पूर्वजों से सुना था , किस्मत का खेल अजब है , उस शक्ति के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता | कभी तो लगता था , हाँ , सच तो है , कभी पत्ता हिलता है ,कभी नहीं, फिर लगता है नहीं , यह तो हवाओं खेल है , हवा चलेगी तब,पत्ता हिलेगा न , फिर, समझ नहीं आया कि कर्म का फंडा क्या है ? कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर , लेकिन इन्सान जो भी कर्म करता है उसका तो कोई न कोई फल होता है |हम भोजन भी करते हैं ,तो जीवित रहने के लिए |हमारे जीवन में किये गए कार्य निष्फल नहीं हैं | बाद में समझ आया , यहाँ कर्म का अर्थ योग कर्म या ध्यान से है | योग को निष्ठां पूर्वक करता चल , यहाँ फल की कामना मत कर | योग करते हुए भी अन्यथा कर्म फिर
भी करने पड़ेंगे | इस युग में जीवित रहने के लिए न जाने कितने कर्म करने पड़ते हैं , कितने छल , प्रपंच , माया का जाल बुनना पड़ता है शायद योग कुछ पाप कम करदे | यही सब उधेड़ -बुन सुगनी के मन में भी चलती रहती
है |
सुगनी बदी के खेल में कुछ उलझी सी हुई है , कुछ बरस पहले तक सोचती थी , हमारा कर्म ही भाग्य बनाता-बिगाड़ता है | सब हम ही तैयार करते हैं , कैसे जीवन जीना है , लेकिन एक दिन सुगनी घर के आगे छप्पर के
नीचे खटिया की अदवाइन कस रही थी कि भीखू दौड़ता हुआ आया बोला - जिज्जी !! बदके भैया की टक्कर हुई है ,काहे से ? सायकिल और सड़क से , अरे !! का तेरी मत मारी गई है , सड़क से कैसे ही गई ?जिज्जी !! भैया , सायकिल से स्कूल जा रहे थे , चौराहे पर तांगा आया ससुरे ने घोडा हांक दिया , अब सायकिल तांगे से टकरा गई और भैया सडक पर घिसट गए| का चोट -फैंट लगी है ? नहीं जिज्जी !! हम सबने तांगेवाले को धुनाई मचा दी उसे जायदा चोट आई है , भैया तो ठीक है | कहाँ है ? वो छापरिया में |
सुगनी दौड़ती हुई गई गौरव को देखा , ठीक लगा तो बोली - देखकर चलना चाहिए , कहाँ ध्यान था तुम्हारा ? अरे !! माँ , मैं तो ठीक चल रहा था , वो तो घोडा ही बिदक गया था , तो फिर उस तांगेवाले को क्यूँ मारा ? माँ , मैं तो घबरा गया था , इन सब लोगों ने मारा , मैं तो उसे बचा रहा था | अरे ! जस्सो !! जाओ , गोवू के लिए दूध में हल्दी डालकर ला दे और वापस सगुनी खटिया के पास आ गई |
सगुनी का मन परेशान था , अभी तो सब ठीक था फिर तांगा कहाँ से भिड गया? बेचारा पिट भी गया | ईश्वर की लीला जाने क्या है ? हर घटना के साथ एक रहस्य छुपा रहता है और सुगनी की समझ से परे चला जाता है | सुगनी , ईश्वर के सामने हठ जोड़कर प्रार्थना कर लेती है , भगवान !! सबको सद्बुद्धि देना और अपने काम में लग जाती है |
वीर प्रताप शाम को घर लौटते तो साथ में दोस्तों का झुण्ड होता , कोई भंग पीसता , कोई ठंडाई घोंटता , वीर की थाली में दाल के ऊपर ढेर सारा घी पड़ा रहता , गरम रोटी खाकर , आँगन में बिछी चारपाई पर पसर जाता , सुबह चार बजे जब चिड़िया कुनमुनाने लगती तब दिन भर के कर्म शुरू हो जाते |
वीर साब को कभी समय मिलता तो सगुनी से माथा -पच्ची भी कर लेते , लगी रह अपने भगवान के साथ , देखता हूँ कौन , माई का लाल तेरे बुरे बखत में साथ देगा ? तू बुलाएगी और ये नहीं सुनेगा , अरे !! सब झंझट छोड़ , मस्त रह , ला , बढ़िया चाय पिला और सगुनी के मन में हलचल मचाकर चले जाते |
कई बार सगुनी सोचती है , हाँ , सच तो है , उस दिन ईश्वर से गुहार लगा रही थी , गोनू की नौकरी लगा दो , बेचारा !! सुबह से कॉलेज में पड़ा है , दस कोस दूर है ऊपर से खाना भी नहीं खाया | रात को ग्यारह बजे फोन आया था माँ !! कंपनी वाले एक महीने बाद बताएँगे कब आना है , अभी मामा के पास आ गया हूँ | पूरे दो महीने तक पूजा करती रही कोई खबर आज तक नहीं आई | सगुनी का विश्वास हर पल बदलता रहता है , फिर सोचती है सब , भाग्य का लेखा -जोखा है , जो किया होगा ,वो तो , झेलना ही पड़ेगा | जाने कबसे यही तो सुनती आ रही है , भाग्य से अघिक न किसी को मिला है न मिल सकता है |फिर क्यों दुनिया भागम भाग लगी रहती है ? उसे समझ नहीं आता |
इस बार जब , बरसात शुरू हुई तब , एक महात्मा गाँव के मंदिर पर आकार रुक गए हैं , भीखू बता रहा था | चार महीने तक यहीं रहेंगे , जिज्जी !! गाँव वाले जो देंगे वही खा लेंगे , शाम को प्रवचन भी करेंगे | जिज्जी !! मंदिर आ जाना , क्या पता तुम्हारी समस्या भी सुलझ जाये |
सुगनी ने सुना था , जीवन में गुरु का स्थान भी होता है , जिसका गुरु नहीं , उसका जीवन बेकार होता है | स्कूल में मास्टर को ही गुरु जी कहती थी , लेकिन उन्होंने अक्षर ज्ञान के अलावा कुछ नहीं बताया , दसवीं पास करने पर भी सगुनी को घर के काम से सर मरना पड़ता है , क्या फायदा हुआ ? मर्द लोग तो कुछ सुनते ही नहीं , सरकार ने कौन सी नौकरी देदी ? हाँ , बस एक फायदा हुआ है , गौरव , शहर से किताबें लाकर देता है उन्हें बड़े चाव से पढ़ती हूँ , अब देखो महात्मा जाने क्या बताये ?
टीकाटीक दुपहरी में गाँव वाले शाम का सामान मंदिर पर एकत्र कर रहे हैं , कोई दरीलाया है , कोई प्रसाद लाया है , कोई फल लाया है , आज मंदिर पर रौनक छा गई है | वीर प्रताप ने ही मंदिर पर एक बड़ा बरांडा बनवा दिया है , भीखू भी मंदिर में रम गया है , सगुनी पांच बजे मंदिर जा पहुंची , महात्मा दीवान पर पालथी मारे विराजमान है , गाँव वाले नीचे बैठे हैं , देवी -देवताओं के जयकारों के साथ ही महात्मा जी के बोल फूट पड़े - बोलो गुरु महाराज की जय !! बिना गुरु के जीवन व्यर्थ है , ईश्वर अंतर्यामी है , कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है , माया आनी -जानी है , व्यक्ति का जन्म निश्चित है तो मृत्यु भी निश्चित है | इन्सान को सदैव सच बोलना चाहिए , दुनिया भर के नियम कानून ,जो हमारे पूर्वज सुनते आ रहे हैं वही सब उन्होंने बता दिया , शाम को भोजन का समय हुआ और औरतें जाने लगीं , महात्मा जी थोड़े बिचलित हो गए , दूसरे दिन दो बजे के बाद आने का कह कर , प्रवचन समाप्त कर दिए |
सगुनी सोचने लगी गुरु तो घर बैठे ही आ गए हैं , क्यों न दीक्षा ले ली जाय ? कुछ तो ज्ञान जाग्रत होगा , पता चले आखिर ज्ञान क्या है ? यूँ ही मर गए तो , अफ़सोस होगा गुरु नहीं बनाया इसलिए नरक जाना पड़ा |
दूसरे दिन सगुनी भी इक्यावन रूपये लेकर गई और महात्मा को गुरु बना लिया | महात्मा ने गुरु मन्त्र दिया " ॐ नम : शिवाय " चार महीने तक गाँव भर में उत्सव मनाया जाता रहा | लेकिन ज्ञान तो वहीँ का वहीँ था , भाग्य का लिखा तो गुरु भी नहीं मिटा सकता था |अचानक वीर प्रताप को बुखार हुआ और उलटी लग गईं , गाँव के वैद्ध को दिखा दिया , कोई आराम नहीं हुआ , सगुनी भागती हुई महात्मा के पास गई , गुरु जी !! मेरी एक अरज सुन लो , मेरे मर्द को बुखार आ गया है , हालत ख़राब हो रही है , कुछ कृपा करो , ईश्वर को बुलाओ , अरे !! पगली !! ईश्वर तो तेरा भी है , तू ही पुकार तभी सुनेगा , में भी , कोशिश करूँगा , अनहोनी को कोई नहीं रोक सकता , सगुनी भोचक रह गई , अरे !! कैसा गुरु है ? सहारा देने के बजाय भाग्य के भरोसे छोड़ता है , सगुनी घर लौटी , तब तक वीर को शहर ले गए और अस्पताल में भर्ती किया जा चूका था | भीखू बता रहा था जिज्जी !! चिंता न करो , डाक्टर ने बोतल चढ़ा दी है | सब ठीक होगा |
सगुनी , फिर असमंजस में थी , ज्ञान के लिए अपने भीतर देखे या महात्माओं के प्रवचन सुने या उनके दरवार के चक्कर लगाये , क्या करे समझ नहीं आ रहा ? सुना है ध्यान लगाने से अपने भीतर ही भगवान मिलता है , तब उसे ही देखती हूँ शायद , यही बदी का खेल है ?
रेनू शर्मा ....
1 comment:
सारगर्भित रचना बधाई
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