Monday, February 16, 2009

दास्ताँ -ये -चोरी


दास्ताँ -ये -चोरी

चमचमाता सूरज खिड़की से सीधे भीतर आकर मेरे तकिये पर प्रहार कर रहा है , अब तो उठ जाओ , कब तक सोती रहोगी और मुझे आँखें मलते हुए ही भास्करदेव को प्रणाम कर बिस्तर छोड़ना पड़ा । कल सोते -सोते एक बज गया था । आज एक ऐसे परिवार से मिलना है जो पिछले तीन माह से चोरी हो जाने की पीड़ा को झेल रहा है । कल स्टोरी बनाकर अख़बार के पेज तक पहुंचानी है । शीघ्रता से तैयार होकर गाड़ी उठाई और चलने को हुई , तभी फोन आ गया , सरिता जी , जरा जल्दी करियेगा , वरना पेज पर कुछ और डालना पड़ेगा । हाँ , ठीक है, कहकर मैं निकल गई ।परिवार अभी गाँव से शहर आकर बस गया है । कहने को तो छोटा परिवार है , लेकिन मुफलिसी में भी यदि कोई धोखा देकर चोरी कर ले जाय तो , कितनी पीड़ा होती होगी , मैं समझ सकती हूँ । एक बार मेरी फीस कॉलेज मेंकिसी शैतान लड़की ने पार कर दी , तब मैं न तो माँ से कह पाई कीफीस के पैसे दुबारा दे दो , और न बाबा को बता पाई कि बाबा किसी ने फीस चोरी करली । मैं जानती थी , अदनी सी सरकारी नौकरी में बाबा हम दो भाई बहन के साथ कितनी मुश्किलों में महीने भर का खर्चा वहन करते थे । किसी से उधर लेकर फीस जमा कर दी और अपने जेब खर्च से चुकती रही , जेब खर्च भी तो दस बीस रूपये से अधिक नही मिलता था । माँ मुझे कभी - कभी पैसे दे देती थी , बेटी !! रख ले , बाहर जाती है कभी काम आयेंगे ।
विचारों की उधेड़ बुन के साथ में उनके घर तक पहुँच गई। दरवाज़े की घंटी बजाई, एक बुजुर्ग से पुरूष ने द्वार खोला। मै समझ गई पिता ही होंगे। मैं, सरिता, अखबार से । हाँ ,आइये ,आपने कहा था आएँगी। जी, और मैं एक कमरे में कुर्सी पर देवी सी स्थापित हो गई। हाथ में कागज़ कलम थे। उनकी पत्नी शकुंतला भी पानी लेकर आई , बेटी नयना को कहा, जा बेटी चाय बना ला। मैं, उनकी आत्मीयता पर गदगद थी। खैर, हम लोगों का बातचीत का सिलसिला शुरू किया। पिता लाल जी, अधीर हो रहे थे, अपनी पीड़ा बांटने के लिए, वही पहले बोले। दीदी, तीन महीने पहले हमारी चोरी हो गई, हमारी एक छोटी सी दूकान थी, दिनभर में गाडियों की मरम्मत कर, पंचर जोड़कर, घर के खर्च लायक पैसे जोड़ लेता था। लेकिन दुसरे लोगो की बैटरी, गाडिया जो काम के लिए रखी थी, सब उड़ा ले गए। इसी बीच पत्नी बोल पड़ी, हमने तो इनसे कहा था , किसी का सामान न रखो, पर सुनते ही नही, अरे !! तुम चुप रहो, हम बताते हैं। हमारा बेटा शेहेर में था जब उसे पता चला तो पुलिस थाने में रिपोर्ट करा दी। पुलिस वाले पूछने लगे किस पर शक है, तब हम का कहें, किससे झगडा मोल लें, पर क्या करें एक कबाडी पर ही शक था सो सबके कहने पर उसका नाम बता दिया।बेटे ने जब पुलिस थाने में दबाव बनवाया तब जाकर कबाडी से पूछ - ताछ की गई, एक दिन दीदी, दरोगा साब घर भी आ धमके, अब तो मोहल्ले वाले चमक गए की हम लाल जी बड़ा आदमी हूँ। मुझे भी कुछ गाँव वालों की नजरो में इज्ज़त मिल गई। अरे!! दीदी का कहें, इनकी मति मारी गई, बा कबाडी का नाम ले लिया, क्यूँ अरे! नम्बर एक का बदमाश है, हम तो मना कर रहे थे, छोडो अब न मिली कोई सामान, पर कौन सुने हमारी।
तभी नयना बोल पड़ी- दीदी, पापा ने चोरी के चक्कर में हजारो रुपये फूक दिए सो अलग, वो कैसे ? हम लोग उनकी नोक झोंक पर हँसते भी जा रहे थे। मैं अपनी हँसी रोक नही पा रही थी । एक बार कबाडी को पुलिस पकड़ कर ले गई , पापा ने घर आकर बताया तो , माँ ने कहा - हे ! ईश्वर उस कबाडी को पुलिस न पकड़े तो अच्छा , कोई निर्दोष न पकड़ा जाए । हमने तो उसे चोरी करते देखा तक नही , अब देखो दीदी , चोर को हमारी माँ ही बचा रहीं थीं । पंडित , बाबा , फ़कीर , झाड़ -फूक कहाँ -कहाँ जाकर नाक नही रगडी , पर कुछ भी नही हुआ । एक बार एक साथी की गाड़ी में दो लीटर पैट्रोल भरवाया और चल दिए , एक बाबा कहता था कि उस पर देवी आती है , सब बता देगी , तीन बार तो हमे दस किलोमीटर तक एक खेत पर ले गया , कोई नही आया फ़िर बोला चलो नर्मदा नहा कर आते हैं , तब आएगी । नर्मदा नहा कर गए तब एक देवी की जगह जिन्न आ गया , हम लोग डर गए और उसे वहीं छोड़ कर भाग लिए ।
किसी ने बताया कि एक आदमी हाथ में चमेली का तेल लगाकर सब बता देता है , हाथ पर फ़िल्म बन जाती है , उसमें सब दीखता है । न जाने कितने बच्चों के हाथ में चमेली का तेल लगाया पर कुछ भी नही हुआ । कुछ ने कहा फलां जगह माल दवा है । इस बीच पुलिस शांत थी क्योंकि थाने का इंचार्ज चोर से दस बीस हजार रुपये खा चुका था । एक दिन थाने में कबाडी को रखा उसकी खातिरदारी की और छोड़ दिया । जब माँ को पता चला तो , मन्दिर जाकर परसाद चढा दिया , अच्छा हुआ वह छूट गया । सब हंसने लगे उनकी बातों पर ।
मैं , लगातार ठहाके लगा रही थी क्योंकि चोरी का रंज उनके चहरे से गायब हो चुका था , अब उस ख़राब समय का सब मिलकर मजाक उड़ा रहे थे । बेटी नयना , बड़ी खुश थी शहर आकर । मैं भी , थोडी हिल -मिल गई थी । और बताइए क्या हुआ ? अरे !! हाँ , एक बार किसी ने बताया जा बेटा !! आज की रात सोकर उठोगे तो सपने मैं सब दिख जाएगा , कहाँ सामान है ? कहाँ चोर है ? मैं डर गया था । थाने वाले साब ने कह दिया था , जब सपना आए तो मुझे आकर बताना सबसे पहले । वे लोग तो अपना उल्लू सीधा कर रहे थे । दो रात का समय था हमारे पास , घर वाले तो सारी रात खर्राटे भरते रहे लेकिन मेरी आंखों में नींद नही थी । सुबह बेटी दौड़ती हुई आई , पापा क्या सपना देखा ? बताओ तो , मैं अचरज में था , हंस दिया , बेटा मुझे तो रात भर नींद ही नही आई । सपना कैसे आता ? तभी शकुंतला बोल पड़ी -हमने कहा था न , कुछ नाटक मत करो , देखा गांठ की नींद और चली गई । हम साब लोग फ़िर देर तक हँसते रहे । कई बड़े अफसरों से शिकायत की लेकिन न चोर पकड़ा और न सामान ही पता चला ।
अब हताश होकर गाँव ही छोड़ दिया है । शकुंतला बोल पड़ीं - भला हो चोरी का जो सब शहर में आ गए वरना मेरे भगवान जी रोज परेशान होते थे । वो कैसे ? नयना बोली - दीदी ! जब भइया लोग शहर में थे तब , माँ भगवान से रोज कहतीं - जाओ शहर जाओ , बच्चों का ख्याल रखो । और जब भइया लोग गाँव में होते तब कहतीं , अब चार दिन की छुट्टी जहाँ मन हो घूम आओ । लालजी बोल पड़े - इनकी तो लीला ही निराली है न चोर पकड़ने दिए और न कुछ करने दिया । अरे !! आप क्या जानो , एक तो चोरी हो गई ऊपर से हजारों रुपये खर्च कर दिए । जब देखो तब किसी बाबा , फ़कीर के पास जाना होता था । चाय के दौर चलते रहे , मैं , छोटे से खुशहाल परिवार के साथ अपने को भूल ही गई । कभी लालजी की बात सुनती , कभी शकुंतला जी की , कभी नयना की और कभी ठहाकों में हम साब अपना मैं तिरोहित कर रहे थे । समझ ही नही आ रहा था इस कहानी में पीड़ा है , दर्द है , या दर्द से निबटने की दावा है ।
एक -एक लम्हे जिंदगी जीने का जज्बा रखने वाले लोग रीते होकर भी भरे हुए थे , प्यार , संवेदना और इंसानियत से । सनातनता सबमें समाई थी , टूटकर फ़िर से जुड़ने की कला कोई इनसे सीखे । हमारे सरकारी रवैये की ढुल -मुल बदनीयती को उजागर करती इनकी पीड़ा कैसे किसी अफसरशाही की कार्यप्रणाली पर भरोसा कर सकती है । ख्हैर .....ऐसे दरियादिल लोग इन घूंस खोर बड़े चोरों के मोहताज भी नहीं । ईश्वर से दुआ करते हुए कि यह परिवार यूँ ही हँसता मुस्कराता रहे , मैं उठ खड़ी हुई अपनी मंजिल की ओर । रेनू .....
Posted by Renu Sharma at 1:59 AM

1 comments:
vandana said...
bahut sahi kaha aapne.
February 15, 2009 10:50 PM

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