Sunday, July 5, 2009

सन्यासी


एक बार जंगल में सूखा पड़ गया , सारे जानवर पानी और भोजन की तलाश में इधर -उधर भागने लगे । कोए ने अपने दोस्त चूहे से कहा - चलो हम भी यहाँ से भाग चलें । मगर कहाँ ? बुद्धिमान लोग अपना ठिकाना ढूंढ़ कर ही निकलते हैं । कौआ बोला - स्थान मेरा देखा हुआ है , तुम चिंता मत करो । चूहा बोला - मुझे भी बता दो , कहाँ जाना है । पास वाले सरोवर में मेरा एक दोस्त कछुआ रहता है , वह हमारा स्वागत करेगा , वैसे भी कहा गया है कि -कर्जा देने वाला साहूकार , औषधि देने वाला वैद्ध , पूजा पाठ वाला ब्राह्मण , जल से भरी नदी , यह चार गुण न हों उस स्थान पर नही रहना चाहिए ।

चूहा सोचने लगा- जहाँ रोजगार न हो उस स्थान से कैसा मोह ? दोनो मित्र वहां से चल दिए । लंबा रास्ता तय कर वे लोग सरोवर तक पहुँच गए । कछुए ने कौए को दूर से ही पहचान लिया और गले से लगा लिया । कैसे आना हुआ ? पहले कौए ने चूहे का परिचय दिया फ़िर चूहा कछुए को किस्सा सुनाने लगा - एक जंगल में सन्यासी रहता था , उसके भक्त बहुत कम थे , एक भक्त रोज ही स्वादिष्ट भोजन गुरु के लिए लाया करता था । बचा हुआ भोजन एक पोटली में बांधकर , ऊपर खूंटी पर लटका कर , उसी के नीचे आसन लगाकर सन्यासी सो जाता था ।

जब सन्यासी सो जाता तब , चूहा उस पोटली से खाना खा लेता था , क्रोधी साधू ने चूहे को भागने के लिए लाठी का प्रबंध किया । कुछ दिनों बाद उस सन्यासी का मित्र वहां आ गया , अपने दोस्त को भोजन कराने के बाद , बचा हुआ खाना पोटली में बांधकर वहीं लटका दिया , साधू बार -बार लाठी को जमीन पर ऐसे मारता कि चूहा डर जाता । नया साधू बोला - तुम क्यों लाठी मारते हो ? सन्यासी ने सारी बात बता दी । लेकिन नया साधू सोचने लगा कि अवश्य ही इसमें धन छुपाकर रखा है । शायद चूहा अपने बिल में छुपा लेता होगा । क्योंकि धन ही प्रभुता का मूल होता है ।

दौनों साधुओं ने मेरा बिल खोदना शुरूकर दिया , मेरा खजाना लेकर चले गए । मेरी बुरी हालत को देखकर , साधू बोला - प्राणी धन से ही इस संसार में महान बनता है , इस चूहे को देखो धन जाते ही निष्प्राण हो गया है , चूहे को देखकर, एक साधू ने लाठी से उस पर वार कर दिया । चूहा सोचने लगा - धन के लोभी लोग बहुत बेसब्र होते हैं , इनकी इन्द्रियां साथ नही देतीं लेकिन जो लोग संतुष्ट होते हैं उन्हें चिंता नही सताती ।

कोई संदेह नही कि हमें संचय नही करना चाहिए , चूहे ने सन्यासी को सबक सिखा दिया था ।

रेनू ....

2 comments:

विजय तिवारी " किसलय " said...

लोग संतुष्ट होते हैं उन्हें चिंता नही सताती ।
कहानी में सच्चाई है.
- विजय

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

कथा अच्छी होते हुए भी शैली में प्रवाह का आभाव उसकी रोचकता को रोकता है |
अंतिम पञ्च लाइनों को थोडा सुगठित करें |
वैसे एक अच्छी रचना के लिए धन्यवाद |
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