आज अधिक सर्दी के कारण कुहासा छाया हुआ है और सीमा का फोन ही नही आया, जाने उसे पार्टी में जाना है या नही। कितनी बार कहा है जब नही जाना हो , तो मुझे फोन कर दिया करो लेकिन ये सीमा है की लापरवाह हो गई है। तभी फोन घनघना उठा , चलो अच्छा हुआ। उसी का फोन होगा वरना और दो चार बातें सुन लेती मुझसे , रीना बुदबुदाती हुई गई और फोन उठा लिया ,"हेल्लो , सीमा ! यार क्या बात है ? सुनो तो , मैं आ रही हूँ, तुम तैयार रहना , देर ना करना बाहर आने मैं ", और सीमा ने फोन काट दिया।
रीना एक पढी लिखी गृहणी है । करीब दस साल शादी हुए हो गए , बच्चे थोड़े बड़े हो गए तो किट्टी पार्टी मैं जाना शुरू कर दिया है। सीमा उसकी सहेली है दोनों साथ ही हर पार्टी मैं घूमती रहती हैं और सबके बारे मैं अपने विचार आपस मैं बाँट ती रहती हैं।
रीना जल्दी से बेडरूम मैं गई और ड्रेसिंग टेबल पर रखी हुई सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग कर बाहर आ गई। बच्चे अभी तीन घंटे बाद स्कूल से लौटेंगे तब तक तो दुनिया भर की मस्ती हो जायेगी। तभी नीचे हार्न सुनाई दिया और खटाखट सीढियां उतरती रीना गाड़ी में जा बैठी। आज मिस्सेज़ गुप्ता के घर पार्टी है , ड्राइवर को रास्ता बताकर दोनों पीछे बैठ कर एक दूसरे से , अच्छी लग रहीं हूँ की नही , ऐसा पक्का करने लगीं। सीमा कुछ मुँह सिकोड़ते हुए बोल पड़ी ,"यार क्या बताऊँ यह पार्टी वाली औरतें जाने क्या-क्या पहनकर आतीं हैं । उनके सामने तो अपन कितने साधारण लगते हैं न ,देखा नही , मिस्सेज़ मिश्रा को हर बार , एक सैट नया पहनकर दिखाती है जैसे इसके बाप का ज्वेलरी शोरूम हो। कितनी इत्रातीं हैं यह लोग, मेरा तो मन ही नही करता इन लोगों से बात करने का लेकिन क्या करूँ ,पार्टी की वजह से बोलना पड़ता है । देखना, मेरी साडी ठीक है ना , अरे! क्या है , तुम बोलती क्यों नही ? क्या साँप सूंघ गया ? रीना अभी उसे ऊपर से नीचे तक देख ही रही थी की बोली - "हाँ , तुम आदिवासी मजदूर जैसी दिख रही हो। क्योंकि हरी साडी के साथ लाल ब्लाउज़ पहन रख्खा है , यह कोई फैशन है ? तुम कुछ भी पहन लेती हो ।" अरे नही, ऐसी बात नही , असल में ब्लाउज़ प्रेस के लिए गया था तो मैंने यह पहन लिया ।
अचानक गाड़ी के ब्रेक के साथ-साथ गई दोनों बाहर निकलीं और गुप्ता जी के घर में घुसती चली गयीं । "नमस्कार ,कोई और नही आया क्या ?" , नही ,आते ही होंगे, आइये बैठिये। दोनों एक कोने में लगे सोफे पर धंस गयीं। हम बैठे हैं आप तैयारी करिये, बस पानी भेज दीजिये । मिस्सेज़ गुप्ता अन्दर चलीं गयीं और आने वाली दस औरतों के लिए चाय-नाश्ते का इंतजाम करने।
सीमा देख ,यह पेंटिंग कितनी अच्छी है न , कितना सुकून मिल रहा है । इससे देख,एक तरफ़ झरना , उची पहाडी , हरे-हरे वृक्ष, ठंडा सा मौसम , कितना रोमांचित है यह तस्वीर। सीमा हाँ , ही कह पायी की तभी इधर देखो , गुप्ता जी का बार। कीमती बोतल सजा रखीं हैं जिन में आधी-आधी सुरा मौजूद भी है चलो , कुछ हंगामा किया जाए और रीना ने उठ कर बीअर की बोतल खोलकर ग्लास बार लिया। सीमा अभी कुछ समझ पाती जल्दी से दो चार घूँट उडेल चुकीं रीना को धक्का देते हुए उसने ग्लास छीन लिया और चुप-चाप बाथरूम में ले जाकर कुल्ला करवा दिया और बची हुई बीअर सींक में उडेल दी और ग्लास वापस टेबल पर सजा दिया। करीब-करीब खींचतीं हुई रीना को बिठाया और कहा ,"तुम पागल हो गई हो, अभी घर जाना है बच्चे आते होंगे और तुम बावली हो रही हो। तबियत तो ठीक है ना ? क्या पति से अनबन हो गई है ?इतनी फटकार खाने के बाद सौरी बोलते हुए दरवाज़े की तरफ उठी थी की चमक - दमक से लबरेज और दस औरतें अन्दर आ धमकी ।
सब एक से एक सुंदर साडियों में लिपटी हुई बैठती गयीं, कोई खिलखिलाकर हंस रही है सिर्फ़ औरो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए , कोई सिर्फ़ मुस्कराहट से काम चला रही है। मिस्सेज़ गुप्ता सबका स्वागत करती हुई स्थान दे रहीं हैं बैठने के लिए। तभी सबकी तरफ़ मुखातिब हुई रीना को देखकर, अरे ! रीना क्या हुआ ? हमेशा खिलखिलाता चेहरा आज मुरझा क्यों रहा है ?चल, आजा मजे कर , भाड़ में जाने दे पति के टेंशन को। वापस जाकर देख लेना ,अभी पपलू खेल ,बीअर पी और बढिया नाश्ता कर, समझी क्या । मिस्सेज़ कक्कड़ एक साँस में सारी बात कह गयीं और चेहरे पर शिकन तक नही आई । एक गोला बनाया और ताश फैटना शुरू कर लिया । धीरे-धीरे खेल चरम पर चड़ता गया और हार-जीत की जशन चलता रहा । रीना अपने ख्यालों की दुनिया में भटकती रही । कभी ताश खेलते ग्रुप को ध्यान से देखती,कभी उनके श्रृंगार को , कभी मिस्सेज़ गुप्ता की उठा-पटक को और कभी सीमा को देखती जो बारी बारी से सबसे बातें कर रही थी। सीमा बराबर देख रही थी की रीना आज कुछ ठीक नही है और चुप-चाप उसको साथ लेकर बाहर आ गई।बोल, अब क्या है ?तू आज क्यों अपसेट है ? कुछ तो बता ,चल कहीं कॉफी पीते हैं , पास ही एक कॉफी हाउस में जाकर बैठ गयीं। हाँ , अब बोल कुछ नही यार , कल राज से मेरा झगडा हो गया । औरत को सिर्फ़ बिस्तर की चीज़ समझते हैं , उनके लिए इस्त्री का कोई अस्तित्व नही । जाने क्यों, बात -बात पर गुस्सा करने लगे हैं। उन्हें कुछ याद नही रहता की सुबह बच्चों को स्कूल भेजना है । अगर कुछ कहो तो नाराज होने लगते हैं , में दुखी हो गयीं हूँ । पढे -लिखे व्यक्ती हैं फ़िर क्यों ऐसा करतें हैं ?कुछ समझ नही आता। अच्छा ठीक है,चलो कॉफी ले लो । घर चलते हैं, बच्चे आते होंगे और दोनों सखियाँ घर आ गयीं । में चलती हूँ रीना तुमसे कल मिलूंगी , और सीमा चली गई ।
एक अजीब से मुखौटे को पहने रीना बच्चों की मुस्कराहट का जवाब देती रही और घर के काम-काज से निब्रत हो अपनी डायरी लिखने बैठ गई । पार्टी की बातें लिखती रही, तभी चीनू बेटी ने पीठ पे बैठते हुए पूछा माँ क्या लिखती रहती हो । बेटा जब बड़े होगे तो समझ जाओगे की डायरी क्यों लिखतें हैं । बड़ा बेटा थोड़ा समझदार है वो शायद म की पीडा को समझता है । इसीलिए म को हर समय हँसाने की जुगाड़ में लगा रहता है । नए-नए चुटकुले सुनाकर माँ को १४ साल पहले वाली रीना बना देते हैं ,जो मस्त अल्लहड़ हमेशा हसने वाली , सबकी मदद करने वाली ,ज़िंदगी को अपनी तरह चलाने वाली,सबका आदर करने वाली ,भारतीय संस्कृति की अनुचरी है लेकिन, आज वो किटी -पार्टी मे चली जाती है । शायद अपने अतीत को खोजने के लिए
कुछ समय पहले पार्टियों के नाम से नाराज़ होने वाली रीना आज मौका ढूंडती है वहाँ जाने का , अपनी-अपनी शान-शौकत की नुमाइश करने वाली महिलाओं से बड़ी नाराज़गी थी पर आज उनपर तरस आता है क्योंकि उन सब मे उसे रीना और सीमा की कहानी दिखाई देती है उनके हसी पहने चेहरों के पीछे का दर्द उसे महसूस होता है
सीमा से पहली मुलाकात याद करते हुए कहती है , मुझे आज भी याद है सीमा एक शादी समारोह मेी मिली थी ,बेहद निराश , पतली -दुबली सी लड़की,साधारण सा सलवार-सूट पहने,एक कोने मे कुर्सी पर बैठी हुई थी रीना के पास जाकर बैठने पर उसे कुछ खुशी हुई,जब बात चीत शुरू हुई तो उसके चेहरे की प्रसन्नता अभी बही दिखाई देती है लगातार मिलने का सिलसिला शुरू हो गया,सीमा घर आने लगी दूसरी बार मिलने पर उसने बता दिया की उसका तलाक़ हो चुका है , पति के किसी दूसरी लड़की से संबंध थे भीख मेी दी गयीं खुशियाँ और दान की ज़िंदगी उसे रास नही आई आज डिग्री कॉलेज मे सहाध्यापिका है मस्त रहती है, अपना घर खरीद लिया है गाड़ी है ,अपने छोटे भाई-बहेनॉ को पढ़ा रही है रीना से दोस्ती कोई दिखावे की नही है वे दिलोजान से चाहने वाली,समझने वाली , सही रास्ता दिखाने वाली दोस्त है रीना भी समझती है की सीमा उसकी हर समस्या का हाल निकाल लेगी
इन्ही विचारों में खोई रीना टीवी चेनल बदल रही थी की फ़ोन बजने लगा सीमा ही होगी,उसे अब चैन कहाँ,जब तक दूसरे दिन मिलकर मुझे लेक्चर नही दे लेगी उसका खाना नही पचने वाला और फ़ोन उठाते ही दहाड़ उठी ," क्या बात है ?फ़ोन उठाने मे इतनी देर लगती है ? और सूनाओ कैसी हो ,क्या हो रहा था ?", तभी दरवाज़े की घंटी बज़ी शायद राज आए होंगे मे तुमसे बाद मे बात करती हूँ
दरवाज़ा खोलते ही एक मुस्कराता हुआ चेहरा दिखाई दिया, चलो कहीं बाहर चलते हैं , आज बाहर मस्ती करेंगे बच्चों के साथ रीना समझ ही नही पाई की यह वोही राज आई या कोई और ! तैयार होकर साथ चल पड़ी हर पल सोचती रही इतना प्यार करने वाले,ध्यान रखने वाले व्यक्ति को क्या हो जाता है ?हरी-भरी ठंडी सड़क पर सरपट दौड़ती हुई कार का शीशा उपर चढ़ते हुए कुछ अपने को गार्मसा अनुभव करने लगी एक पल को ऐसा लगा मानो सर्द रात मेी किसीने लिहाफ़ उधा दिया हो विचारों की उधेड़ बुन मे खोई रीना समझ ही नही पाई की राज गाड़ी रोक कर लगातार उसे देखते जा रहें अरे ! आप क्या देख रहे हैं ? बच्चे कहाँ हैं ? वे सामने झूला झूल रहे हैं, तुम क्या सोच रहीं थी? कुछ नही , यूही ज़रा प्राकृति के साथ दूर चली गयी थी अपनी बात छुपाते हुए रीना राज के साथ चल दी ,सोचती रही मे कितनी नेगेटिव सोच रखती हूँ,ज़रा सी हलचल से परेशान हो जाती हूँ,अब ध्यान रखोंगी और धीरे से राज के कंधे पर सिर रख दिया
सीमा सोचती रही की क्या परेशानी है जो रीना इस तरह परेशान हो गयी दूसरे दिन शाम को सीमा घर आ गयी कहिए मेडम! क्या हो रहा है ? कुछ नही खीर बना रही थी , राज को बहुत पसंद है ,बच्चे भी खा लेते हैं अरे वाह! खीर तो मुझे भी पसंद है हाँ ठीक है , बैठ जाओ , मिल जाएगी दो दिन पहले क्या हो गया था तुम्हे ? अरे छोड़ो सब, सबकुछ ठीक है , जब दिक्कत होगी तब तुझे बता दूँगी , और सीमा को खीर देने लगी सीमा सोचने लगी, पति-पत्नी का रिश्ता भी कितना धूप-छाव जैसा होता है,कभी नाराज़गी और कभी ढेर सारा प्यार कुछ समझ नही आता कब स्थिति बदल जाती है सीमा के खिले चेहरे की और देख कर लगा की मुझे चलना चाहिए फिर मिलने का कहते हुए मे चलने को हुई तो मेरे सीने से चिपकते हुए रीना बोली -"शुक्रिया सीमा! तुमने मुझे संभाल लिया वरना क्या होता " ठीक है ,तुम खुश र्म मे यही चाहती हूँ हम फिर मिलेंगे और प्यार से उसका सिर सहला दिया , बस करो भाई अपने पातिदेव के लिए भी कुछ आलिंगन बचाकर रखो सीमा शरमाते हुए मुझसे अलग हो गयी अच्छाजी चलती हूँ ,उसकी आखें देर तक हसती रहीं जीवन एक संगर्श है वहाँ कभी कुशी कभी गुम आते-जाते रहते हैं हमे परेशानियो मे कभी परेशान नही होना चाहिए हमेशा सोच समझकर निर्णय लेना चाहिए
रेणु शर्मा
1 comment:
bahut achchhi rachna hai
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