Saturday, March 21, 2009

आत्म विश्वास


आत्म विश्वास
''आत्म विश्वास'' व्यक्ति को महान बना देता है। व्यक्ति को जीने की तरीका सिखाता है। उसे जिंदगी की कठिन राहों पर दृढ़ विश्वास के साथ चलना सिखाता है। ये सब बातें किताबी ढकोसला लगती थीं। क्योंकि जब व्यक्ति स्वयं उन स्थितियों से गुजरता है तब उसे समझ आता है कि आत्मविश्वास बहतु बढ़ी धरोहर है।
घर से चार, पांच किलोमीटर दूर एक कालेज में साइकिल से जाया करती थी क्योंकि उस समय स्कूल कालेज साइकिल से जाना बड़े गौरव की बात मानी जाती थी। कालेज के रास्ते में एक बस्ती में हमारे दूर से भी दूर के एक रिश्तेदार रहते थे बड़े मनचली प्रवृत्ति के स्वामी थे। एक बार किसी पारिवारिक उत्सव में छोटी सी मुलाकात होने पर उन्होंने अपने मन में जाने क्या क्या ख्वाब बुनना शुरू कर दिया। जब भी मौका मिलता हमारे घर आ टपकते शुरू में तो रिश्तेदारी का लिहाज चलता रहा लेकिन शीघ्र ही उनकी प्रकृति को समझकर उन्हें दूर कर दिया और हम सभी भाई बहनों ने उन्हें घास डालना बंद कर दिया। सिर्फ मां, पापा उनकी चिकनी चुपड़ी बातें में रस लिया करते थे। काफी समय तक अपनी इच्छा अधूरी ही रहती देख महाशय ने अपने एक गुण्डे दोस्त को हमें परेशान करने के लिये पीछे लगा दिया। उन दिनों कालेज से वापस आने का समय दोपहर 2 बजे के करीब होता था। कुछ समय तक तो कई सहेलियां साथ रहती और आगे चलकर सब अपने-अपने मुकाम पर मुड़ जाती। मैं सरपट साइकिल दौड़ती और धूर्त लड़का मेरा पीछा करता हुआ जाने क्या-क्या बोलता रहता। उसकी ये सब हरकतें कभी पसन्द नहीं आतीं। कभी सोचती कितना पागल इंसान है, ईश्वर इसे सद्बुध्दि दे, लेकिन दिन पर दिन वह अपनी सभ्यता और संस्कृति और अपने संस्कारों से परिचित कराता रहा। चूंकि मैं अपने घर में सबसे बड़ी थी, इसलिए किससे शिकायत करती कि कोई मूर्ख मुझे परेशान कर रहा है। मां को सब बातें बताई तो बोली बेटा सबके साथ आया करो, तुम्हारे पापा से क्या कहूं, कहीं दो धर्म से झगड़ा न हो जाय किसी को पता चलेगा तो बात बढ़ जावेगी इसलिए तुम चुप ही रहना एक न एक दिन वो समझ जायेगा और मान जायेगा। उस दुष्ट व्यक्ति का डर इस तरह मन में समा गया कि हर जगह वहीं दिखाई देने लगता उसका असर पढ़ाई पर भी होने लगा। आखिर एक दिन सोचा कि पुलिस में रिपोर्ट कर दूंगी लेकिन दूसरे पल सोचा लड़की हूं सब लोग मुझे ही गलत समझेंगे कालेज जाना बंद हो जायेगा और चुप रह जाती।
इसी तरह बड़ी संघर्षमय स्थिति चल रही थी कि एक दिन कालेज में एक लड़की जो मेरे विषय में ही पढ़ाई कर रही थी किसी दूसरे शहर से आने जाने के कारण परेशान थी और कालेज के पास ही रहना चाहती थी। मैं उसकी समस्या से इतनी द्रवित हो गई कि अपने घर में रहने का निमंत्रण दे दिया और इम्तहान होने तक करीब दो माह उसे आसरा दे दिया। अभी तक तो मैं ही इस स्थिति से जूझ रही थी अब वो भी इसमें शामिल हो गई और मेरे साथ कालेज से घर तक दौड़ लगाती रहती। एक बार भीड़ भरे, माहौल में उस असमान्य व्यक्ति ने पास में अपनी गाड़ी रोकी और बोला कि ''जो चीज हमें आसानी से नहीं मिलती उसे हम छीन लेते हैं।'' उसने किसी पिक्चर का डायलाग बोला और हमारे दिल दिमाग पर ज्वालामुखी जैसे फोड़ दिया हो। उसे हमारा रोज का रास्ता मालूम था इसलिए आज एक नया तीसरा रास्ता घर तक जाने के लिए चुना उस समय बराबर इस चीज का अनुभव हो रहा था कि लड़कियों को समाज में स्वयं अपना वजूद जिंदा रखने के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ता। बेटी होना अभिशाफ ही लगने लगा था। अब हम दो लड़कियां अपनी लड़ाई स्वयं लड़ रही थीं, अपने सम्मान की लड़ाई। आत्मविस्वास को दृढ़ करने की अदा सीख रहीं थीं। पहले सोचा रिक्शा कर लेते हैं, रिक्शा भी धीरे-धीरे में चलता है तब हम कैंटूनमैंट के रास्ते से पैदल ही एक नया रास्ता बनाते हुए घर की ओर जाने लगे। उस दिन हमारा आखिरी इम्तहान था। सूनी सड़कों पर घूमने वाले सिपाही बार बार हमारी तरफ देखते थे कि लड़कियां यहां क्यों घूम रही हैं कुछ ऐसे रास्तों पर भी घुस गये जहां प्रवेश निषेध था। बड़ी मुश्किल से घर तक गये। रास्ते में ईश्वर का शुक्रिया अदा करते रहे।
कैसी विलक्षण स्थिति पैदा हो जाती है कि अपने ऊपर अत्याचार, किसी के द्वारा जबर्दस्ती करते देखते हुए भी इंसान कुछ कर पाने में असमर्थ होता है। उस संघर्षमय स्थिति का वो आखिरी दिन था लेकिन मैंने कहीं भी किसी भी स्थिति में स्वयं को टूटने नहीं दिया। प्रथम श्रेणी में पास हुई, लेकिन आत्मविश्वास रूपी जो मोती मेरे अंदर जन्मा वो जीवन पर्यन्त अमर रहेगा ऐसा विश्वास है। बुध्दि और हिम्मत से कार्य करें तो सफलता अवश्य मिलेगी। आत्मविश्वास सुदृढ़ रखें तो जीत होगी ही।

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