एक बार समुद्र ने वेत्रवती नदी से कहा -हे सरिते !! मैं समस्त नदियों के मधुर व्यवहार से पूर्ण संतुष्ट हूँ , सभी नदियाँ उपहार स्वरूप कुछ न कुछ अवश्य लाकर देतीं हैं । एक तुम ऐसी कंजूस हो , जो मुझे कभी कुछ नही लाकर देती हो । मुझे तुम्हारी कठोरता पर आश्चर्य होता है ।
नदी ने कहा - देव !! मैं कैसे कुछ ला सकती हूँ ?
समुद्र ने कहा - अरे !! तुम्हारे तीर पर बैंत के पेड लगे हैं , फ़िर भी एक भी बैंत लाकर नही दिया ।
नदी बोली - इसमें मेरा कोई कसूर नही , जब मैं प्रबल तेज के साथ बहती हूँ , तब सारे बैंत मुझे झुक कर प्रणाम करते हैं ।जब मेरा प्रवाह कुछ कम हो जाता है , तब वे ज्यों के त्यों खडे हो जाते हैं ।
समुद्र ने कहा - हे सरिते !! तुम ठीक कहती हो विनय और नम्रता में बड़ी शक्ति होती है । जो झुकना जानते हैं ,वे कभी नही टूटते ।
नम्रता शक्तिशाली और महान गुन है । नम्र व्यक्ति हमेशा विजयी होते हैं ।
रेनू ...
1 comment:
सुंदर और प्रेरक कथा। अच्छी लगी।
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