Monday, October 20, 2008

बसंत

सब ओर बसंतोत्सव की बहार है , जिसे देखो वो वैलेंटाइन के लिए दीवाना हुआ जा रहा है । पच्चीस रूपये का कार्ड , बीस रूपये का गुलाब लेकर पच्चीस का युवा एसे अकड़ कर चल रहा है मानो दुनिया सिर्फ़ आस -पास सिमट आई हो । वी .आई .पी रोड पर मेरी गाड़ी आज तीस की स्पीड से लुड़क रही है , सोचता हूँ , हमारा भारत देश कितना समृद्ध है यहाँ , हर भाव , विचार , धर्म , जाती , सम्प्रदाय के लोगों के लिए उत्सव , आयोजन हैं , खुशियाँ समेटने के लिए अवसर हैं । आज के युवा बसंत उत्सव को तो जानना ही नहीं चाहते , दोस्ती ओर प्यार का आशय भी उनके लिए अलग है , लड़के लड़की की दोस्ती ही सर्वोपरि मानते है । मैं क्यों इन दकिया नूसी विचारों की गिरफ्त मैं उलझ रहा हूँ आज से पच्चीस बरस पहले मैं भी शगुन के प्यार मैं गिरफ्तार हुआ था , हर पल उसी के बारे मैं सोचा करता था , उसकी हर अदा मेरा ध्यान खींचती थी । उसके गाल पर लटकती बालों की लट अक्सर मुझे उलझा ल्रेती थी , न चाहते हुए भी कई बार उसे देखा करता था ओर शकुन भी जानती थी कि मैं उसे घूरता हूँ । तब भी वह मेरे आस - पास ही तितली सी मडराती थी ।

एक बार हम सैकडों साल पुराने राजाओं का इतिहास गुप्ता सर से सुन रहे थे , उन्हें तो सन , महीने , तारीख तक याद थे , पीछे बैठी शकुन सहेली के साथ खुराफात मैं मशगूल थी , राजा रानी कि तस्वीर बना कर मेरी तरफ़ फैक रही थी , मैं परेशां था वो एसा क्यों कर रही है ? कागज के टुकड़े राकेश जमा कर रहा था , घंटी बजने के बाद क्लास खाली हो गई तब भी कुछ बना रही थी , शरारत करने के बाद भी सबसे जायदा नम्बर उसी के आते थे ।

तभी जोर के झटके के साथ गाड़ी रुक गई , एक बच्चा दौड़ कर सड़क पार कर रहा था , मैं भाव शून्य सा हो गया , अरे !१ क्या बरसों पुराणी बातें सोचने लगा । अब तो शकुन जाने कहाँ होगी , बच्चे उसके आगे - पीछे मां , मां बुलाते होंगे , उसकी घुंघराली लट का जाने क्या हुआ होगा , हाँ एक बार याद है उसकी मां ने गाजर का हलुआ बनाया था , बड़ा सा टिफिन भर कर लाइ थी , हम सारे दोस्त कैंटीन मैं धमा चौकडी कर रहे थे , तभी दन दनाती शकुन शिखा के साथ हमारे पास आ गई , टिफिन रखते हुए मेरे कान मैं हौले से बुदबुदाई मोहन ! जन्मदिन मुबारक हो , इसमें हलुआ है खा लेना ओर फ्र्राटे से चली गई । मैं हतप्रभ सा उसे देखता रहा अरे !! मुझे तो याद भी नही था , सारे दोस्त उसी दिन से मुझसे चिड गए थे । सारा हलुआ उन मुर्गों ने चाट लिया । उस दिन लगा शायद शकुन मुझे चाहने लगी है , मैं तो घबरा ही गया था ।

गाड़ी खडी करके बड़े तालाब के किनारे आ गया , कितना अच्छा लगता है जब रंग - बिरंगी रौशनियाँ पानी पर अपना प्रतिबिम्ब छोड़तीं हैं । पहाडी पर बने मकान , होटल सब पानी पर तैरते से लगते हैं । हवा भी तो कितनी ठंडी बह रही है , आज सारे दोस्तों को इंडियन कॉफी हॉउस मैं छोड़कर मैं यहाँ अकेला भटक रहा हूँ । मैं अभी तक शादी के बंधन मैं भी नही बाँध पाया , क्यों मां से हर रिश्ते के लिए मना करता रहा , मां नौकरी लगने दो , तब शादी करूँगा । शकुन का चहरा मेरे सामने घूमता था , उसे कभी कह नही पाया , शकुन मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ । कभी एकांत मैं बैठकर बातें नहीं की , तभी एक बच्चा मेरे सामने आकर पत्थर से टकराकर गिर गया , उसके घुटने मैं चोट लगी थी , मैं विचलित हो गया , जाकर गाड़ी मैं बैठ गया , अनमना सा गाड़ी चलाने लगा , सोच रहा था आगे जाकर चौराहे से वापस मोड़ लूँगा , तभी मेरे कानों किसी की आवाज आई शकुन ! बच्चे का ध्यान नही रख सकती थी ? मैं , अचंभित था , एसा क्यों सुना मेने , शायद इतनी देर से उसी के बारे मैं सोच रहा हूँ इसलिए ।

गाड़ी घुमाकर मैं वहीं आकर रुक गया , तालाब की तरफ़ देखा तो एक दुबली पतली महिला साडी मैं लिपटी हुई जाने क्या सोच रही है , एसा लगा कुछ खोज रही है , उल्जा सा चहरा , रिक्तता , आंखों मैं तलाश , निपट अकेले पण का अहसास है । वहीं रुक गया , उसे देखता रहा , कौन है यह ? अकेली क्यों खडी है ? मैं उसके पास जन ही चाहता था बच्चा उसके पास आकर बोला शकुन बुआ ! चलो मां बुला रही है । मैं सुनते हुए भी नही सुन पाया , शकुन बुआ !१ ओर उसकी गाड़ी के पीछे चलने लगा । मैं पागलों की तरह क्या कर रहा हूँ , कोई ओर हुआ तो आज मैं जरूर पिट जाऊंगा , पचास की उम्र मैं यह सब शोभा देता है क्या ? लेकिन क्या करून ? कितने बरसों बाद नाम सुना है , वही होगी पक्के से । लाल बत्ती पर गाड़ी आगे निकल गई अब क्या करून ? एक रेंस्तरा के सामने गाड़ी रुक गई , मेरी जान मैं जान आ गई , दूर गाड़ी रोककर मैं भी अन्दर चला गया ।

आज मैं वही कर रहा हूँ जो पच्चीस सल् पहले करना चाहिए था , शकुन को खो दिया अब उसकी परछाई का पीछा कर रहा हूँ । ठीक सामने एक टेबल के किनारे जाकर बैठ गया , खुबसूरत परी सी , सादगी की मूरत , बिल्कुल शकुन जैसी लगती है लेकिन न लट बिखर रही है , न आँखें कुछ बोलती हैं , बड़ा भी कुछ सिमट गया है , चुपचाप बैठी है , कैसे पता चले , बच्चा बराबर शरारत कर रहा है , मैं घबरा रहा हूँ , जल्दी कॉफी खतम की ओर घर जाने का सोचने लगा , एक पेपर पर अपना फोन नम्बर लिखा बच्चे को देते हुए कहा अपनी बुआ को दे देना । मैं लपक कर वहाँ से निकल गया , पिटने जो डर था । सीधे घर आकर सास ली , दोस्तों को भूल गया ओर बसंतोत्सव को भी ।

बेसुध सा अखबार पड़ रा था अभी रात का एक बज रहा था नींद नहीं आ रही थी , तभी फोन की घंटी बज गई , मैंने डरते हुए फोन उठाया , सोचा आज तो खैर नहीं पुलिस आती होगी , तभी परिचित सी आवाज मेरे कानों मैं रस घोल गई , मैं शकुन !! ओर साँसों की उथल - पुथल कके साथ ही मुझे आंसुओं की सरगम भी सुनाई दे रही थी । देर तक शकुन रोती रही , कुछ कह नही पाई , मैं उसे शांत करता रहा , कल मिलने का कहकर फोन रख दिया ।

मेरा बसंत आज करीब होकर भी दूर था , मैं भी एक ग्रीटिंग कार्ड ओर गुलाब की तलाश मैं शर्मा भर भटकता रहा ।
रेनू sharma ......

1 comment:

makrand said...

bahut accha
pr thoda edir karte to aur accha lagata
sorry to suggest but feel so
regards