Thursday, January 11, 2024

विरक्ति 

अभी चौबीस बरस की ही हुई थी कि माँ ने कह दिया ,जया तुम्हारे लिए लड़का देख लिया है। मैं भौचक सी माँ को देखती रह गई ,माँ!! अभी तो पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई ,क्या गारंटी है कि वे लोग मुझे आगे पढ़ाएंगे ? माँ ,मुझे जॉब करना था ,अपने पैरों पर खड़ा होना था ,मुझे बताया तो होता ?गुस्से से तमतमाती कमरे में चली गई ,सबको जी भरकर गालियां  दे दीं। ऐसा लगा मानो ,सब कुछ मुझसे अचानक से छीन लिया गया हो। 

मई तक एग्जाम हो गए ,समय पंख लगाकर उड़ गया। चली गई नए घर और नए लोगों के बीच। मुझे ही समझना पड़ा किसको ,कब ,क्या चिहिए। जया ! चाय ,जया पानी देदो ,जया खाना दो ,जया आज दही बड़े खाने हैं ,जया आज कढ़ी -चावल बना लो। मैं ,जया न होकर एक मशीन बन गई। अपना ध्यान रखना तो भूल ही गई ,एक दिन पता चला कि गर्भवती हूँ। सासु जी थोड़ी नरम हो गईं ,पति हमेशा की तरह पति ही था। 

शाम को जब ,ऑफिस से लौटता तो लगता यही पूरा देश संभालता है ,जैसे राजा का देश निकाला हो गया ,पर ठसक बची हो ,कोई सलाम ही नहीं थोक रहा ,तो अजीब सी सनक पर सवार रहता। मेरी अकड़ भी जन्मजात थी ,तो कम न थी। राजा के सामने अदब से सर न झुकाया। दो बच्चे पैदा किये और परवरिश में लग गई। एक बार माँ के पास गई थी तो ,माँ बोल उठीं -जया पढ़ना चाहे तो ,पढ़ ले मैं सहायता करुँगी। अरुण अपनी राजशाही दुनियां में भटकता है ,घर चला रहा है। 

मैं ,बरसों तक जॉब का इंतजार करती रही ,कुछ काम किया भी लेकिन संतुष्टि नहीं मिल  सकी। माँ ,बाबा एक दिन हमेशा के लिए चले गए तो धीरे से पीहर भी छूट गया। मैं ,निरालम्ब अपने घौसले में पड़ी रहने पर मजबूर हो गई। सासुजी और ससुर जी भी चले गए। सपनों की दुनियां मेरी अपनी है ,वहां भी झाड़ियों में भटक जाती हूँ। मैंने ,जब -जब चाहा कोई मेरी आवाज सुने ,कोई नहीं सुन पाया ,फ़ोन भी नहीं आया। न किसी सखी का ,न किसी बहन का ,न किसी रिश्ते का। समझ आया कि खुद से सब ,झेलना है पति नाम के प्राणी के साथ। जब ,प्राण जाते हैं तब ,भी कोई आहट नहीं होती ,मन को एकाग्र और संयमित करना होगा। खुद के साथ चलना होगा। बंधनों के संबंधों से विरक्त होना होगा। 

































 

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