बारह बरस की कुटिनी जल्दी -जल्दी रसोई का काम समेट रही है , माँ ने ताकीद कर दी है , पढ़ाई के साथ खाना बनाना भी आना चाहिए । लड़कियों को कच्ची उम्र में ही काम पर न लगाओ तो ढीट हो जाती हैं , मां ऐसा मानती है । दो किलोमीटर दूर स्कूल है , सुबह होते ही बस्ता उठाया और वहां दौड़ पड़ती है , लेकिन जाने से पहले बाबा को चाय बनाकर देती है , दाल बनाने रख देती है । मां , अब बीमार रहने लगी है , उसके घुटने दर्द करते हैं । नहा धोकर बैठ जाती है , बताती है कुटिनी काम जल्दी से कैसे ख़तम करे । वैसे उसका नाम स्कूल में श्यामा देवी है , लेकिन दादी कहती है - घर में जब तक कुटिनी रहती है , पीटने के काम करती रहती है , इसलिए इसका नाम कुटिनी ही ठीक है ।
कुटिनी को अपने नाम से कोई फर्क नही पड़ता । कोई क्यों कहता है ? बल्कि वो ध्यान देती है उसका नाम कौन कितने प्यार से ले रहा है । बाबा तो , जब काम होता है तब बुलाते हैं । मां , को जब घर -ग्रहस्थी समझनी हो तब बुलाती है या कुछ गरमा -गरम बनाना हो , तब बुलाकर बताती है कैसे बनाना है । छोटी बहन गोला !! है , उसे तो कुटिनी का आशय ही नही पता , एक भाई है चौदह बरस का , कभी -कभी चिढाने के लिए कुटिनी बुलाता है ।
मां , भी तो जब , दादी की चिकचिक से परेशान हो जाती है , तब बाहर खेल रही कुटिनी को बुलाकर तडातड जड़ देती है दो चार थप्पड़ । बेचारी बिलबिला जाती है , पर मां का कलेजा थोड़ा डंडा हो जाता है । भडांस तो ऐसे निकलती है जैसे दादी को ही धुन रही हो , पर जब सामने कुटिनी सुबकती है तब , सीने से लगाकर ख़ुद भी रोने लगती है ।
दादी वैसे तो ठीक है , पर मां जब पूरे दिन काम निबटाती रहती है , फ़िर भी उसके मां -बाबा को गाली देती है , उसे लगता है मां के पीहर से दहेज़ कम मिला है । मां , बताती है ढेर सारे बर्तन , कपडे , मिठाई , फल , मेवे , जेवर सब तो दिया था , पर जाने क्यों , कुटाट बुढिया पीछा ही नही छोड़ती । जब दादी बीमार हो गई तब , मां ने ही सेवा की और मर गई तब मां ने ही गंगाजल मुंह में डाला ।
अब , तो कुटिनी सोलह बरस की हो गई है , सब अच्छा बुरा समझ लेती है । बाबा दिन भर खेत पर गुजार देते हैं , शाम को जब , घर आते हैं तब , दौड़ कर पानी का लोटा थमा देती है , गरम अदरक वाली चाय भी पिलाती है । बाबा के कपड़े धोकर प्रैस करती है । कभी -कभी बाबा से पूछ लेती है -बाबा हम शहर में क्यों नही रह सकते ? तब , बाबा बता देते हैं , सब लोग शहर में रहेंगे तो गाँव में कौन रहेगा ? गोला अपने काम से मतलब रखती है , कभी -कभी कुटिनी से लड़ भी लेती है । बाबा अपने यार दोस्तों में व्यस्त रहते हैं पर , जब मेला लगा हो तो , शहर भी ले जाते हैं । दो तीन दिन बाद बच्चों के लिए पेडे भी लाते हैं ।लेकिन श्यामा कुटिनी जब , शहर जाकर पढने की बात करती है तब , मुकर जाते हैं ।
गाँव में पढो , शहर में दाखिला लेलो , मां , अब बुजुर्ग हो चली है , न कुटिनी को मरने दौड़ती है और न दादी की झिकझिक रही । बैठ कर कभी स्वेटर बुनती है , कभी दरी बुनती है , कभी खाट बुन लेती है आस -पास की औरतें आकर हाथ बटा देती हैं ।
भाई किसना अब बाबा का काम सँभालने लगा है । पढ़ाई उसे नही भाती, बारहवीं पास कर ली है , फ़िर भी खेत में ट्रेक्टर चलाता है , माल जोखता है , मंडी ले जाता है , पैसे वसूलता है , उसे यही काम अच्छा लगता है । मां , बाबा से कहने लगी है -कुटिनी के लिए वर देखना शुरू करो , बड़ी हो गई है । बाबा भी चिंता करते हैं ।
इस फागुन में कुटिनी बीस बरस की हुई और बाबा ने उसे ब्याह दिया । शहर में ससुराल है , लड़का मास्टरी करता है पर , पक्का लीचड़ है । अपने को प्रोफेसर ही समझता है । कुटिनी ने सब संभाल लिया है । पीहर की याद आती है तो मां से आकर मिल जाती है , प्रोफेसर साब , कभी -कभी सोमरस पान भी कर लेते हैं , फ़िर कुटिनी से पूछ बैठते हैं , श्यामा मैडम !! तुम्हारे बाबा , तुम्हें बुलाते क्यों नही , तुम्हारा भाई , तुम्हारे पास क्यों नही आता ? क्या अपनी कुटिनी को भूल गए ? तुम्हारा भाई भी भूल गया साला !! कहीं का , बेटी ब्याह दी , बस हो गया काम ।
कुटिनी दिल मसोस कर रह जाती है , जानती है बाबा और भाई उसके घर का पानी भी नही पीयेंगे , आने -जाने का तो प्रश्न ही नही है ,किसना आता है कभी -कभी , माँ उसके हाथ मिठाई ,कपडे भेजती रहती है फ़िर भी प्रोफैसर साब जैसा चाहते हैं वैसा नही हो पाता । बाबा ने गोला का ब्याह भी कर दिया , किसना की शादी भी हो गई चार साल हो गए , एक बेटा है , बाबा ने खेत बेच दिया और पैसे बैंक मैं डाल दिए ।सब कुछ ठीक चल रहा है पर , जाने क्या हुआ अब न कुटिनी का नाम लेते हैं और न गोला का । बेटियाँ तो जैसे अब इस दुनिया मैं उनके लिए रही ही नहीं । माँ , अकेली बैठी तडफती रहती है , गोला और कुटिनी से मिलने के सपने संजोती रहती है ।
कुटिनी जब गाँव गई तब , माँ ने बताया -तुम्हारे बाबा को पाता चला है पिता की दौलत मैं बेटी का भी बराबर का हक़ होता है , तभी से दूर हो गए हैं । वे संपत्ति मैं हिस्सा नही चाहते । हाँ , माँ , मुझे तो कोई दौलत नही चाहिए फ़िर ऐसा क्यों ? एक बार पूछ तो लेते । उन्हें बता देना माँ , कुटिनी ने अपनी मंशा दिखा दी । गोला तो गाँव आती ही नही फ़िर भय कैसा ? माँ ने कुटिनी को सीने से लगा लिया और सुबकने लगी । माँ , बाबा से मजाक भी करो तो , उल्टा जबाव देते हैं , अब समझ गई हूँ संतान से जादा दौलत का मोह होता है । बेटा खुश रह अपने घर मैं । माँ , तो भरे गले से कुटिनी को बिदा कर अन्दर चली गई ।
कुटिनी आज भी बाबा की टेर सुनती है , नाम भी तो ऐसा चिपक गया है जो चाहते हुए भी यादों को दूर नही होने देता । माँ , की तरह कुटिनी भी कभी दरी बुनती है ,तब आंसुओं की धार नदी सी बह उठती है , अब तो कुटिनी श्यामा आंटी बन गई है उसका असली नाम कोई नही जानता , श्यामा घर के बरांडे में गौरैया के बच्चों को उड़ते हुए देखती है और लम्बी साँस खींचकर रह जाती है ।
रेनू .....
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