Wednesday, March 11, 2009

डर


बाल्यावस्था मेंबच्चे कुछ गलती करते हैं , उससे बचने के लिए या बड़ों की डांट से बचने के लिए कुछ ऐसा के बैठते हैं जो बाल अपराध की श्रेणी में आ जाता है । मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चा डर के कारण गलती कर देता है । माता -पिता से छुपाने के लिए झूंठ भी बोलता है । एक गलती को छुपाने के लिए अनेक गलतियों के चक्र में फंसता जाता है ।

उत्तर प्रदेश का जल हीन गाँव , जहाँ कोसों दूर तक पीने का पानी नही मिलता था । सातवीं क्लास में आने पर हम लोग कूंए से पानी लेकर आते थे क्योंकि मीठा पानी होगा तभी खाना बन पायेगा । माँ , घर की बहु थीं इसलिए घर से बाहर नही जा सकती थीं । फ़िर भी कभी -कभी माँ हमारे साथ कूए तक जतिन थीं । कही बेटी कूंए में गिर न जाए ।

परिवहन का कोई साधन नही था , सड़कें बनी नहीं थीं , पहली बार जब गाँव वालों ने बिजली देखी तो खुशी का ठिकाना ही नही रहा । गाँव से तीन मील दूर से पानी भरकर लाना पड़ता था । सुबह माँ नाश्ता बनाकर देती और हम अपने काम पर लग जाते थे । कोयले की अंगीठी जलाना ही टेडी बात होता था , गली के बाहर रखी अंगीठी सबकी आँखें लाल कर देती थी ।

सुबह की भागम भाग में स्कूल जाते , नौ बजे स्कूल की घंटी बज जाती , रास्ते में सरपट दौड़ लगाई जाती जैसे किसी मैराथन में भाग लेना हो । कई बार गेट के बाहर ही खडा रहना पड़ता । देर से आने वाले बच्चों को प्रधानाचार्य के रूम के बाहर ही उठक बैठक लगनी पड़ती । कभी जब , भीड़ बढ़ जाती तब गेट पर खड़ी बुडिया को खिसकाकर अन्दर घुस जाते । अजीव स्तिथि थी हम , दांव खेलने में माहिर हो गए थे । परिपक्व इन्सान क्या कुछ नही कर सकता सोचनीय है ।

ऐसी काम के बोझ से घिरी जिन्दगी में अंग्रजी का होमवर्क करना भूल गए । रास्ते में एक सहेली ने बता दिया की टीचर बहुत सख्त है , सजा देतीं हैं । बस फ़िर क्या था, काटो तो खून नही , अंग्रेजी विषय वैसे ही हमारे लिए रोज शूली पर चड़ने जैसा काम था , एक तो समझ से बाहर ऊपर से न पढने की गलती । हम उसी समय घर वापस आ गए । रास्ते में ही सोच लिया ,माँ से कह देंगे छुट्टी हो गई थी ।

घर आकार माँ से बड़ी सफाई से झूंठ बोल दिया । माँ भी समझ नही पैन । दूसरे दिन भी स्कूल नही गई तब माँ का दिमाग ठनक गया । उन्होंने पास के बच्चों से पता लगाया कि माजरा क्या है ? पता चला छुट्टी नही है । माँ ने अपने सामने बिठाया और पूछा अब , बताओ क्या बात है , कब तक झूंठ बोल पाती , सारी बात सच बता दी ।माँ ने कहा डरने की बात नही है हम जाकर मिल लेंगे तुम अपनी पढ़ाई का हर्जा मत करो ।

उस दिन माँ की बात दिल के भीतर तक बैठ गई । जब स्कूल गई तब टीचर को याद भी नही था क्या काम दिया था । मैं अपने आप से दूर हो गई थी , डर के कारण किसी से बात नही कर रही थी । माँ ने ऐसा साहस भर दिया कि पढ़ाई के प्रति चैतन्य हो गई ।

बच्चे हमेशा इस तरह की स्तिथि से गुजरते हैं , हमें अधिक समय तक डर के साये मैं नही रहना चाहिए । किसी बड़े को अपनी बात जरूर बता देनी चाहिए । डर कभी हमारा दुश्मन नही बन पायेगा ।

डर हमारी मानसिक कमजोरी को दर्शाता है , हमें स्वयं पर और बड़ों पर भरोसा रखना चाहिए । कभी कमजोर नही पड़ना चाहिए ।

रेनू ......

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