Wednesday, January 14, 2009

रिश्तों के नासूर


गुनी उठ जा , तुझे कॉलेज जाने मैं देर होगी , कितनी बार कहा है किअलार्म लगा लिया करो पर सुनती ही नही । अब मैं , ऊपर नीचे बार -बार नही आ जा सकती , ललिता लगातार बोलती जा रही है । उधर चूल्हे पर चाय बनने रख दी है , लकडी गीली है , छोर से पानी टपक रहा है । ललिता तुम !! धीरज राखो , मैं उसे जगा दूंगा , सुबह से बिटिया के पीछे पड़ी हो , न चाय पिलाई न पानी पूछा , अरे !! आप क्या बात करते हो बिहारी जी के मन्दिर कीआरती हो रही है , और बिटिया बिस्तर पर पड़ी है । यह कोई एक घर की कहानी नही है , हजारों घरों मैं सुबह से यही सब चलता है । कहीं पानी की खींचा तान होती है , कहीं दैनिक क्रिया के लिए लम्बी लाइन मैं खड़े होना पड़ता है । शहर मैं जाकर पढ़ाई करना कोई आसान काम नही है । गुनी को सुबह दिल्ली तक भागना , रात को लौट कर आना , प्रतिदिन यही करना पड़ता है । ललिता कई बार कह चुकी है बेटा !! दीना से बात करले , एक साल उसके पास पढ़ले , तुहारे बाबा से कहूं बात करें , नही माँ ! मैं सब देख लुंगी , आज शाम से ही पानी बरस रहा है , दोनो ही बेटी के लिए चिंतित हैं , गुनी का सारा समय आने जाने मैं निकल जाता है , दीना से बात करो , हाँ , कल एक बोरा गेहूं भिजवा देता हूँ , बहु तो अच्छी है , सब सभाल लेगी ।


मन्दिर तक जाना मुश्किल हो जाता है , गलियों मैं कीचड़ हो जाता है , मुझे सुबह उठा देना , इतना कहकर बाबा सो गए । दूसरे दिन बाबा दीना के पास चले गए , अरे !चाचा , कैसी बात करते हो , गुनी कोई पराई है ? आपने कैसे सोचा कि मैं ,अपने पास रखने को मन कर सकता हूँ । मुझे याद है जब हम गाँव आते थे , छोटी सी गुनी इधर - उधर फुदकती रहती थी । दिल्ली आए ही मुझे सात साल हो गए । आप चिंता मत करो चाचा ! मैं आकर ले आऊंगा , अशोक कहाँ है ? विशाखापत्तनम मैं है अभी , बहुत कम आ पाता है , चाचा एक बार गाँव के तालाब मैं मुझे तैराकी सिखाने ले गया था , कहता था - भइया भैंस पर मैं बैठ जाता हूँ , पानी के अन्दर रहूँगा , आप डरना मत , बस भैंस की पुँछ पकड़कर रखना , छोड़ना मत , अपने दोस्तों को बता दिया कि जब दीना पानी मैं आ जाय तब , भैंस को पानी मैं बिठा देना , मुझे तैरना नही आता था , कीचड से सन जाता था , सारे दोस्त ठहाका मारकर हँसते थे । एक बार तो मेरी जान पर बन गई थी , हाँ , मुझे याद है , गाँव मैं गुड बंटवाया गया था ,पुराने दिन भी क्या दिन थे , चाचा इस बार होली पर सब गाँव मैं इकठ्ठा होंगे , सीमा चाचा के पैर छूने झुकी ही थी , बाबा हजारों आशीर्वाद देते हुए बाहर आ गए ।

गुनी , जबसे दिल्ली आई है , पढ़ाई के लिए समय मिल जाता है । भाभी के साथ रसोई मैंभी समय देती है । दीना रात को देर से लौटता है , शायद दोस्तों के साथ पार्टी करता होगा , सीमा , खाली समय मैं फिल्मी पत्रिका देखती रहती है , दीना , जाने किस बात पर सीमा से उलझ पड़ता है , सीमा और गुनी के कमरे के लिए एक ही दरवाजा है , उसे पता है कि रात मैं दरवाजा बंद नही करना है ।लेकिन गुनी को दीना की झिक -झिक समझ नही आती , कई बार भाभी से पुँछ चुकी है , क्या भइया को उसका आना पसंद नही या और कोई बात है ? सीमा सिर्फ़ आंसू बहाने के अलावा कुछ नही बोलती ।धीरे -धीरे पढ़ाई मैं अवरोध आ रहा है । अचानक रात मैं किसी के सिसकने की आवाज आई , गुनी , उठ बैठती है , भाभी की आवाज है शायद , पर कुछ समझ नही आता , सीमा बाहर छत पर रो रही थी , गुनी उसके पास जाकर बैठ गई , भाभी ! आपके चहरे पर यह निशान कैसा ? सीमा मुंह छिपाकर रोटी है , अगर तुम नही बताओगी तो भइया से बात करुँगी , बोलो क्या बात है ? सीमा अपने को रोक नही पाई और गुनी को सारी बात बता दी । तुम्हारे भइया रोज रात को शराब पीकर आते हैं , हर दिन उन्हें पत्नी नही एक वैश्या चाहिए , घर -परिवार के साथ रहते हुए भी उन्हें अंग्रेजी उन्मुक्तता चाहिए , परिवार की मरियादा मंजूर नही , भाभी , शायद मेरे कारण ऐसा हो रहा है ? क्या पहले भी यही सब चल रहा था , हाँ , रोज - रोज की चिक चिक से परेशान हो गई हूँ , इसीलिए सोचा था तुम आजोगी तब शायद सब ठीक हो जाए ? लेकिन दीना तो कुछ समझते ही नही , भाभी मैं कल ही चली जाउंगी , नही गुनी तुमसे इसका कोई मतलब नही है , मैं , अब तुम्हारे भाई के साथ नही रहना चाहती , मेरे ऊपर हाथ उठाकर , बहुत अपमान किया है , मैं कल माँ के पास चली जाउंगी , तुम यहीं रहो और पढ़ाई करो , आठ साल हो गए सहते हुए , सीमा उठी और अपने कपड़े बैग मैं रखने लगी , गुनी हतप्रभ सी सब देख रही थी , उसे दीना के ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा था । गुनी सुबह उठी और कॉलेज आ गई , दीना सो रहा था , डरती हुई घर वापस गई , किचिन का काम संभाला , दीना के लिए भी खाना बनाया और पढ़ाई करने लगी क्योंकि दीना ऑफिस गया था । भाभी के जाने के बाद गुनी परेशां थी , क्या मालूम भाभी से दीना की बात हुई या नही , सात बजे , भाई आ गया सीधा आकार मैं चला गया , गुनी चाय बनाकर ले आई , भाभी से बात की , देख गुनी तू नही जानती इसलिए चुप रह , तुमने भाभी को क्यों मारा ? तुम बहुत ख़राब हो , भाभी को लेकर आओ वरना मैं बाबा से सारी बात बता दूंगी , ठीक है कल बात कर लूँगा , अच्छा अब खाना तो खिला दे , गुनी खाना लगाकर वहीं ले आई , भद्दी सी पत्रिका निकलकर खाना खाने लगा , कभी गुनी को देखता और कभी पत्रिका को , किसी तरह खाने की थाली लेकर गुनी बाहर निकल गई और पढने लगी । भइया आप सो जन कल मेरा टेस्ट है इसलिए अभी पढ़ना है ।

एक राहत भरी सुबह के साथ गुनी कॉलेज चली गई , लौट कर दीना के कमरे की तलाशी ली , हर तरफ़ अश्लील मैगजीन बिखरीं पड़ीं थीं , शराब की बोतलें बिखरी हुईं थीं , सब कुछ ठीक करने के बाद पढने बैठ गई , टेस्ट नही होता तो माँ के पास चली जाती , क्या करे समझ नही पा रही थी ।सीमा से भी कोई बात नही हुई , देर रात दीना भाई घर पधार गए , हलक तक चढाई हुई थी , भइया क्यों इतनी पीते हो ? तुमसे चला नही जाता , शर्म नही आती है ? और खाना लगाकर उसके कमरे मैं रखकर आ गई , गुनी आ तो , सुन मेरी बात , तेरी भाभी को बांहों मैं लो , तो बिदकती है , देख तो लडकियां क्या -क्या करतीं हैं और मुझे पागल कहती है , गुनी इस समय थर -थर काँप रही थी , भइया सुबह बात करेंगे और अपने बिस्तर पर आकर गिर पड़ी , सीमा की तकलीफ उसके सामने घूमने लगी , कितना दुष्ट है भाई । गुनी अभी सोने का प्रयास कर ही रही थी कि उसकी पीठ पर गरम हथेलियों की सरसराहट दौड़ गई , डर कर उछल गई , सीधी होकर बैठना चाह रही थी कि दीना उसके ऊपर झुक गया और दबाने का प्रयास करने लगा , गुनी को साँस लेने मैं मुश्किल हो रही थी ,


चीख भी नही पा रही थी , बाहर झमाझम बारिश हो रही थी , कोई कैसे सुन पता उसकी आवाज ?भाई जैसे पवित्र रिश्ते को दीना बूँद -बूँद बहा रहा था । गुनी का अपनापन एक दरिन्दे के हाथों स्वाहा हो रहा था । रिश्ते का खोखलापन रिस रहा था , बिस्तर पर बेहोश पड़ी गुनी , छत-बिछत लाश जैसी लग रही थी । साबुन के पानी के साथ गुनी अपने आंसू भी बहती रही , इस स्याह रात मैं न गुनी के बाबा आ सके , और न परमात्मा ही । सोच रही थी घर के पीछे से जाने वाली ट्रेन के नीचे लेट जायेगी , बाबा को क्या मुंह दिखायेगी ? पढ़ाई करने आई थी , यहाँ अपने ही भरोसे से लुट गई , सीमा की मजबूरियों पर उसे रोना आ रहा था , पराई बेटी , हमारे घर में इतनी यातना झेल रही है , माँ को क्या कहूँगी ? इसी उधेड़ बुन में कॉलेज के लिए निकल गई ।

आज सुबह से कविता को खोज रही हूँ मिलती नही है , तभी पता चला मैडम ! चाय वाले से झगड़ रहीं है । गुनी उसे पकड़ कर एक पेड के नीचे एकांत में ले गई , वहां साडी आपबीती उसे सुना दी , बता दिया की यदि रात को मर जाऊँ तो बाबा को बता देना कि पढ़ नही पा रही थी । बोल देना में ग़लत नही हूँ । कविता सुकर सन्ना रह गई , गुनी तुम इतनी हिम्मत वाली होकर भी ऐसी बातें करती हो , देखो , ये मरने -मरने का नाटक बंद करो और मेरे घर चलो । अभी एक माह की बात है मेरे साथ रहकर परीक्षा देना समझी !, ओए उसी समय घर से सामान लेकर गुनी कविता के पास आ गई । दो दिन तक , डरी सहमी सी रहने के बाद माँ के पास चली गई , माँ को सारी बात बता दी , माँ का कलेजा फट गया , बिलख पड़ी , मुझे क्या पता था , में ही बार -बार कह रही थी कि गुनी को दीना के पास भेज दो पढ़ लेगी । हाय ! अब क्या करुँ ? बाबा को बताया तो , अभी गोली चल जाएँगी , मर जाएगा दीना , उसकी बिधवा सीमा बेचारी कैसे जियेगी , बेटा !! अब जो होना था हो ,गया अपने सीने में छुपा कर रख इस राज को । एक महिना कविता के साथ निकाल ले , उसका बड़ा उपकार होगा हमारे ऊपर । औरत अपने वजूद के बिखरने के बाद भी घर -परिवार , रिश्ते , और अपनों को टूटने नही देना चाहती , अस्मिता लुटाने की तीस जीवन भर माँ को सालती रही , उसे लगा जैसे बेटी नही वह ख़ुद बेआबरू हो रही थी । रिश्तों की आग में दहकती रही जीवन भर , एक नासूर से उसके दिल से चिपक गए थे । बेटी , को ब्याह दिया गया खुश है , पर माँ , सुलगती रहती है इन दोगले रिश्तों के बीच , जाने कब , माँ मुक्त हो पायेगी इस पीड़ा से । रेनू शर्मा .....

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