Monday, December 8, 2008

मुखौटा


बादलों का जमाबडा बढ रहा है , न अभी तक गुडाई हुई है , न बीज - खाद मिल पाया है , किसान परेशान हैं , सरकारी बीज - खाद विभाग के ऑफिस पर अभी तक ताला जड़ा है । साहब ! कितनी बार शिकायत किये हैं , पर सुनवाई नही है । पैसा - टका होता तो हम ख़ुद ही कर लेते । साब ! पैसा दिवा देते तो अच्छा होता । क्या - क्या समस्या है बता दो , साब ! हमारा गाँव दूसरे गाँव से बीस किलोमीटर दूर है , यहाँ बिजली भी नहीं है , कम से कम कच्ची सड़क बनवा देते तो अच्छा था । साब ! स्कूल तो है पर मास्टर खेत का काम ही करता रहता है , बच्चे का करें स्कूल जाकर , हमार औरतिया डलिया बना लेत है , चटाई बना लेत है , साब ! कोई शहर मैं खरीद ले तो अच्छा होता । हम कहाँ जाई , केका बेचीं , कछु समझ नाही पडत है । ठीक है , सब सहूलियत मिल जायेगी । हम सरकार से बात करेंगे । अरे ! गुप्ता जी !! जरा कागज बनाइये । कृषि विभाग को फोन लगाइए , पता करिए यहाँ किसकी जिम्मेदारी है । बनवारी लाल शर्मा चमचमाती लाल बत्ती गाड़ी मैं बैठे और शहर निकल गए ।

बड़े अच्छे साब हैं , अब देखना हम सबकी समस्या मिट जाएँगी । अरे ! का अच्छी होई , गाड़ी मैं बैठ्वे वाला क्या जाने हमार दुःख , अरे ! कैसी बात करते हो ? कालू देखना , कल से ही खेत का काम शुरू हो जाएगा । खेत जोते तो आठ दिन हो गए , ऑफिस खुले तब न , तलहटी मैं जुटे खेत पेंटिंग जैसे सुंदर लगतें हैं । कहीं आम के घने बाग़ हैं , कहीं गन्ने की खेती लहरा रही है , कहीं दूर तक मिटटी की खुशबू उठती है , जब दो चार बूंदें आसमान से टपकतीं हैं । कहते तो आदिवासी इलाका हैं , लेकिन सब लोग शहरी खाने के आदि हैं , बनवारी लाल शर्मा आदिवासी कल्याण समिति के अध्यक्ष हैं । दूसरे दिन ही अफसर सलाम ठोकने आने लगे , क्यों भाई !! भानु कहाँ गायब था ? सर ! शहर से आने मैं समय लग जाता है , सड़क नही है , साइकिल से आना पड़ता है , आप लोग क्या चाहतें हैं कि इनकी सुविधाएँ बंद करदीं जाय ? सरकार के पास भेजने ,बजट के लिए खाका बनाइये । आनन् - फानन मैं मंत्रणा की जाती है , जरुरी कामों की लिस्ट बनती है , रुपयों का गणित बनातें हैं और कागज़ साहब के हवाले कर दिए जातें हैं ।

एक माह के भीतर शर्मा जी ने कच्चा रास्ता बनवा दिया , पक्की बनने मैं समय लगेगा , उनके आते ही आदिवासी उत्सव आयोजन करने लग जातें हैं , साब का ध्यान रखा जाता है , शर्मा जी ने सरकार तक उनकी पहुँच बना दी है , उनके लिए तो बनवारी लाल ही उनकी सरकार हैं । सरकार अगर हुक्म दे तो छमिया भी उनकी सेवा मैं हाजिर की जा सकती है , लेकिन शर्मा जी इतने तो मर्द हैं कि अपनी प्रतिष्ठा के लिए किसी नजराने से काम नहीं चलाएंगे । धीरे - धीरे लोग उनकी काबलियत के कायल हो रहें हैं ।

ब्रह्मचारी गाँव का मुखिया है , शर्मा जी के खाने - पीने का ध्यान रखता है , इस बार साब ! दिनों बाद आए ? हाँ , सोच रहा हूँ यहीं घर बना लूँ , यहाँ से जाने को मन ही नही करता । पता लगाना कोई जगह बेचना चाहे तो , हम ले लेंगे । साब , आप जितना चाहें रहें । अभी हम ठहरे हैं , पुँछ कर बता देना ? जी साब । ब्रहम चारी जनता है उसके अलावा किसी और के पास जमीन है ही नही , मिठुआ के पास बात रख दी गई , क्यों न आम का बाग़ ही साब को दे दिया जाय , पैसा पूरा मिल जाएगा और ऊपर से आम बेचने कि मुसीबत भी मिट जायेगी । साब ने बोला था , बाग़ तो तुम्ही देखोगे मैं तो जमीन का मालिक बनूँगा देखना तो तुम्हे ही है । क्या कहीं , इन्सान इतने बरस से हमारा भला कर रहा है , हमारे लघु उद्योग चल निकलें हैं , मैं हाँ ही बोल दूंगा । बापू पैसा कहाँ रखेगा ? साब बोल रहा था , शहर चल कर बैंक मैं खाता खुलवा देगा , कभी भी पैसा डालो कभी भी निकालो ।

शर्मा जी ने आज शाल कंधे पर डाल रखा है , हाँ , बात पक्की है ? मुबारक हो , शाम को शहर चलतें हैं , मिठुआ भी आया है , चार लाख रुपये बैंक मैं जमा हो गए , बाग़ के कागज साब के पास छले गए , गाँव आकर ब्रहम कुछ परेशान सा है , हे ! शीतला माता ! अब जो हुआ सो हुआ , माफ़ करना , शर्मा जी का मकसद पूरा हो चुका था , उन्हें प्रकृति कि खूबसूरत वादी मैं एक आशियाने कि जरूरत थी तो मिल गया ।

एक सैधांतिक इन्सान भी हर पल मुखोटा बदलता रहता है , भोले - भले इन्सान इनके भरम का शिकार हो जातें हैं , जाने कितने साब , आदिवासियों को लूट रहे होंगे । सरकारी काम का हवाला देकर ।

रेनू शर्मा .......

1 comment:

Bahadur Patel said...

bahut achchha likha hai.badhai.