटे थे। मोटे आदमियों को देखकर अक्सर हंसी आ जाती है। मगर उनकी शक्ल इतनी डरावनी थी कि उनको देखकर विद्यार्थियों के होश उड़ जाते थे। वह डांटते-मारते भी बहुत थे। बेंच पर खड़ा कर देना तो उनकी आदत हो गई थी।? कोई दिन ऐसा नहीं जाता था, जिस दिन पांच-दस लड़के बेंच पर न खड़े किये जाते हों। जो जरा सा हंसा या देर से कक्षा में आया या हाजरी देने में गड़बड़ाया, उसे तुरंत बेंच पर खड़ा होना पड़ता था। बेंच पर खड़ा होना एक नियम हो गया था। जो लड़का किसी दिन बेंच पर नहीं खड़ा होता था तो उसको किसी न किसी बहाने डांट-फटकार सुननी पड़ती थी। या मार खानी होती थी। यही कारण था कि उनका शरीर मोटा होने पर भी लड़कों को हंसी नहीं आती थी। और जब तक वे उनकी कक्षा में रहते थे, बड़े सहमे-सहमे रहते थे। जो भी काम वह देते थे वे पूरा करके लाते थे। एक दिन की बात है। बिन्दू उनके दिये हुए सवाल नहीं कर पाया। कक्षा में आते ही उसने धीरू की कापी से सवाल अपनी कापी में उतार लिए। असल में बिन्दू को समय ही नहीं मिल पाया था कि वह सवाल लगा लेता। कक्षा में आकर उन्होंने जब सबसे कापी मांगी तो धीरू ने भी दे दी। बिन्दू ने भी दे दी। और विद्यार्थियों ने भी दे दी। कापी जांचते-जांचते उन्होंने पता नहीं कैसे पकड़ लिया कि बिन्दू ने नकल की है। 'क्यों बिन्दू, तुमने ये प्रश्न नकल किये है न?' 'जी नहीं, सर! मैं... मैं... मैंने तो नहीं सर।' 'सही सही बताओ। की है कि नहीं।' उन्होंने अबकी जोर से बेंत मेज पर पटक कर पूछा। बिन्दू एकदम चौंककर पीछे हट गया। कक्षा के सारे लड़के बिन्दू की तरफ देखने लगे। फिर कोई अपनी कापी पलटने लगा, कोई किताब में अपनी आंखें गड़ा कर बैठ गया। गणित के अध्यापक की तरफ देखने की हिम्मत किसी की नहीं हुई। क्या पता किसको डांट पड़ जाए। धीरू भी भीतर ही भीतर डर रहा था कि कहीं उसको भी न लपेटा जाये। क्योंकि बिन्दू ने उसी की कापी से नकल की थी। बिन्दू घबरा रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह हां कहे या न कहे। पहले पूछने पर वह मना कर चुका था कि उसने नकल नहीं की है। अत: अगर वह हब स्वीकार कर लेता है तो गणित के अध्यापक उसे झूठा कह कर अपमानित और दण्डित करेंगे। बिन्दू इसी उधेड़ बुन में कोई जवाब नहीं दे पाया। गणित के अध्यापक ने उसकी कापी मेज पर फेंकते हुए कहा, 'एक तो नकल करता है, ऊपर से गूंगा बनता है। पाजी!... और धीरू, तुमने इसे नकल करवाई है। खड़े हो जाओ बेंच पर!' धीरू जल्दी से बेंच कर खड़ा हो गया। वह जानता था कि अगर जरा भी हील-हुज्जत की कोई और भी सजा भुगतनी पड़ जाएगी। लेकिन गणित के अध्यापक ने बिन्दू को बेंच पर नहीं खड़ा किया। न मारा ही। मानीटर को बुला कर आदेश दिया, 'बिन्दू के माथे पर स्याही से लिखो 'चोर' और इसे सब कक्षाओं में घुमा लाओ!' सारी कक्षा एकदम से सन्न रह गई। यह तो बहुत बड़ा अपमान था। सभी कक्षाओं के छात्रों के सामने बिन्दू जलील होगा। नकल तो लगभग सभी करते हैं। बिन्दू कुछ देर चुप रहा, फिर उसने कहा, 'माशाब, मैंने नकल इसलिए नहीं की है कि सवाल मुझे आते नहीं हैं।' सारी कक्षा बिन्दू की सूरत देखने लगी। गणित के अध्यापक से इस प्रकार कोई बात नहीं करता था। उन्होंने गरज कर पूछा, 'तब किसलिए की?' 'इसलिए...इसलिए कि काम पूरा न होने पर आप सजा देने लगते हैं।' बिन्दू ने निडर हो कर उत्तर दिया। और बात भी सच थी। 'तो सजा न देकर तुम्हें लड्डू दिया जाए? एक तो काम नहीं करते, ऊपर से नकल करते हैं!... मानीटर लिखो इसके माथे पर चोर!' मानीटर अपनी जगह से नहीं हिला तो वे और जोर से गरजे, 'मैं कहता हूं लिखते हो कि नहीं?' मानीटर ने बिन्दू की आंखों में देखा और सोचा कि यह तो सबकी बेइज्जती की सवाल है। फिर यह कोई बड़ी भारी गलती नहीं है। तो उसने साफ मना कर दिया, 'मैं नहीं लिखूंगा!' गणित के अध्यापक क्रोध से थरथर कांपने लगे। वह समझ नहीं पाये कि आज यह क्या जादू हो गया है। मानीटर भी उसका आदेश नहीं मान रहा है। उन्होंने एक अन्य लड़के से कहा, उसने भी मना कर दिया। इस पर वह स्वयं आगे बढ़े। तब तक कुछ लड़कों ने एक दूसरे को देखा फिर बस्ता समेट-समेट कर कक्षा से बाहर निकल पड़े। और जोर-जोर से नारे लगाने लगे- 'गणित के मास्टर!' 'मुर्दाबाद'। 'गणित की कक्षा!' 'नहीं पढ़ेंगे!' 'मुटकऊ मास्टर।' 'मुर्दाबाद!' पूरे स्कूल में तहलका मच गया। सभी कक्षाओं के लड़के बाहर निकल-निकल कर देखने लगे। कुछ अध्यापक भी बाहर आ गए। गणित के मास्टर का माथा ठनका। उनकी समझ में आ गया कि अब उनकी बेंत और सख्त वाणी का असर इन लड़कों पर नहीं पड़ेगा।

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