औरत के वजूद को ढोते हुए सीतमा , रोज ही एक ही साड़ी मैं दीख पड़ती है . साड़ी का किनारा थोडा चौड़ा है , मैरून रंग और हरे रंग की साड़ी पर नीला पल्ला है . कई बार बता चुकी है बाई साब !! दो जोड़ा साड़ी खरीदी थी , मनकू !! कह रहा था अस्सी रुपये जोड़ा मिल गई है , मनकू उसका पति है . एक जोड़ा का रंग भी तो एक जैसा होता है जैसे उसके पति और उस सीतमा का रंग ताम्बई एक जैसा ही है . सीतमा पर सब फबता है .
पति के साथ सुबह होते ही निकल पड़ती है काम पर , कभी गिट्टी तोड़ने का काम कराती है , कभी मसाला उठाने का काम , कभी ईंट उठाने का काम कराती है . सीतमा को सबसे अच्छा काम गिट्टी तोड़ना ही लगता है एक जगह बैठी रहती है , विचारों का जाल उसके चारो और एक रक्षा कवच सा बना लेता है , तभी तो कभी हंसती है , कभी खीन्जती है और कभी मुस्करा भर देती है .
जब कोई सनकी मजदूरों का सरदार उसके सामने आकर खड़ा होता है और उसकी घुटनों तक खुली टांगों को घूरता हुआ , उसके बटन खुले पोलके पर नज़र गड़ता है , तब हथोडा हाथ मैं उठाकर जोर से पत्थर पर दे मारती है और गिट्टी सीधे उसके ललाट पर जा टकराती है , भडुए !! मैं ही मिली हूँ सुबह सुबह घूरने के लिए , हरामी !! कहीं के , जा चल , काम कर अपना . सीतमा !! अपना हाथ गिट्टी पर चलाती रहती है , वैसे सीतमा से सब घबराते हैं , एक बार शहर से एक ठेकेदार शर्मा आया था , कह रहा था , मेहनती मजदूरों को शहर लेकर जायेगा , जादा पैसे देगा , रहने को झुग्गी भी देगा . सीतमा के आगे पीछे घूम रहा था , मनकू उस समय दूसरे ठेके पर काम पर था , मुरलिया दौड़ कर गया और मनकू को खबर कर दी , नया साब आया है सीतमा से भिड़ने का जुगत लगा रहा है . मनकू हंस दिया , ससुरे !! का काल आवा होई , तसला हाथ मैं लेकर चल दिया , सीतमा हाथ मैं फावड़ा लिए कड़ी है देखो साब !! मुझे शहर नहीं जाना और न तुम्हार कोई मेहरवानी चाही , अब , तनिक काम देखो और काम करने दो , शर्मा वहां से चल दिया , अरे !! मनकू !! देखो तो सीतमा शहर जाने से मन कर रही है अब , तुम्हीं समझाओ , तो का करें साब !! हमर काम तो यहीं चल रहा है , ठेकेदार से बात करो साब .
एक टांग पर पूरे शरीर का भार उठाता हुआ चौहान भी आ धमका अरे !! साब , सीतमा हमर पक्की लेबर है , आप हाट मैं जाकर देखो , शर्मा चला गया . बाई साब !! जब से काम किया है मनकू से कह दिया है , तू !! मेरे काम मैं टांग नहीं अड़ाएगा , नहीं तो तू काम कर मैं घर देखती , मनकू जनता है कि सीतमा अपने मान सम्मान से कोई समझोता नहीं कर सकती .
अभी कुछ महीने पहले मनकू काम से लौटा तो , उसका मुंह पीला पद रहा था , मुरलिया ने बताया कि पेट दर्द हो रहा है , दो दिन से इसने खाना भी नहीं खाया है , बाई साब !! मनकू को लेकर गाँव के वैद्ध के पास गई , गोली और चूरन फँकने को दिया था जब , कोई फायदा नहीं हुआ तब , ठेकेदार से पैसा लेने गई , दो सौ रूपया हाथ पर रख कर एक हफ्ता इन्तजार करने को कहा , बुरे बखत का मान कर माँ के पास गाँव गई , वहां भी निराशा हाथ लगी , इससे अच्छा तो उस शर्मा के साथ शहर चली गई होती तो अच्छा था . भाई ने दो सौ रूपया दिया था , माँ से फिर कभी नहीं मिलूंगी सोचकर वापस आ गई . मुरलिया को लेकर मनकू को शहर दिखाने उस चौहान की गाड़ी मैं हम आ गए .
बाई साब !! यहाँ तो सब उलट -पलट था , भगवान के मंदिर सा साफ था , लम्बी कतार लगी थी लोगों की , बड़ी मुश्किल से डॉक्टर के पास जाना हुआ , मनकू का पेट दबा कर देख रहे थे , कभी आँख खोलकर देखते , कभी जीभ देखते , मैं तो घबरा गई थी , तभी डॉक्टर बोला - क्या खाया था ? अभी तो जाने अंगारु न खाए , डॉक्टर ने मनकू से पूछा - क्या बोली तेरी औरत ? कुछ नहीं साब !! कह रही है कुछ नहीं खाया , अरे !! मोहन !! देखो इन लोगों को दवा समझा दो , हम लोग मोहन के पीछे बाहर आ गए .
हफ्ते भर की दवा हमारे हाथ पर रख कर बोला जाओ , सीतमा ने रुपये निकले और देने लगी तो बोला - तुम्हारे दाम आ गए हैं , कौन दे गया साब !! हम तो यहाँ किसी को नहीं जानते , अरे वो ठेकेदार दे गया था . बाई साब !! मेरी आँखें भर आईं , मनकू को लेकर हम गाँव आ गए , सोच रही थी ठेकेदार मिलेगा तो पाँव पड़ जाउंगी, उसने बड़ा साथ दिया है , तभी मुरलिया चीखता हुआ आया , सीतमा गजब हो गया , अपना साब , ख़तम हो गया , हम सब सुनना हो गया , अरे !! भाई उसका टक्कर हो गई ट्रक से , हम लोग काम छोड़कर भागे , रास्ता जाम कर दिया या तो ड्राईवर हमें देदो ,या दस लाख रूपया उसकी घरवाली को दो , दस घंटे तक हम लोग सड़क पर पड़े रहे , हमारा तो सब कुछ चला गया , सरकार माँ गई . जब ठेकेदार को देखती तो , खून आँखों मैं उतर आता था , निपूता !! देखता भी ,तो ऐसा ही था , झरझर गलियां बक देती थी , हँसता हुआ चला जाता था , ठिठोली तो ऐसे करता था मानो , घर मैं लुगाई ही न हो . बाई साब !! जो काम मेरी माँ न किया वो ,उस लुच्चे ने किया . मैं दुआ करती हूँ उसका परिवार सुख से रहे .
एक दिन चौहान की लुगाई से मिलाने हम गए थे , पूंछ रही थी सीतमा कौन है ? मैं तो चौंक गई , एक दिन पहले साब ने कहा था - सीतमा का आदमी बीमार है , उसे हजार रूपया देना है , मैं उस देवी के पैर पड़ गई . तब का दिन है कि आज का दिन उसी चौहान के घर की होके रह गई , पूरा काम करती हूँ , उसकी औरत बड़ी नीकी है , उसे कभी नहीं बताया कि उसे कितनी गलियां दिया करती थी . इस जनम मैं तो , उस ठेकेदार का कर्ज नहीं चूका सकती , लुच्चा हमेशा के लिए बाँध कर चला गया .
रेनू .....
No comments:
Post a Comment