बदहवास ही भटक रही थी कभी इस गली कभी उस गली , मां ने कहा था भाई सब्जी बेचने निकल गया है , सरकार का भोंपू अभी कह रहा था कि दो घंटे मै गांव खहली कर दो वरना गाँव डूब जाएगा , फ़िर कभी किसी को शहर भागने का मौका नही मिलेगा । मां दो दिन से बुखार मै पड़ी है , उठ भी नही पा रही है , कह रही थी महुआ ! तू माही के साथ शहर निकल जा , मैं यहाँ बनी रहूंगी , एसी क्या आफत आ रही है । अरे !! कितना चढेगा पानी , क्या मार डालेगा ? तो वह भी देख लेंगे । मां की आँखें अलग सी चमक रहीं हैं , इसने तो पक्का इरादा कर लिया है यहीं रहेगी , हजार छोड़ कर नही जायेगी । मां ! यहाँ क्या गढा है ? बता दो , चलो खोद लेते हैं । अरे ! महू !! तुझे क्या बताऊँ , क्या - क्या गढा है यहाँ , तेरे बापू मुझे चौदह बरस की थी तब ब्याह कर लाये थे ।
जब से घर मै आई सब रंगत बदल गई थी , हर दिन घर लीप - पोत कर साफ़ रखती थी , पडोसन झांक कर देखतीं थी , अरे! गोरी , तेरी बहु । बड़ी सुगड है , सास झट बोल पड़ती , का नज़र लगाओगी ? मेरी सोना को । बड़े भाग से बहु मिली है । तेरे बापू का धंधा भी दिन दूना रात चौगना बाद रहा था , कच्चे घर से एक कमरा पक्का कर लिया था , सब ठीक चल रहा था कि तेरे बापू को खांसी ने घेर लिया , डाक्टर , बैद्य ,हकीम सबका इलाज करवा लिया लेकिन कोई उन्हें बचा न पाया , पाई - पाई इलाज मै चली गई । सास ने मुझे बहार नही जाने दिया , ख़ुद सब्जी का ठेला लगाने लगी और घर चल निकला ।
माही अभी छोटा था , स्कूल जाता था इसलिए उसे दादी अपने साथ नही ले गई । अब जब दादी बीमार हो गई तब माही चोरी -चोरी ठेला ले जाने लगा , घर फ़िर चल निकला और एक दिन दादी भी हमें छोड़कर चली गई , बेटा कैसे छोड़ दूँ इस घर को ? हमारे बुजुर्ग तो यहीं बसते हैं । तू जा , माही को तेर कर ला , कह रहा था घंटे भर मै आ जायेगा ।
अभी सनकू कह रहा था महुआ , भाग चल , नाले मै पानी ऊपर आ गया है , बस गाँव मै भर जाएगा । हडबडाहट मै माही को बुला रही हूँ , लेकिन कोई किसी कि पुकार नही सुन रहा , इधर मां की चिंता है , दावा भी नही मिल पा रही है , सीना धौकनी सा धकधका रहा है , क्या करून ? कहाँ जाऊँ ? अरे ! सोनू , माही को देखा ? हाँ , बड़े मौहल्ले मै गया है ,जा बुला दे कहना मां , बुला रही है । तू मेरी मां को बता देना , हाँ जा । महुआ मां की तरफ़ पलट गई ।
लौट कर आई गली मै पानी भर गया था , खाली - खाली आंखों को दरवाजे पर गडाये मां मुझे देख रही थी , महू ! आ गई , बेटा ! कमरे की छत पर मेरा पलंग जमा दे , पानी का घडा रख दे , आटा रख ले , सब ऊपर पटक दे । क्यों मां , हम हैं न , भाई भी आता होगा , तुम भी हमारे साथ चलोगी वरना सब यहीं रहेंगे । महुआ ! मैं जो बोलती वो कर , छत पर पूरा सामान भर दिया , छप्पर के ऊपर ट्रिपल लगा दिया , मां ! तेरा अंग जल रहा है , मुझे पकड़ ले चल ऊपर ।
माही आधी से जयादा सब्जी बेच चुका था , आज तो मुह मांगी कीमत मिल रही थी , माही , मां कह रही थी तुम शहर चले जाओ । अरे ! मां क्या पागल हुई है ? मां को छोड़ कर हम कहीं नही जायेंगे , दरवाजा बंद कर दे ऊपर चल , पानी बड़ रहा है , तीन प्राणी पक्के कमरे की छत पर आ गए ।
रात भर बरसात की सरसराहट और बाढ़ की दहशत मै आँख खुली तो आधा घर पानी मै डूब चुका था , सामान लाश की तरह तैर रहा था । मां , दहक रही थी , , हकीम की दवा ने आज कुछ भी असर नही दिखाया ।
सामने वाली गली से किसी के चीखने की आवाज आ रही थी , मां , बोल पड़ी जा माही , देख तो शायद मौलवी के घर है , मां पानी चढ़ रहा है , अरे ! जवान बेटा होकर एसी बात करता है ? ले डंडा लेजा , ठोकते जन , कनस्तर कमर मै बाँध ले , बेटा बुरे बख्त मैं एक दूसरे का साथ देना चाहिए , माही छत से ही पानी मै कूद गया , पता चला सांप का जोड़ा छप्पर पर आ गया है , बड़ी मुश्किल से मौलवी और उनकी बेगम को अपनी छत पर ले आया , बच्चे बहु सब उन्हें छोड़ कर चले गए ।
महुआ ने मोटी रोटी बनाई , आम के आचार से सबने खा लिया , क्या पता कल क्या हो ? माही के सर से मौलवी का हाथ हटता ही नहीं , बार -बार उनकी आँखें भर आती हैं , सलमाबी , मां के पैर दबाने मै लगी है , माही की मां ! आज आपने बचा लिया वरना हम जाने कहाँ होते ? मां का कलेजा जल रहा था , महुआ चीनी घोल कर पिला दे , तभी दीवार गिरने की आवाज आई , सोना का कच्चा घर पानी के साथ बह गया था , साथ मै सब्जी का ठेला लुड़क रहा था , माही भागा , पर मां ने कहा जाने दे वीरा !! लालच मत कर ।
दो दिन तक सरकार का कोई नुमाइंदा हमारी ख़बर लेने नही आया , गाँव पानी से लबालब हो गया था , लोग भाग गए , पक्की छतों पर लोग शरण लिए थे , अब सोनू भी हमारी हिफाजत मै है , उसका परिवार भी उसे छोड़ कर चला गया , धीरे - धीरे आटा पानी सब ख़तम हो रहा है , मौलवी की छत पर आटा रखा है ,माही फ़िर पानी मै कूद गया , सांप का जादा अभी तक छत पर बैठा है , सोनू भी साथ चला गया , बेटा , आजा , क्यों जान मुश्किल मै डालता है । ले महुआ ! मां के लिया अदरक की काली चाय बना दे , मां ने तीन दिन से कुछ नही खाया , सलमाबी मां की खिदमद मै लगी रहतीं हैं ।
दूर - दूर तक कोई मदद नही दिखाई देती , मां , कमजोर होती जा रही है , शाम होते ही पडौसी आवाज लगना शुरू कर देतें हैं , रात के वीराने मै पानी की सरसराहट खौफ पैदा कर देती है , मां आज बोल भी नही पा रही है , महुआ उसके पास बैठी है , पल -पल मै उसकी आँखें रिसने लगतीं हैं , माही कह उठता है , महू ! तेरे कारन ही बाड़ आ गई , वरना मै अच्छी खासी सब्जी बेच रहा था , मां , मुस्करादेती है , आफत मै भी जिन्दा दिली से बुरा समय बिता दे वही सफल इन्सान है । हर कोई परेशान है न जाने कल क्या होगा ? सोनू अपने घर वालों को गाली देता है साले ! मुझे छोड़ कर भाग गए , माही भइया ! तू नही होता तो क्या होता ? मैं तो नदिया मै समां गया होता ।
पानी बड़ रहा है , सलमाबी , भय से काँप जाती है , अरे! चाची मै हूँ न , चिंता मत करो , सबको बचा लूँगा , बस मां की चिंता है कोई नाव आ जाए तो , शहर ले चलूँ , अब दावा भी कम नही कर रही है । मां आज , माही का हाथ पकड़े लेती है , एक ही पलंग पर तीन प्राणी सिमटें हैं , नीचे एक बोरे पर वोह तीन दुबके हैं , पाँच दिन से परेशां माही मां के पैरों मै ही सो गया है , महुआ भी मां से लिपटी है , बेबस घड़ी मै भी सबको नींद ने घेर लिया , तभी दबे पाँव काल की देवी आई , सोना को अपने साथ ले गई , किसी को पता भी नही चला ।
माही नींद मै मां के पैर दबाने लगा , कुछ हलचल नहीं हुई , घबरा कर उठ गया , मां !! चली गई , महुआ , उठ , दीया जला , पानी ला , क्या भया ? आस -पास के लोग चिल्ला रहे थे , माही हम आ रहे हैं , सलाम बी चीख पड़ी , माही जोर से बोल रहा था कोसी मैया !! तुने मेरी मां को छीन लिया , बार बार मां से लिपटता रहा , महुआ ,सलमाबी से चिपक गई , मौलवी दौनों बच्चों को सीने से लगाये रहे , सुबह का इंतजार करने लगे ।
जिन्हें तैरना आटा था सब माही की छत पर आ गए , उसे तसल्ली दी । तभी लाल रंग की एक नांव आती दिखाई दी , सबने कहा एक औरत मर गई है , भइया , कुछ रहम करो , कुछ ब्रेड , पानी की थैली , देकर आगे चले गए , कह रहे थे लौट कर आतें हैं , माही ने दो बांस की ठठरी बनाई , मां को उस पर बाँध लिया , धीरे से छत से पानी मै सरका दिया , उसके दोस्त भी माही के साथ हो लिए , धक्का देते हुए नदी की तरफ़ चल दिया , सब लोग चिल्लाते रहे बेटा ! मत जा , पानी का बहाव जादा है , पर मां को जल दाग देना मेरा कर्तव्य है , क्या करू ? मेरी मां चली गई , लहरों से लड़ता वीर माही अपनी मां को कोसी की जल धारा को समर्पित करके ही लौटा ।
पानी अभी भी नीचे नही उतरा है , बहन को लेकर जन चाहता है क्योंकि अब किसी और को नदिया मै बहाना नही चाहता , तीन प्राणी उसके संरक्षण मै पल रहे हैं , दस दिन तक छत पर मां का दसवां कर नांव के साथ मौलवी , सलमाबी और सोनू को शहर भेज दिया , महुआ के साथ पानी थमने का इंतजार करने लगा ।
रेनू शर्मा ....
1 comment:
bahut achcha hai
go ahead
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