Tuesday, November 18, 2008

के .डी .मामा

वसुंधरा अब समझने लगी है कि जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है , जब घुटन बढ जाती है तब कुछ लिखने बैठ जाती है । एकाकीपन की छटपटाहट को निकलने के लिए लिखते समय कभी रो भी लेती है ।मामा जब आते ,आंखों के गीले किनारे उन्हें समझ आ जाते , प्यारा सा समाधान बताते , एक प्याला चाय पीते और चले जाते ।जब भी वसु , परेशां होती , मामा अचानक दरवाजे की घंटी बजा देते , हँसते हुए वसु की पीड़ा दूर कर देते , कहने लगते मैं जानता हूँ , तुम समझती हो कि तुम जिन्दगी को समझने लगी हो , लेकिन तुम ग़लत हो , जिन्दगी हर पल बदलती रहती है , तुम किसी इन्सान को भी नही बदल सकती हो , भाग्य और कर्म जब तक साथ नहीं होंगे तुम कुछ भी नहीं कर सकती हो । हर इन्सान स्वयम ही स्वयं को बदल सकता है । वसु , सोचती इन्हें कैसे पता मैं क्या सोच रही हूँ ?जब वसु फुर्सत मैं होती तब पत्रिका लेने मेरे पास आ जाती थी , हम कहानियो और लेखों पर बहस किया करते थे , दूसरे दिन कुछ नया लिखकर मुझे दिखा देती । हम फ़िर नई बहस मैं जुट जाते ।
दुबले ,पतले , लंबा कद , मर्दानगी का दंभ लिए , स्वाभिमानी और रिटायर होने के बाद की पीड़ा को छू मंतर करने अपने लोगों के हाथ देख कर भविष्य बताया करते थे , वसु , उनसे झगड़ती थी , आप मुझे कुछ नहीं बताते , पिता की तरह सुनते और घीरे से बताते बेटा चिंता मत कर सब ठीक होगा । वसु , अपने आदर्शों पर , संसकारों के मोतियों से बुनी शांत , जिंदगी चाहती थी जहाँ , आध्यात्म हो , एकांत हो , मीठे रिश्ते हों । मामा , उसे निर्लिप्त रहने का उपदेश देकर चले जाते ।
वसु , आज चाय के साथ पकोडे भी बना रही है , तभी घंटी बजती है , मैं खोल दूंगा ,लेखा , आई है । मामा बोल पड़े - क्या तुम जनवरी मैं पैदा हुई हो ? हाँ !! मैं हतप्रभ सी मामा जी को देख रही थी , तुम इस वसु की दोस्त हो ? जो किसी को घास नही डालती , मैं तो , बूडा हो गया हूँ इसलिए चाय पिला देती है , वरना ..... वसु आ गई , मैं भी , अपना भविष्य जानना चाहती थी , लेकिन हिम्मत नही हुई । थोडी देर मस्ती भरी बातें की और वापस आ गई । कुछ समय बाद वसु ने बताया कि मामा , बता रहे थे कि तुम गाड़ी तेज चलाती हो , धीरे चलाया करो ।
आकाश भी मामा के न आने से उदास हो जातें हैं , मामा हमेशा सही रास्ता दिखाते हैं , इस लोक से लेकर परलोक तक , जन्म मृत्यु सब बात चीत का हिस्सा बनता है , मामा गृहस्थ के साथ ही एकांत मैं जीना चाहते थे , अचानक फोन की घंटी बज गई , वसु अपने पास बुला रही थी , कुछ पत्रिकाएं उठाकर निकल गई , शाम तक मैं नहीं गई ,तब वसु को पता चला मेरी गाड़ी स्लिप हो गई है ,वसु दौड़ती हुई अस्पताल पहुँच गई , मामा जी ने तुम्हें आगाह किया था न , अब हो गया न , घर ले चलो , मैं तुम्हारे पास ही रहूंगी , और मैं वसु के घर आ गई । दो दिन बाद मामा आ गए , भाई !! बिस्तर किसने बीमार कर दिया है ? जब मामा को पता चला की लेखा है तो , नाराज हो गए , मैं चलता हूँ , कोई मेरी बात नही सुनता , उनकी आदत थी दिल के पास आए लोगों के लिए बेचैन हो जाते थे । मामा जैसे बन्दे से मिलने के बाद किसी रिश्ते या दोस्त की आवश्यकता नही होती , मामा चले गए ।
मामा करीब एक हफ्ते के लिए बाहर गए थे , तभी फोन की घंटी बज गई , हाँ जी , कोन बोल रहें हैं ? नहीं कैसे हो सकता है ? नही , यह सच नही हो सकता ? फोन पटक कर वसु सोफे मैं धंस गई , सर पकड़कर बैठ गई , नही , यह नही हो सकता ? मैं , बिस्तर पर पड़ी परेशां हो गई , वसु , तुम शिखा को फोन करो , लेकिन बात सच निकली , मामा को अटैक आया और वे कहीं दूर चले गए । वसु , आकाश के साथ मामा के घर चली गई । रात भर मैं मामा को खोजती रही , सुबह वसु खाली सी होकर वापस आ गई । मामा की , यादों के साथ दो दिन और जीकर मैं वापस आ गई ।
रेनू शर्मा ......

1 comment:

योगेन्द्र मौदगिल said...

बढ़िया प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें