Monday, June 21, 2010

फादर्स डे , का तोहफा ...

कहा जाता है कि मानव ही सभी प्राणियों में अधिक संवेदनशील होता है , पशु , पक्षी , जीव ,जंतु भी संवेदनाओं को प्रेषित करने में पीछे नहीं रहते हैं , हम मानवीय संवेदनाओं की गिरावट पर बात कर रहे हैं , माता -पिता का जीवन में स्थान ,मंदिर में विराजे देवता से कम भी नहीं है , उन्हें हम दिन रात , हर पल पूजते हैं ,तो माता पिता को भी सम्मान देते हैं , शायद यही वजह है ,हम सब लोग फादर्स डे बड़ी धूम -धाम से मनाने लगे हैं , भारतीय संस्कृति में हजारों ऐसे उदाहरण हैं जब , बेटे ने ,या बेटी ने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया , संयुक्त परिवार की यही परम्परा हम भारतीय लोगों को संसार में ऊँचा उठती है , 
कुछ ऐसी भी स्तिथि होती हैं जब , माता -पिता दर -दर की ठोकर खाने को मजबूर हो जाते हैं , अपने ही बच्चों के कारण , यही बिडम्बना है . 
बूढी हड्डियों में ठिठुरन पैदा करने वाली , रात के सन्नाटे को चीरती हुई किसी की दर्द भरी आवाज से सेवा -धाम का परिसर मानो सिसकने लगा था , बाहर जाकर देखा ,तो एक वृद्ध पुरुष ,जो देखने से भले घर से लग रहे थे , अकेले खड़े डबडबाई आँखों से हम सबको देख रहे थे , शायद सोच रहे होंगे कि ये लोग जाने कैसे होंगे ? तभी , शारदा ,जो उस आश्रम की संचालिका थीं , मुझे भीतर ले गईं , उस दिन दरवाजे से भीतर आया तो बारह बरस तक , वहीँ जमा रहा , 
दिन -रात , सुबह -फिर -शाम यूँ ही निकलती गईं , धीरे -धीरे किसी का इंतजार करना भी बंद हो गया , आता भी कौन ? एक बेटा बहु थे , बेटी पराई हो गई ,सब लोग किनारे हो लिए , शायद मुझे आश्रम छोड़कर उन्हें सकून मिला होगा , एक दिन , सुबह से ही कुछ हुड़क छूट रही थी , आंसुओं का सैलाव सा बह रहा था , अचानक शारदा जी , आ गईं , पूछ ही लिया , दादा जी !! आज क्या बात है , बड़े सेंटी हो रहे हो , मेरी कांपती हथेली को अपने हाथों में थाम लिया और मेरे पास बैठकर , मेरे चहरे पर अपनी आँखें मानो चिपका दीं ,मैं , भीतर ही भीतर रिस सा रहा था , फूट सा गया , पहले तो , जी भरकर ,रोया क्योंकि इससे पहले कभी रोया नहीं , वे भी मुझे खुलने का मौका दे रहीं थीं .
जिन्दगी की परते खोलने का आखिरी दांव हाथ लगा था , तो सब कुछ कह गया , शारदा जी !! हम जब ,शादी के बाद भोपाल आये , बस घर ही चला पाते थे , बेटा , हमारे जीवन में आया तो , पत्नी भी नौकरी करने लगीं , सब कुछ ठीक हो गया , जब मैं , घर पर होता तो , तो माता -पिता बन जाता , कभी खेलता , घोडा बनता , खाना खिलाता ,कभी बाहर ले जाता , कुछ समय बाद बेटी भी आ गई , अब , पत्नी ने काम छोड़ दिया , बच्चे जो देखने थे , बच्चे ही हमारी दुनिया बन गए थे .
सब कुछ ठीक चल रहा था , बच्चे बड़े हो गए , बेटा सरकारी नौकर हो गया , बेटी का विवाह कर दिया , पत्नी का स्वास्थ ख़राब हो गया , हमारी जमा पूँजी ख़तम ही हो गई , सोचा बेटे के साथ जीवन काट लूँगा , बेटे का विवाह भी हो गया , मेरा आत्म बल और शारीरिक बल टूट रहे थे , पार्टियों की शौक़ीन बहु को मैं खटकने लगा था क्योंकि एक वृद्ध घर मैं हो तो , आजादी नहीं भोगी जा सकती , कहाँ जाता ? यूँ ही तो , कहीं जा नहीं सकता था , कई बार हमारी बात चीत हुई , लेकिन कोई समाधान नहीं निकला , तभी पता चला बेटे का तबादला हो गया है , मैं , खुश था कि चलो अब , सब ठीक हो जायेगा , नई जगह होगी ईश्वर सब ठीक कर देंगे ,लेकिन सब ठीक नहीं हुआ .जब सामान लेकर जाने लगे ,तब आपके दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया और चले गए .
मुझे पता था , शारदा जी !! बहुत दुखी हुईं थीं , रात भर मैं , सो नहीं सका , उन्होंने मेरे बेटे का पता उसके ऑफिस से लगवा लिया और उसे बताया कि पिता आपसे मिलना चाहते  हैं , जाने किस सुनहरे पल की उसे याद आई होगी , बेटा , बात करने को राजी हो गया और दो दिन बाद आने का वायदा भी कर दिया , मैं , दिन भर ऐसे अपने काम निबटा रहा था ,मानो मुझे पंख लग गए हों , खाना भी नहीं खाया ,सोच रहा था , आज तो बेटे के साथ ही खाना खाऊंगा , बहुत खुश था ,चाहे मुझे बारह बरस यहाँ बीत गए हों , धीरे -धीरे शाम से रात होने को आ गई ,पर बेटा नहीं आया , ९ बजे उसका फोन आया , मैं नहीं आ सकता , अगर पिता जी हमारे साथ आयेंगे तो पत्नी आत्महत्या कर लेगी , क्या करूँ ? अब ,पिता जी के लिए अपना घर तो नहीं तोड़ सकता , 
जब , मुझे पता चला तब , मेरे भीतर कुछ टूटने की आवाज आई थी , दिल बैठ सा गया था , सोचा था बेटे के हाथों अंतिम संस्कार होगा तो ,शायद मुक्त हो जाऊंगा ,लेकिन सब बिखर गया , फादर्स दे पर मेरे बेटे का दिया तोहफा मुझे लूट ले गया , मैं , एकदम से शांत हो गया और बिस्तर पर लेट गया , ईश्वर का शुक्रिया अदा किया , आँख बंदकर पत्नी को याद किया और साँस की डोर जाने कहाँ चली गई पता नहीं , मेरा शरीर सेवा धाम के बरांडे मैं पड़ा था , मैं, आजाद होकर बहुत ही खुश था , पहली बार लगा मुक्ति यही है .
रेनू शर्मा ....