Friday, January 27, 2023

मैं , माँ !! हूँ

कितनी रातें जागकर 

तुम्हें , थपथपाया था ,

अनगिनत पलों में 

तुम्हें ,सीने से लगाया था। 

बार -बार ढाल बनकर 

आ गई ,जब 

पिता ने फटकारा था। 

कई बार ,मंदिर के 

आले से निकालकर 

तुम्हारे हाथ में ,

थमाया है। 

कितनी बार 

खिड़की के बाहर 

तुम्हारी परछाईं देखकर 

कुण्डी खोली है। 

अब ,तुम बोलते हो 

माँ ,ऐसा कैसे चलेगा ?

माँ ,तुम असहनीय हो 

माँ ,तुम हमारे साथ नहीं रह सकतीं 

माँ ,तुम कहीं चली जाओ 

तब ,मैं ,आँगन 

में दौड़ते तुम्हारे ,

गिरते ,उठते क़दमों को 

देखकर खुश होती हूँ। 

दौड़कर आकर मेरा 

आँचल खींचते हो 

तब ,मैं मंत्रमुग्ध होती हूँ। 

क्योंकि ,मैं ,तुम्हारी माँ !! हूँ। 

रेनू शर्मा 









































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