सजला दनदनाती ऑफिस में घुस गई , आज फ़िर आने में देर जो हो गई । चटक काला सलवार कुरता जिस पर सुनहरे रंग की जयपुरी प्रिंट से बेल्बुतियाँ छ्पी हुई हैं । झक्क सफ़ेद कुरता फव रहा है , बालों को कसकर बाँध दिया है , उसे इधर -उधर उड़ते बालों से बड़ी चिद लगती है । बार -बार चहरे पर झूलते बालों को सँभालने में ही विचार श्रृंखला टूट जाती है । आज भी मनोयोग से काम करना उसे बता है । कितनी बार विरमा ने कहा -सजला दी ! घर पर कोई काम करने वाला रख लो तो , सुनती ही नहीं । कहती हैं - एक प्राणी का काम ही कितना होता है , कभी जब माँ आ जाती है तब , दस लोगों के बराबर काम निकलता है ।
सजला बिंदास तो है पर, नियम कायदे से चलना उसे पसंद है । ऑफिस के काम में यदि किसी ने कोताही बरती तो , उसे बर्दास्त नही होता । कल ही भूपेश से भीड़ गई , साफ़ कह दिया था मिस्टर !! यदि काम नही करना तो , दूसरी जगह तलाशिये । मिस्टर भंडारी ने उसे यूँ ही प्रधान संपादक का काम नही दे दिया । चार साल से नर्गिस नामक पत्रिका संभल रही है । कविता , कहानी , लेख बूँद के नाम से छापती है । सजला को जाने कब लिखने का समय मिल जाता है ।
विरमा जब सजला से मिली थी , तब नौकरी के लिए आवेदन लेकर आई थी । जाने क्या बात हुई सजला ने उसे काम दे दिया । एक छोटी बहन को कायदे से कैसे रखा जाता है यह सजला से अधिक कौन जान सकता है । विमी को वह बहन ही मानती थी , एक बार झमाझम पानी बरस रहा था , सजला तेज बुखार में तप रही थी ।तभी विमी के पास फोन आया - हेलो !! विमी मैं सजला , यार !! तू अभी दावा लेकर आजा , और सुन दो तीन दूध के पैकेट भी ले आना । हाँ , कैसे आएगी ? पानी आ रहा है , तुम चिंता मत करो मैं , गीत को लेकर आती हूँ । आधा घंटे के भीतर विमी आ धमकी । गीत रैन कोट पहने बाहर खड़ा है दीदी !! बुखार कैसा है ? माँ ने कहा है विमी दी रात को आपके पास ही रुक जाएँगी । मैं , जाता हूँ , कुछ लाना तो नही , अरे ! सुन गीत ! बेटा नीचे से थोडी सब्जी ला दे , विमी कह रही थी दी !! अब मैं आ गई हूँ देख लुंगी क्या चाहिए , क्या नही । आप आराम करो ।
विमी ने अस्त -व्यस्त घर को ठीक किया , दावा देकर दूध भी गरम कर दिया । अब आप सो लो , ताकि कुछ बुखार उतर जाए । मैं अपने लिए दो पराठे बना लेती हूँ , दो नही चार बना लेना , जब बुखार नही होगा तब मैं भी कहूंगी तुम्हारे साथ । ठीक है , और विमी काम करने लगी । सजला भी निश्चिंत होकर सो गई ।
विमी रसोई का काम समेत कर सजला की टेबल ठीक करने लगी । तभी उसकी नज़र एक डायरी पर पड़ी , घूम कर देखा सजला सो रही थी , घीरे से डायरी के पन्ने पलटने लगी । बेहद कोमलता से लिखी गईं कवितायें किसी करीबी के लिए लिखी लग रहीं थीं । लगा , जैसे सजला दी ! किसी को बेइंतहा चाहती हैं ।
मैं , दरिया बन
बह जाउंगी ,
तुम्हारी रूह में ।
तुम सागर बन ,
समेत लेना मुझे ।
मैं , हिरनी सी
कुलांचें भर लुंगी
तुम , बहेलिये से
जाल फैला देना ..... ,
क्या है , यह सब । दी ! क्यों अकेली रहतीं हैं ? कुछ समझ नही आता । हजारों सवाल जहाँ में कौंध गए , सजला ने करवट बदली विमी सामने ही खड़ी थी । अब कैसी हो दी , बुखार कम है अब , तुमने खाना खाया या नही ? कितने घंटे सो ली आज मैं, अधिक नही , चलो हम साथ खाना खायेंगे और सुनो दो गिलास दूध लाना समझी । विमी खुश हो गई , उसे लगा आज पहली बार किसी ने उसे भी दूध लेने को कहा है , वरना माँ , तो कभी कह ही नही पाती । जब बारहवीं पास किया तो नौकरी करने आ गई । गीत अभी छोटा है , सीमा पढ़ रही है उफ़ !! मैं कहाँ अटक गई ?
विमी !! तुम कितना अच्छा खाना बनाती हो , माँ से सीखा , हाँ माँ , बहुत अच्छा खाना बनती है । मेरी माँ को पता चलेगा कि आठ दिन पहले बुखार आया था , तब भी भागी चली आएँगी । सजला दी !! एक बात पूंछू - हाँ , बोल न , आपकी डायरी देखि मैंने , क्या लिखती हो ! आप नाराज तो नही होगी ? यूँ ही लिख लेती हूँ , कोई तो है , जिसके लिए आप लिखती हो । दी !! आपको परेशान नही करना चाहती , कोई बात नही पगली ! आज कोई तो मेरे पास है जिससे बात कर पा रही हूँ ।
देखो बारिश बंद होने का नाम ही नही ले रही है , हम लोग चाय पीयें क्या ? हाँ , मैं अभी लती हूँ । सजला बालकनी में निकल आई , कन्धों को शाल से ढकती हुई कुर्सी पर बैठ गई । बरसती बूंदों के साथ ही सजला भी किसी ख्वाव में समाती चली गई । विमी चुपके से पास आकार बैठ गई दी , चाय , हाँ , विमी !! मैं जब कॉलेज से निकली माँ ने सोच लिया अब , इसकी शादी कर देंगे । बिना बाप की बेटी कहाँ नौकरी के लिए भटकती रहेगी । एक दिन मामा को बुलाकर फोटो और जनम पत्री पकड़ा दिए , दो महीने के भीतर मामा ने एक बेंक में क्लर्क को पकड़ लिया । भरा पूरा परिवार था , गौरव उसका नाम था । पन्द्रह दिन के भीतर सारे काम हो गए और शादी भी हो ली ।
जाने क्या बात हुई , फोटो देखा तब , खुश हुई थी , पर दूसरे ही पल मेरा खून मानो जम गया । माँ से कुछ नही कहा , भीतर कुछ रिस रहा था , बन्दा बिल्कुल नही जमा । मुझे लगता था वह संवेदनाओं को अपने लिए ही जिन्दा रखता है , दूसरों के लिए मार देता है । जब नौकरी की बात की , तो साफ़ मुकर गया । कहने लगा घर संभालो , कहाँ लोगों के बीच भागती फिरोगी । दोस्तों के साथ मस्ती करता और रात भर पार्टियाँ करता । घर आकर मुझसे लड़ता , एक दिन बोल रहा था - तुम्हारी माँ का पैसा भी तो , हमारा ही है । मैं , हतप्रभ रह गई ।
माँ , से कुछ भी नही कह पाई ।
एक बार माँ के पास आई तब बता दिया माँ , गौरव ! तुम्हारे पैसे पर नजर रखता है । माँ , हंसने लगी । बेटा ! हँसी मजाक तो चलता रहता है । वो , तुम्हारा पति है , मिलकर रहो । माँ ,जब बीमार हो गई तब , मैं , आकर वापस नही गई , उसके घर वालों ने भी कोई प्रयास नही किया , शायद अपने बेटे के लिए दूसरी बहु चाहते थे । दी !! कैसी बात करती हो , विमी , आँखें फाड़ कर सजला का चेहरा देख रही थी । इतना बड़ा फैसला , एक झटके मैं ले लिया । हाँ , विमी तुम नही जानतीं सुनीता नाम की एक औरत से उसके रिश्ते थे । एक बेटा भी था उसका ।
पूरा परिवार मुझसे यह बात छुपाना चाहता था , मैं , जब सुनीता से जाकर मिली तब लगा मुझे ही वापस हो लेना चाहिए और माँ के पास आकर फ़िर नही गई उस गौरव के पास । माँ के पास मिलने आ जाता है कभी -कभी ।
माँ , मेरे पास आ जातीं हैं , खेती का काम न होता तो माँ , कभी मुझे अकेला न छोड़तीं । ओह दी ! आपने कितना कुछ सहन किया और लगता नही आप को देखकर । मेने आपको दुखी किया है शायद , नही ऐसा कुछ नही है । तुम कमरे मैं सो जाना अब , बारिश भी बंद होने को है , पहले से ठीक हूँ । दी आप दवा ले लो ,तभी फोन की घंटी बज गई । विमी ने ही फोन उठा लिया , हेलो !! मैं कपिल बोल रहा हूँ , सज्जी से बात हो सकती है क्या ? सजला देर तक फोन पर बातें करती रही । डायरी वाले महाशय यही थे शायद , वो कह रहे थे मैं , आ रहा हूँ । एक हफ्ते की छुट्टी लेकर और सजला चहकती हुई बिस्तर पर लुढ़क गई । विमी सोने का प्रयास करने लगी ।
रेनू शर्मा ......
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