विद्रोह
दुहिता अभी भी छोटी ही थी। माँ का पल्लू पकडे खाना मांगती रहती थी।माँ !! मंचूरियन बना दो ,कभी मैगी बना दो ,माँ ! आज तो पिज्जा खाना है। माँ ,अपने आराम को तकिये के नीचेदबाकर बच्चों की फरमाइश पूरी करती रहती। बेटा काली कुछ बड़ा काम करके विदेश जाना चाहता था। उनकी दादी कभी आ जाती तो ,उन लोगों की सारी बातें हम लोग भी सुन लेते थे क्योंकि दादी ऊँचा सुनती थी तो ,सब लोग ऊँचा बोलते थे।
दुहिता सामान्य सी लड़की थी ,इंजीनियरिंग कर रही थी। भाई अमेरिका जा चुका था। माता -पिता वैसे भी बेटों के प्रति ज्यादा दयालु होते हैं। यही बात बेटी करे तो ,अरे ! क्या भारत में कॉलेज नहीं हैं ? यहाँ कोई पढता नहीं क्या ? चुप चाप पढ़ो और शादी करो। दुहिता भी जा सकती थी लेकिन नहीं हुआ। दुहिता की जिद थी ,पढ़ रही हूँ तो जॉब भी करुँगी। किसी तरह आई टी में जॉब और पुणे आ गई। साथ में पढाई करनेवाला पिलगांवकर हैदराबाद में था तो दुहिता ने अपना ट्रांसफर हैदराबाद करा लिया। दोनो साथ रहने लगे।
दुहिता छुट्टी में कभी घर जाती तो ,माँ से झगड़ा हो जाता ,ब्याह करो। लड़कों की लिस्ट उसके हाथ में होती लेकिन दुहिता तो ,अपनी पसंद से शादी करना चाहती थी। भाई भी तो वहां मौज कर रहा था। बिना शादी किये किसी लड़की के साथ रह रहा था। उसे कुछ नहीं बोलते ,मेरे पीछे क्यों पड़े हो ? नहीं करनी शादी और वापस आ गई। दुहिता की माँ ,दुखी हो गई। माँ को पता चला कि कोई महाराष्ट्रियन लड़का है जिससे शादी करना चाहती है लेकिन वो गरीब घर से है। माँ तो तैयार भी हो जाती लेकिन पिता ने कसम खा ली ,नहीं होगी शादी और ऑफिस में फोन किया और दुहिता को वापस घर ले आये।
दुहिता अवसाद में चली गई ,किसी से बात नहीं करती ,कोई दोस्त नहीं। अपने कमरे में जाने क्या करती रहती है। अच्छी लड़की माता -पिता के अहम् के कारण कैद होकर रह गई। सभी लोगों को पता चल गया कि दुहिता जॉब छोड़कर आ गई है। विद्रोह की अग्नि ऐसी जली कि विवाह से ही इंकार कर दिया। दुहिता ने अपना जीवन क्रोध में भस्म कर लिया।
रेनू शर्मा
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